भैयालाल धाकड़
विदिशा // प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र द्वारा राष्ट्रीय जल-जन अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने संबोधित करते हुए कहा कि धरती के समस्त प्राणियों, वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं में जीवन-शक्ति का संचार करने वाली जल की बूंदे
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण जहर का कहर बनकर मानवता के अस्तित्व पर संकट का बादल बनकर
छा रही है। आधुनिकता, विकास और अंतरिक्ष में बस्तियों को बसाने का सपना देखने वाला मनुष्य एक बहुत बड़ी भूल कर रहा है। यदि उसने जल के संरक्षण पर तुरन्त ध्यान नहीं दिया, तो इस धरती से ही उसकी बस्तियां उजड़ जाएंगी और वह केवल इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह जायेगा। अतः स्वच्छ पेयजल का संकट इस
धरती पर मानव के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा संकट है। इसके समाधान के लिए व्यक्तियों, संस्थाओं और
सरकारों को तुरन्त ध्यान देने की आवश्यकता है। नदियों
और परम्परागत जल स्रोतों के क्षेत्रफल का निरन्तर घटता हुआ आकार मनुष्य के भविष्य पर आपदाओं के
क्रूर प्रहार के रूप में दिखाई दे रहा है।

ब्रह्माकुमारी रुकमणी दीदी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जल ही अमृत है
हज़ारों वर्षों से पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित अमतृ की खोज में भटकता हुआ मनुष्य यह समझ नहीं सका है कि
शुद्ध और प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होने वाला जल ही वह अमतृ है, जो उसे जीवन शक्ति और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान कर क्रियाशील बनाता है। जल ही जीवन है परन्तु आधुनिकता और भौतिकता की अंधीदौड़ में दौड़ता
हुआ मनुष्य इस परमतत्व के महानता और महत्व को भूलने के कारण ही स्वास्थ्य सम्बन्धी बीमारियों और
पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है।
मनुष्य अपनी लोभवत्ति के कारण जल के प्राकृतिक और परम्परागत स्रोतों को नष्ट कर रहा है। जिसके कारण स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता वर्तमान समय में एक बहुत बड़ी चनुौती बन गई है। वैज्ञानिक तकनीक और विधियों से प्राप्त हो रहा पेयजल कभी भी शुद्ध एवं प्राकृतिक रूप से प्राप्त होने वाले पेयजल का विकल्प नहीं हो सकता है। मनुष्य के सुस्वास्थ्य, प्रगति और समृद्धि
के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है।
जल संरक्षण के लिए लोगों में विशेष जागरूकता उत्पन्न करने में राजयोग एवं अध्यात्म की विशेष भूमिका
है। जल की पवित्रता और शुद्धता का भाव लोगों में उत्पन्न करने से जल संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न
होती है। लोगों में जल के प्रति आस्था का भाव उत्पन्न करके जल संरक्षण के प्रति उन्हें सहज ढंग से
जागरूक बनाया जा सकता है। अधिक संख्या में भाई-बहनों ने कार्यक्रम का लाभ लिया।