सुयोग्य वर प्राप्ति हेतु माँ कात्यायनी की आराधना 27 मार्च सोमवार को

Aanchalik Khabre
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भैयालाल धाकड़

विदिशा,
धर्मगुरु धर्माधिकारी गिरधर गोविन्द प्रसाद शास्त्री के आचार्यत्व में बैकुण्ठधाम श्री लक्ष्मीनारायण मंदिर में वसंत नवरात्रि, चैत्र शुक्ल स्कन्द षष्ठी 27 मार्च सोमवार को रोहिणी नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि योग में विवाह योग्य कन्याओं द्वारा सुयोग्य वर प्राप्ति हेतु माँ कात्यायनी की षोडशोपचार पूजन, आरती, पुष्पांजलि के साथ श्रद्धाभक्ति पूर्वक संपन्न होगी।

हे गौरी! शंकर अर्धाङ्गिनी यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा माँ कुरुं कल्याणि कान्तं कान्तां सुदुर्लभाम्‌ ।।
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥

महर्षि कात्यायन ने सर्व प्रथम इनकी पूजा की इसी कारण से यह कात्यायनी देवी है | मां कात्यायनी मनोवांछित वर दायिनी हैं| भगवान श्री कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिंदी-यमुना के तट पर की थी, यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं इनका स्वरूप का अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान कांतिमान है। इनकी चार भुजाएँ हैं । माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में है तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है, इनका वाहन सिंह है। नवदुर्गा के छठवें दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। उस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है, आज्ञा योग साधना में आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है, मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। मां के शरणागत होकर उनकी पूजा उपासना श्रद्धा भक्ति पूर्वक करना चाहिए ।
मां कात्यायनी की आराधना में पीले वस्त्र धारण करके, पीले आसन पर बैठकर मंत्र, जप, करना, पीला चंदन, पीले पुष्पों की माला, हल्दी की माला,चावल हल्दी में रंगकर समर्पित करना चाहिए एवं पीले फलों का भोग प्रसाद चढ़ाना श्रेयस श्रयेस्कर होता है

जय -जय गिरिवर राज किशोरी । जय महेश मुख चन्द चकोरी।।
जय गजबदन षडाननमाता ।जगत जननी दामिनी दुति गाता।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥

किला अंदर स्थित श्री विश्वनाथ पुरम चोपड़ा में सबसे प्राचीन श्री हनुमान व्यायाम शाला है, यहाँ मां कात्यायनी देवी जी के मंदिर में विवाह योग्य कन्याओं द्वारा मां के दर्शन, पीले पुष्पों की माला, पीले प्रसाद, नारियल, चुनरी चढ़ाकर मनोवांछित वर प्राप्ति की कामना से प्रार्थना की जाती है| श्री रामलीला के प्रथम प्रधान संचालक धर्माधिकारी श्री पं.विश्वनाथजी शास्त्री के मार्गदर्शन में श्री रामलीला के श्री राम लक्ष्मण आदि सभी पात्र युद्ध प्रशिक्षण एवं संवादों की शिक्षा प्राप्त करते थे।

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