दिल्ली में आवारा कुत्तों की नसबंदी एवं टीकाकरण मुहिम शुरू, SC के निर्देश पर बड़ा कदम

Aanchalik Khabre
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new law on dogs

राजधानी में नई योजना की शुरुआत

दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश के बाद राजधानी में आवारा कुत्तों को नियंत्रित करने के लिए एक नई मुहिम शुरू कर दी है। इस अभियान के तहत सड़कों पर घूमने वाले कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया जाएगा और उसके बाद उन्हें वापस उसी क्षेत्र में छोड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य है – कुत्तों की बढ़ती संख्या को मानवीय तरीके से नियंत्रित करना और रेबीज जैसी बीमारियों पर रोक लगाना।

लखनऊ मॉडल को आधार बनाया गया

इस अभियान में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुझाया गया लखनऊ मॉडल अपनाया जाएगा। इस मॉडल में “पकड़ो – नसबंदी करो – टीका लगाओ – और वापस छोड़ो” की प्रक्रिया अपनाई जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यही तरीका लंबे समय तक असरदार साबित हो सकता है।

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दिल्ली में क्या होंगे बदलाव?

  • दिल्ली में करीब 8 लाख आवारा कुत्ते हैं, जिन्हें इस योजना के तहत लाया जाएगा।

  • शहर के 78 सरकारी पशु अस्पतालों में से 24 को नसबंदी और टीकाकरण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा।

  • रेबीज से पीड़ित या आक्रामक स्वभाव वाले कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाएगा, जबकि बाकी को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उनके इलाके में ही छोड़ा जाएगा।

  • इस अभियान में MCD, NGOs, निजी अस्पताल और वॉलंटियर्स भी शामिल रहेंगे।

MCD की नई जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने नगर निगम (MCD) को आदेश दिया है कि वह शहर में फीडिंग जोन (खाना खिलाने की तय जगहें) बनाए। अब लोग सिर्फ इन्हीं ज़ोन में कुत्तों को खाना खिला सकेंगे। इससे न सिर्फ व्यवस्था बनेगी बल्कि झगड़े और अव्यवस्था भी कम होगी।

चुनौतियाँ सामने

हालांकि सरकार की योजना मजबूत है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। पहले के Animal Birth Control (ABC) कार्यक्रम ढंग से लागू नहीं हो पाए थे।

  • पर्याप्त संसाधनों की कमी

  • नसबंदी केंद्रों की सीमित संख्या

  • डेटा और निगरानी की कमी
    इन कारणों से पुराने प्रयास ज्यादा सफल नहीं हो पाए थे। अब उम्मीद है कि नए आदेशों और निगरानी से यह अभियान असरदार होगा।

चुनौतियाँ सामने

हालांकि सरकार की योजना मजबूत है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। पहले के Animal Birth Control (ABC) कार्यक्रम ढंग से लागू नहीं हो पाए थे।

  • पर्याप्त संसाधनों की कमी

  • नसबंदी केंद्रों की सीमित संख्या

  • डेटा और निगरानी की कमी
    इन कारणों से पुराने प्रयास ज्यादा सफल नहीं हो पाए थे। अब उम्मीद है कि नए आदेशों और निगरानी से यह अभियान असरदार होगा।

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