जानें क्यों चौसठ योगिनी मंदिर को कहते थे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी
जबलपुर। शहर का यह रहस्यमय मंदिर की कई कहानियां सुनने में को मिलती है सनातन धर्म से जुड़े रहस्यमय मंदिर की कई कहानियां सुनकर सनातन धर्म की यह आस्था का केंद्र बना हुआ है जबलपुर निवासी डॉ.आशा श्रीवास्तव द्वारा चौसठ योगिनी मंदिर से जुड़ी कई कहानियों के रहस्यमई खुलासे किये है । और यही वजह है कि यह मंदिर एक अपना अलग ही पहचान बनाए हुए है बताया जा रहा है कि 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’
मुगलों के आने से पहले मध्य भारत (मध्य प्रदेश) में हिन्दू राजाओं का शासन था
इसी दौरान उन्होंने धर्म, शास्त्र,तंत्र-मंत्र से जुड़े स्मारकों में स्थापत्य कला का जो नायाब नमूना पेश किया, उसकी मिसाल आज भी कायम है जबलपुर में कलचुरी राजाओं के बनाये मठ-मंदिर आज भी उस गौरवशाली इतिहास की दास्तां बयां करते है चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’ जबलपुर शहर से 20 किमी दूर अपनी दूधिया संगमरमर चट्टानों के लिए विश्व प्रसिद्ध भेडाघाट पर्यटन स्थल में चौंसठ योगिनी का मंदिर उसी इतिहास का साक्षी है|
हालांकि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने यहां की सभी योगिनियों को खंडित कर दिया था लेकिन आज भी इस मंदिर का ढांचा बेहद मजबूत है और बड़ी संख्या में पर्यटक इसे देखने आते हैं | एएसआई ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’
इतिहासकार प्रोफेसर आनंद राणा बताते हैं कि मध्यकाल में जबलपुर में तंत्र साधना का देश का उत्कृष्ट विश्वविद्यालय था
इतिहासकार प्रोफेसर आनंद राणा बताते हैं कि मध्यकाल में जबलपुर में तंत्र साधना का देश का उत्कृष्ट विश्वविद्यालय था| यहां तंत्र शास्त्र के आधार पर तंत्र विद्या भी सिखाई जाती थी, जिसे लोग गोलकी मठ के नाम से जानते थे, लेकिन मुगलों के आक्रमण के बाद यह मठ धीरे-धीरे बंद हो गया आज भी जब तंत्र साधना की बात होती है तो गोलकी मठ को विशेष तौर पर याद किया जाता है
यह आजकल भेड़ाघाट के चौसठ योगिनी मंदिर के नाम से जाना जाता है यह एक ऐसा केंद्र बिंदु है जहां मारे मत देखने को मिलते हैं लेकिन शैत्व मत सबसे पुराना है क्योंकि त्रिपुरेश्वर महादेव की स्थापना के साथ ही यहां शैव मत की परंपरा शुरू हो गई थी हालांकि शैव मत दक्षिण भारत में ज्यादा प्रचलित था लेकिन यहां अन्य मतों का भी समावेश रहा| चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’
जबलपुर के भेडाघाट की प्रसिद्ध संगमरमर चट्टानों के पास करीब ढाई सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर में देवी दुर्गा की 64 अनुषंगिकों (योगनियों) की प्रतिमा है | इस मंदिर की विशेषता इसके बीच में स्थापित भागवान शिव की प्रतिमा है, जो कि देवियों की प्रतिमा से घिरा हुआ है. भगवान शिव यहां अपने वाहन वृषभ यानी नंदी पर माता पार्वती के साथ सवार हैं. यह उनकी पूरे देश की अनोखी शिव प्रतिमा है. इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक जबलपुर आते हैं चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’
कहते है कि इस मंदिर का निर्माण सन् 1000 के आसपास कलीचुरी वंश ने करवाया था
मंदिर के सैनटोरियम में गोंड रानी दुर्गावती की मंदिर की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी देखा जा सकता है| मान्यता है कि यहां एक सुरंग भी है जो चौंसठ योगिनी मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है यह मंदिर एक विशाल परिसर में फैला हुआ है और इसके हर एक कोने से भव्यता झलकती है चौसठ योगिनी मंदिर 64 योगिनी के बीच में विराजमान है शिव की प्रतिमा, जानें क्यों कहते थे इसे ‘तांत्रिक यूनिवर्सिटी’ चौसठ योगिनी मंदिर वृत्ताकार यानी गोल आकार का है
बीच में एक अद्भुत नक्कासीदार मंदिर है. इस मंदिर के गर्भगृह में शिव-पार्वती की प्रतिमा है. इतिहासविद् बताते हैं यह प्रतिमा दुर्लभ है वृषभ यानी नंदी पर सवार श्रृंगारयुक्त ऐसी प्रतिमा देश में और किसी जगह पर नहीं है. इतिहासकार डॉ. आनंद राणा के अनुसार यह मंदिर दसवीं शताब्दि का है मंदिर त्रिभुजाकार 81 कोणों पर आधारित है, जिसके प्रत्येक कोण पर योगिनी की स्थापना की गई थी. 12 वीं शताब्दी में गुजरात की रानी गोसलदेवी ने यहां गौरीशंकर मंदिर का निर्माण कराया था
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