नरक चतुर्दशी का त्योहार दीवाली से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है
कार्तिक अमावस्या के दिन सुख समृद्धि का पर्व दीपावली मनाया जाता है। इसकी तैयारी एक पखवाड़े पूर्व से शुरू हो जाती है। दीपावली पूरे पांच दिन चलती है जो धनतेरस से प्रारंभ होती है और भाई दूज के साथ समाप्त होती है।
यह हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है इसको अब सभी धर्म के लोग मनाने लगे है। इसलिये इसको राष्ट्रीय पर्व की भी संज्ञा दी जाती है। दीवाली के पूर्व घर की साफ सफाई, रंग रोगन कर उसे झकाझक कर आकर्षक रूप दिया जाता है। नये कपड़े, पटाखे, मिठाईयां, लाई, बताशे की खरीदारी कर लक्ष्मी पूजा की तैयारी की जाती है। फिर दीवाली के दिन शाम होते ही चारो तरफ दीप की रौशनी अमावस्या की काली रात्रि को चीरती हुई जगमगा देती है।

दीवाली पर्व का संबंध कई पौराणिक गाथाओं से भी जुड़ा हुआ है। लंकापति रावण को मारकर राम चौदह वर्षों के वनवास के बाद जब अयोध्या पहुंचते है तब अयोध्या वासियो ने उनका दीप जलाकर स्वागत किया था ! इसी दिन राजा बलि ने जब लक्ष्मीजी को बंदी बना लिया था तो, भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर उन्हें छुड़वाया था।
दीपावली के दिन नरकासुर भी मारा गया था! इसी दिन भारत के तीन महान विभूतियों महावीर स्वामी, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने अपने शरीर का त्याग किया। इन तीनों महानुभाव ने मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया।
स्वामी रामतीर्थ का जन्म भी इसी दिन हुआ था ! स्वतंत्रता की अलाव जगाने वाली महारानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते दीपावली के दिन ही अपने प्राणों की आहूति दे दी थी ! वहीं दीपावली कार्तिक अमावस्या के दिन आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर पर पुनः प्राणों का संचार होने के कारण हिन्दुओं ने इस खुशी में दीपोत्सव मनाकर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन किया ! भूदान आंदोलन के महान संत विनोवा भावे का निधन भी दीपावली के दिन हुआ था।
भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में अनेकता में एकता के लिये दीपावली पर्व का बड़ा महत्त्व है। दीपावली सुख समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि-बुद्धि का प्रतीक समझा जाता है।
इसके दूसरे दिन अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) का पर्व मनाया जाता है। लक्ष्मी को वैभव और धन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। “लक्ष्यति इति लक्ष्मी” अर्थात लक्ष्मी वह है, जो स्वयं को लक्षित करती है। “लक्ष्मी सम्पत्ति -शौभ्यो” लक्ष्मी शोभा, संपत्ति प्रदायिनी है। लक्ष्मी वह शक्ति है जो हमारी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। ये परिश्रमी व कर्मठ व्यक्ति को ही प्राप्त होती है आलसी को नहीं ! जो एकाग्रचित हो अपने कर्म में लगा रहता है, लक्ष्मी उसी पर प्रसन्न रहती है।
आलसी लोगों को लक्ष्मी वरदान नहीं शाप देती है, चाहे वह लक्ष्मी की नित्य प्रार्थना ही क्यों न करते हों ! उनकी वास्तविक प्रार्थना तो परिश्रम ही है। वे इसी की भेंट मांगती है। मानस मर्मज्ञ तुलसीदास ने कहा है कि कामधेनु और कल्पतरुण चित्र टांगने से ही कठिनाई दूर नहीं हो जाती ! चाणक्य ने भी कहा हैकि धन से ही धन की उत्पत्ति होती है।
लक्ष्मी मिथ्यावादी, कृतघ्न, दुशील, अविश्वासी, चिन्ताशील, भयग्रस्त, पापी, ऋणी आदि के घर निवास नहीं करती ! विष्णु स्मृति में लक्ष्मी स्वयं कहती है कि. मेरा निवास धर्म में परायण, साधु प्रकृति वाले मनुष्य, आचार के सेवी में, नित्यशास्त्र में विनीत वेश में, अच्छे वेश में, उमनशील में, मलरहित में, मिष्ट भोजन में, अतिथियों के भोजन में, अतिथियों की पूजा करने वालों में, अपनी स्त्री में संतुष्ट रहने वालों, धर्म में रत रहने वालों में, अत्यधिक भोजन न करने वालों में, सत्य में स्थिर रहने वालों में, प्राणियों का भला चाहने वालों में, क्षमाशील में, क्रोध रहित में, अपने कार्य में कुशल व्यक्ति में, सर्वथा नम्रभावी में, पवित्रता और मृदु वचन कहने वाली नारियों में, स्वच्छ घर रखने वालों में, जितेन्द्रिय, कलरव रहित, अलोलुप, दयालु और धार्मिक लोगों के यहां ही मैं निवास कर सकती हूँ।”
वेद अभ्यासी ब्राम्हणों, धर्मप्रिय क्षत्रियों, कृषि से मन लगाने वाले वैश्यों और सेवारत शूद्रों में लक्ष्मी रहती है। जिस तरह लक्ष्मी सदैव विष्णु के पास निवास करती है उसी तरह उसका अपेक्षित साधक भी वैसा ही सौभाग्य प्राप्त कर सकता है।
दीपावली का धार्मिक महत्त्व ही लक्ष्मी पूजा से जुड़ा हुआ है। रात्रि के प्रथम पहर में, घर के पूजा गृह में बेदी बनाकर या चौकी अथवा पाटे पर अक्षतादि से अष्ट दल बनायें और उस पर लक्ष्मीजी की स्थापना करें। साथ में गौरी गणेश, इन्द्र और कुबेर की स्थापना कर यथा विधि से पूजा करें। अंत में इस मंत्र का जाप कर लक्ष्मी का आव्हान करें
नरक चतुर्दशी के दिन जो महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, उन्हें सौभाग्यवती और सौंदर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में नरकासुर राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओं और ऋषि-मुनियों के साथ सोलह हजार एक सौ कन्याओं को भी बंधक बना लिया था। नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवता और साधु-संत भगवान श्री कृष्ण की शरण में गए। नरकासुर को स्त्री के द्वारा ही मरने का श्राप था, इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध किया और उसकी कैद से सोलह हजार एक सौ कन्याओं को आजाद कराया। कैद से आजाद करने के बाद समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कष्ण ने इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
मान्यता है कि जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था, तो वध करने के बाद उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया था। तभी से इस दिन तेल, उबटन लगाकर स्नान की प्रथा शुरू हुई। माना जाता है कि ऐसा करने से नरक से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग व सौंदर्य की प्राप्ति होती है। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार नरकासुर के कब्जे में रहने के कारण सोलह हजार एक सौ कन्याओं के उदार रूप को फिर से कांति श्रीकृष्ण ने प्रदान की ने थी, इसलिए इस दिन महिलाएं तेल के उबटन से स्नान कर सोलह शृंगार करती हैं।
माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन जो महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, उन्हें सौभाग्यवती और सौंदर्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को नरक चतुर्दशी मनाई जाती है. इसे नरक चौदस, रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है।
दिवाली से ठीक एक दिन पहले मनाए जाने की वजह से नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी पर यम का दीपक जलाया जाता है. इस दिन कुल बारह दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना भी की जाती है, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था. कई जगहों पर ये भी माना जाता है की आज के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था. अगर आयु या स्वास्थ्य की समस्या हो तो इस दिन किए गए उपाय बहु लाभकारी माने जाते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, नरक चतुर्दशी यानी छोटी दिवाली
कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि को होती है. चतुर्दशी तिथि का समापन होने पूर्व अभिस्ट कार्य कर लेना चाहिए। इसलिए चतुर्दशी तिथि बीतने से पहले ही नरक चतुर्दशी की पूजा कर लेना चाहिए।इसके बाद अमावस्या लग जाता है,जिसमें दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। क्या आप जानते हैं इस दिन के महत्व को, शायद बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे कि इस चतुर्दशी को नरक चतुदर्शी कहा जाता है। असल में धनतेरस से लेकर दिवाली मनाते हुए भैया दूज तक लगातार पांच पर्व रहते हैं।
इस बीच नरक का नाम कौन लेना चाहेगा। भले ही वह चतुर्दशी के साथ आता हो। लेकिन आपकी जानकारी के लिये बतादें कि यह दिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अपना विशेष महत्व रखता है। नरक चतुर्दशी के दिन व्रत भी किया जाता है इस बारे में एक कथा भी प्रचलित है। कहानी कुछ यूं है कि बहुत समय पहले रन्ति देव नामक बहुत धर्मात्मा राजा हुआ करते थे।
उन्होंनें अपने जीवन में भूलकर भी कोई पाप नहीं किया था। उनके राज्य में प्रजा भी सुख शांति से रहती थी। लेकिन जब राजा की मृत्यु का समय नजदीक आया तो उन्हें लेने के लिये यमदूत आन खड़े हुए। रन्तिदेव यह देखकर हैरान हुए और उनसे विनय करते हुए कहा कि हे दूतों मैनें अपने जीवन में कोई भी पाप नहीं किया है फिर मुझे यह किस पाप का दंड भुगतना पड़ रहा है, जो आप मुझे लेने आये हैं। क्योंकि आप के आने का सीधा संबंध यही है कि मुझे नरक में वास करना होगा।
उसके बाद यमदूतों ने कहा कि राजन वैसे तो आपने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया है। लेकिन एक बार आपसे ऐसा पाप हुआ जिसका आपको भान नहीं है। एक बार एक विद्वान गरीब ब्राह्मण को आपके पथ से भूखा लौट जाना पड़ा था यह उसी कर्म का फल है। राजा को इसके लिए राज पुरोहित ने उपाय बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को व्रत करने से बड़े से बड़ा पाप भी क्षम्य हो जाता है अतः आप चतुर्दशी का विधिपूर्वक व्रत करें और तत्पश्चात ब्रह्माणों को भोजन करवाकर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराध के लिये क्षमा याचना करें। फिर क्या था राजा रन्ति को तो बस मार्ग की तलाश थी।
उन्होंनें ऋषियों के बताये अनुसार चतुर्दशी का व्रत किया जिससे वे पापमुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। तब से लेकर आज तक नर्क चतुर्दशी के दिन पापकर्म व नर्क गमन से मुक्ति के लिये कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तिल के तेल से मालिश कर पानी में चिरचिटा अर्थात अपामार्ग या आंधीझाड़ा के पत्ते डालकर स्नान किया जाता है। स्नानादि के बाद विष्णु और कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन कर पूजा की जाती है।
ऐसा करने से पाप तो कटते हैं साथ ही रूप सौन्दर्य में भी वृद्धि होती है। इसलिये इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। यम देवता पाप से मुक्त करते हैं इसलिये यम चतुर्दशी भी इस दिन को कहा जाता है। नरक चतुर्दशी पर किये जाने वाले स्नान को अभ्यंग स्नान कहा जाता है जो कि रूप सौंदर्य में वृद्धि करने वाला माना जाता है। स्नान के दौरान अपामार्ग के पौधे को शरीर पर स्पर्श करना चाहिये और नीचे दिये गये मंत्र का जाप को पढ़कर उसे मस्तक पर घुमाना चाहिये।
दीपावली को सबसे पसंदीदा त्योहार माना जाता है। दिवाली का त्योहार प्रकाश और उजाले का प्रतीक माना जाता है और इसके आगमन से पहले ही घरों में जोर-शोर से तैयारियां शुरू हो जाती है। दिवाली वैसे पांच दिनों का त्योहार माना जाता है। दिवाली की ‘शुरुआत धनतेरस से होती है-उस दिन सोना खरीदने का सबसे शुभ अवसर माना जाता है।
उस दिन लोग अपने लिए नई नई चीजें बर्तन, सोना चांदी अवश्य खरीदते हैं- धनतेरस के बाद आती है-छोटी दिवाली, फिर मुख्य दिवाली का दिन आता है-यह पावन त्योहार उल्लास और उमंग के साथ ढेर सारी खुशियां लाता है। परिवार के सदस्य एक-दूसरे मिलते जुलते हैं और खुशियां बांटते हैं। इस त्योहार का सबसे बेसब्राी से इंतजार बच्चों को रहता है क्योंकि इन दिनों पटाखे जलाने, आतिशबाजी, नये कपड़े, ढेर सारे पकवान के साथ ही छुट्टियों का भी भरपूर आनंद उठाना चाहते हैं। लेकिन इस उल्लास भरे त्योहार में कुछ सावधानियां बरतना भी जरूरी होता है क्योंकि आतिशबाजी के बाद निकलने वाला प्रदूषित धुआं और पटाखों की तेज आवाज हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं।
दिवाली का मौसम खुशी और मौज मस्ती का होता है। यह आशीर्वाद एवं एक दूसरे का शुक्रिया अदा करने वाला भी समय है। इस समय परिवार, रिश्तेदार, दोस्त और पड़ोसी साथ मिलकर दिवाली मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं। लेकिन हम खुशी मनाना चाहते हैं, दुख बटोरना नहीं। रोशनी का यह पर्व आप के जीवन में अंधकार नहीं ला पाए।
किसी भी उपाय से बेहतर रोकथाम। दीपावली और पटाखे एक तरह से एक दूसरे के पर्याय हो चुके हैं। पटाखे आंखों को बहुत ही खुशी देते हैं और निश्चित रूप से सौंदर्य शास्त्रीय निगाहों से उनकी सराहना की जा सकती है। पटाखे हमारे उत्सवों में चमक और खुशी का समावेश करते हैं। लेकिन इस सच्चाई की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि अगर पटाखों का प्रयोग सावधानी से नहीं किया जाए तो वे अपने संपर्क में आने वाले में से बहुतों के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन सकते हैं।
यही वजह है कि हर वर्ष इस त्योहार के दौरान देश भर में बहुत से लोग अपनी आंखों की दृष्टि खो देते हैं और जल जाते हैं। ये मौज-मस्ती करने वालों के लिए अनकही मुसीबत ला सकते हैं और उनके दीवाली उत्सव का मजा खराब कर सकते हैं। इसलिए सुरक्षित राह अपनाना जरुरी है। इससे आप की खुशहाल और सुरक्षित दीपावली सुनिश्चित हो पाएगी।
रोशनी का यह पर्व आप के जीवन में अंधकार नहीं ला पाए किसी भी उपाय से बेहतर है रोकथाम
आंखें शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में एक हैं और उनमें लगने वाली चोट कितनी भी छोटी क्यों न हो चिंता की बात है और डाक्टरी सहायता में देरी चोटग्रस्त स्थान की स्थिति और अधिक घातक कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप दिखाई देने में कमी आ सकती है या अंधापन हो सकता है। हर वर्ष सभी से सावधानी बरतने की अपील करने के बावजूद हमारे पास बड़ी संख्या में आंखों की चोट के शिकार मरीज आते हैं। आंखें में चोट लगने के बाद घटती हुई दृष्टि, आंखें में लाली, लगातार पानी आने तथा आंखें को खोलने में असमर्थ हो जाने जैसी शिकायतें हो सकती हैं। चोट की वजह से कंजाक्टिवा में आंसू, आंखों में उभार के साथ श्वेतपटल में आंसू या आंखों में खून आ सकता है। पटाखों की वजह से ओक्युलर ट्रौमा विभिन्न रूपों में नजर आ सकता है:-
चेहरे का जलना
कुंद चोट
छिद्रित चोट
चोट चाहे किसी भी रूप में हों, इनकी वजह से रेटाइनल इडेमा, रोटाइनल, डिटैचमेंट, संक्रमण या आंखों के पूरी तरह विरूपित हो जाने की शिकायत हो सकती है। न सिर्फ दृष्टि बल्कि कई बार आई बॉल विरूपित हो जाती है और इलाज के बावजूद बच्चे की आई बॉल घंस जाती है जो कि चेहरे को बदसूरत बना देती है। आंखों को चोटग्रस्त होने से बचाने के लिए पटाखे जलाते वक्त गॉगल्स ‘रंगीन चश्मा’ पहनना चाहिए।
आंखों को तत्काल पानी से धो डालना चाहिए। आंखों को शावर या वेसिन के पानी के नीचे रखें या फिर एक साफ वर्तन से आंखों में पानी डालें। पानी डालते वक्त आंखें खुली रखें या जितना संभव हो फैलाकर रखें। कम से कम 15 मिनट तक पानी डालना जारी रखें।
अगर आंखों पर लेंस हो तो तत्काल ही पानी की फुहार डालना शुरू कर दें। इससे लेंस बह सकता है।
बच्चों को अकेले पटाखा जलाने से बचें और यह कार्य समूह में करें
अगर चोट लगी हुई हो तो जितनी जरूरी संभव हो नेत्र विशेषज्ञ तक पहुंचें। डाक्टरी सलाह तब भी लें अगर आंखों में लाली हो या पानी आ रहा हो।
जलती हुई चिनगारियों को शरीर से दूर रखें।
पटाखा जलाने के लिए मोमबत्ती या अगरबत्ती का इस्तेमाल करें। वे बिना खुली लपट के जलते हैं और आप को हाथों तथा पटाखें के बीच सुरक्षित दूरी कायम रखते हैं.
सावधान रहे यह सब नहीं करना है:
चोटग्रस्त भाग को छेड़े नहीं। आंखों को मलें नहीं।
अगर कट गया हो तो आंखों को धोएं नहीं।
आंखों में पड़ा कोई कचरा हटाने की कोशिश न करें।
अगर स्टेराइल पैड उपलब्ध नहीं हो तब कोई भी बैंडेज न लगा लें।
आंखों के मलहम का इस्तेमाल न करें।
सिंथेटिक कपड़ों को पहनने से बचें और सूती वस्त्रों का प्रयोग करें।
टिन या ग्लास में पटाखे न जलाएं
पटाखें को हाथों में पकडक़र नहीं जलाएं। उन्हें नीचे रखें, जलाएं और फिर वहां से हट जाएं।
हवा में उडऩे वाले पटाखे वहां नहीं जलाएं जहां सिर के ऊपर पेड़ों, तारों जैसी रूकावटें हों, कभी भी उस पटाखे का फिर से जालने की कोशिश न करें जो ठीक से जल नहीं पाया हो। 15 से 20 मिनट तक इंतजार करें और फिर उसे पानी से भरी एक वाल्टी में डाल दें।
‘करने’ या ‘ना करने’ की हिदायतों पर अमल दीपावली उत्सव के दौरान आंखों की दृष्टि जाने या अन्य दुर्घटनाओं को रोक सकती हैं। किसी भी तरह की चोट को हानिरहित नहीं समझना चाहिए। साधारण सी चोट भी नजरों के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। प्रारंभिक देखभाल से संबंधित आधारभूत जानकारी इलाज को आसान और तेज बनाएगी।
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