भगवान जगन्नाथ की यात्रा का इतिहास और धार्मिक महत्व

Anchal Sharma
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जगन्नाथ

बच्चों और बुजुर्गों के लिए यात्रा को आसान बनाने के आसान तरीके

ओडिशा का पुरी शहर आज भगवान जगन्नाथ की भक्ति में रम गया है। हर तरफ देश – विदेश से आए लाखों भक्ति का जमावड़ा नज़र आ रहा है। प्रत्येक भक्त के मुख में भगवान जगन्नाथ का नाम है। भक्त उनके दर्शन के लिए पिछले कई दिनों से पुरी में डेरा डाले है। आज यानी 27 जून से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जा रही है। यह यात्रा 12 दिनो तक चलेगी। आज पूरे देश में कोलकाता से लेकर अहमदाबाद, और उत्तर प्रदेश में भगवान जगन्नाथ की शोभा यात्रा निकाली गई। बता दें कि ओडिशा का पुरी श्री कृष्ण के जगन्नाथ स्वरूप को समर्पित है। पुरी में भगवान जगन्नाथ का बहुत बड़ा मंदिर स्थापित है। जहां जगन्नाथ को उनके बड़े भाई बालभ्रद्र और बहन सुभद्रा के साथ पूजा जाता है।

आखिर नाव पर क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ यात्रा

मान्यता के अनुसार प्रत्येक वर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वातीया तिथि का विशेष दिन माना गया है। जहां भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। इसी प्रथा को जगन्नाथ रथ यात्रा कहते हैं। यात्रा के लिए तीन अलग अलग रथ बनाए जाते हैं। जिसमें दो रथों पर उनके भाई और बहन ( जगन्नाथ, बलराम, सुभद्रा) सवार होते हैं। रथ यात्रा निकलने से पहले तीनों रथों की पूजा होती है। माना जाता है कि पुरी के राजा सोने की झाड़ू से मंडप और रास्ते की सफाई करते हैं। पूरी में जगन्नाथ के रथ के साथ दो अन्य रथ भी निकलते हैं। जिसमें एक में भाई बालभ्रद्र, दूसरे में बहन सुभद्रा और तीसरे में खुद भगवान जगन्नाथ होते हैं।

कैसे की जाती है रथ की पच्चास

पुरी से निकलने वाले तीनों रथों ( जगन्नाथ, बालभद्र, सुभद्रा) की पहचान उनकी ऊंचाई और रंगो से की जाती है। बलराम के रथ को तालध्वज कहते है। इस रथ का रंग लाल और हरा होता है। बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन होता है। जिसका रंग काला और नीला होता है। और तीसरा रथ जो खुद भगवान जगन्नाथ का होता है। उसे नंदीघस या गरुणध्वज के नाम से जाना जाता है। जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। आपको बता दें कि गरुणध्वज रथ 42965 फीट ऊंचा होता है। जिसमें 16 पहिए लगे होते हैं। इस रथ के सारथी को दारुक कहते हैं। तालध्वज रथ की ऊंचाई 43.30 फीट होती है। इसमें 14 पहिए होते है। इस रथ के सारथी मतलि है। दर्पदलन रथ की ऊंचाई 42.32 फीट होती है। इसमें 12 पहिए होते है। और इसके सारथी अर्जुन होते हैं।

क्यों जाते हैं मौसी के घर

जगन्नाथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ को उनके मौसी के घर ले जाना होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा तीनों मंदिर से बाहर निकलते हैं। फिर 7 दिनो तक श्रीगुंडिचा मंदिर में रहते है। श्रीगुंडिचा मंदिर ही तीनों के मौसी का घर माना गया है। इसका दूसरा कथन यह है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण द्वारिका चले गए थे। द्वारिका जाने से पहले श्री कृष्ण ने राधा और द्वारिकावासियो से वादा किया था। कि वो साल में एक बार जरुर मिलने आएंगे।

यही वजह है कि हर साल जब जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है तो श्री कृष्ण जगन्नाथ के रुप में मिलने आते हैं। आपको बता दें कि यह दिन इसलिए भी खास माना जाता है क्योंकि भगवान जगन्नाथ गर्भगृह में मौजूद रहते हैं। और वो बस इसी दिन मंदिर से निकलकर आम भक्तों को दर्शन देते हैं। जगन्नाथ के लाखों भक्तगण रथ को खींचते है। जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि रथ खींचने से व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट मिट जाते हैं। भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है

जगन्नाथ यात्रा से पहले क्यों पड़ जाते है बीमार

भगवान जगन्नाथ को लेकर बहुत सी मान्यताएं हैं। जिसमें एक मान्यता ये भी है कि हर साल भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तो वो यात्रा से पहले बीमार पड जाते हैं। जेष्ठ पूर्णिमा में स्नान के बाद जगन्नाथ 15 दिनों के लिए एकांतवास पर जाते हैं। इस बीच वह भक्तों को दर्शन नहीं देते। जब तक वो बीमार रहते हैं उनके इलाज के तौर पर उन्हें काढ़ा पिलाया जाता है। और विभिन्न प्रकार की औषधि का लेप लगाकर उन्हे ठीक किया जाता है। माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ ने अपने भक्त भाधव दास की लंबी बीमारी को अपने ऊपर ले लिया था। तब बीमार भक्त भाधव दास ने कहा था कि आप तो जगत के स्वामी हो। क्या आप मेरी ये बीमारी ठीक नहीं कर सकते। तब भगवान जगन्नाथ ने कहा था। ये तुम्हारे पिछले जन्म का भोग है। जो तुम्हे भोगना ही पड़ेगा। अभी तुम्हारी बीमारी के 15 दिन बचे हैं। फिर भक्त बहुत रोए थे। इसके बाद भगवान ने भक्त की पीड़ा दूर करने के लिए 15 दिन की बीमारी अपने ऊपर ले लिया थी। फिर भक्त तो ठीक हो लेकिन भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए थे।

 

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