इन दिनों भाजपा में एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई है।मानो सत्ता विहीन होने के बाद वो क्या कर रही है या उसे क्या करना चाहिए,उसके कुछ समझ मे ही नही आ रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा एक घाने कोहरे के बीच में जाकर फंस गई है और उसके चारों तरफ छाए इस “धुन्ध” से कब और कैसे निकले रास्ता ही स्पष्ट दिखाई दे रहा है कहीं यह “धुन्ध” भाजपा की नियति बन कर ही ना रह जाये..!
इल्म हो कि “भारतीय जनता पार्टी” याने भाजपा आज भारत का प्रमुख राजनैतिक दल है। सन 2016 में भारतीय संसद और विधानसभाओ में प्रतिनिधित्व के मामलों में यह भारत की सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में उभर कर सामने आया है। इतना ही नही प्राथमिक सदस्यता में भी यह दुनिया मे प्रथम स्थान रखता है। लेकिन आज भाजपा ने पूरे देश मे अपनी पहचान बना ली है अगर इस पार्टी के इतिहास पर नज़र डालें तो हम पायेगे की यह पार्टी पर हमेशा से ही “धुन्ध” से घिरा रहा है और इस धुन्ध से निकलने के लिये इसे एक लंबी कोशिश करनी पड़ी फिर कही जा कर कामयाबी पार्टी के हाथ लगी। इल्म हो कि भारतीय जनता पार्टी का मुख्य आधार श्यामा प्रसाद मुखर्जी थे जिन्होंने सन 1951 में भारतीय जनसंघ का निर्माण किया था,लेकिन सन 1977 में लगे आपातकाल की समाप्ति के बाद जनता पार्टी के निर्माण के लिए जनसंघ का अन्य दलों के साथ विलय हो गया।इसका परिणाम यह हुआ कि सन 1977 में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को आम चुनाव में हराना सम्भव हो पाया।लेकिन तीन वर्षों तक सरकार चलाने के बाद सन 1980 में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनः संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। इसका सबसे बड़ा कारण था,सन १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के कारण उनके बेटे राजीव गांधी को मिली सहानुभूति की लहर थी।लेकिन इसके बाद भाजपा को राम जन्मभूमि आंदोलन से पार्टी को ताकत मिली। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली।
इल्म हो कि सन १९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। भाजपा लगातार अपनी कोशिशों में लगी रही, और उस पर छाया घना “धुन्ध” धीरे -धीरे छटना शुरू हो गया। इसके बाद हुए आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। अर्थात भाजपा घने कोहरे से बाहर निकल आयी थी।लेकिन इस कोहरा से भाजपा ज्यादा दूर नहीं जा पाई थी,की सन २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और एक बार फिर भाजपा अगले १० वर्षों तक घने धुन्ध में समा गईं,और भाजपा एक लंबे अरसे तक संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई पड़ी।लेकिन सन २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में सरकार बनायी। इसके अलावा दिसम्बर २०१७ के अनुसार भारतीय जनता पार्टी भारत के २९ राज्यों में से १९ राज्यों में भारतीय जनता पार्टी सता में क़ाबिज़ हो गई थी।
भाजपा की कथित विचारधारा “एकात्म मानववाद” सर्वप्रथम १९६५ में दीनदयाल उपाध्याय ने दी थी। पार्टी हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा ख़त्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं। हालाँकि 1998-2004 की राजग सरकार ने किसी भी विवादास्पद मुद्दे को नहीं छुआ और इसके स्थान पर वैश्वीकरण पर आधारित आर्थिक नीतियों तथा सामाजिक कल्याणकारी आर्थिक वृद्धि पर केन्द्रित रही।
आज मोदी सरकार भारत की सत्ता पर दूसरी बार प्रधानमंत्री पद पर क़ाबिज़ हुए है अतः यह समझा जा सकता है कि अभी कम से कम भाजपा में छाई “धुन्ध” कुछ कम हुई है कम से कम केंद्र सरकार तो घने कोहरे से बाहर आई है। लेकिन अगर हम छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की बात करते है। तो यहाँ अभी भाजपा घने धुन्ध से घिरी हुई है,मध्यप्रदेश में तो भाजपा निकलने का प्रयास भी कर रही है।लेकिन छत्तीसगढ़ में तो भाजपा द्वारा ऐसा कोई प्रयास अभी तो नज़र नही आ रहा है। इसका क्या कारण हो सकता है।संभवतः इसका एक ही कारण समझ मे आ रहा है वो है भाजपा में व्याप्त गुटबाजी। इल्म हो कि प्रदेश में भाजपा जहाँ निरन्तर हार का मुंह देखना पड़ा, तो वही दूसरी तरफ भाजपा संगठन के नेताओं में आपसी सामंजस्य की और उनके बीच आंतरिक कलह ने भी पार्टी को काफ़ी कमजोर के फिर एक “धुन्ध” की स्थिति निर्मित कर दी।
इल्म हो कि सन 2018 में सत्ता भाजपा के हाथों से फिसल कर कांग्रेस के हाथों में आ गईं। अतः सत्ता हाथों से जाने के बाद भाजपा के दिग्गजों के बीच कभी भी ये विचार ही नहीँ बन पाया कि आख़िर सत्तासीन कांग्रेस का सामान किया कैसे जाए।इतना ही नही भाजपा का प्रदेश नेतृत्व भी कोई ऐसा सार्थक कदम उठाने की कोशिश भी नही की,जिससे कम से कम यह साबित हो सके कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2018 से एक सबक ले लिया है।इतना ही नही संगठन के कुछ नेताओं का मानना है कि प्रदेश में पार्टी नेतृत्व को सभी गुटों को साथ लेकर चलने का जल्द ही कोई तरकीब तलाशना होगा।क्योंकि अगर ऐसा नही किया गया तो संगठन में व्यप्त गुटबाजी के कारण राज्य में होने वाले चुनावों में पार्टी को हमेशा हार का ही मुँह देखना पड़ेगा।
गौरतलब हो कि भाजपा में “धुन्ध” गुटबाज़ी की वजह से ही गहराया है,नही तो यह कैसे मुमकिन है कि लम्बे समय तक सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा को बुरी तरह से हार का स्वाद चखना पड़ा।इसका मतलब ही साफ है कि भाजपा अपने सत्ताकाल में ही गुटों में विभाजित हो गई थी और यही गुटीय संघर्ष ने उसे हार ही दहलीज़ पर ला कर खड़ा कर दिया।इतना ही नही पार्टी के कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि आज भाजपा कई घटकों में बट चुकी है।संभवतः आगे आने वाले दिनों में यह भाजपा के लिये हानिकारक साबित हो सकते है। कभी मुख्यमंत्री रमन सिंह के काफी करीबी रह चुके एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने इशारों ही इशारों में जनकारी देते हुए कहा कि राज्य के गठन को बीस साल हो चुके है लेकिन ऐसा पहली बार ही हुआ है कि पार्टी संगठन सत्ता की मदद के बिना चल रही है अतः उनका इशारा था कि संगठन में गुटबाजी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आ खड़ी हुई है,और इसका स्थायित्व भाजपा पार्टी के लिए एक घातक संकेत साबित हो सकता है।
इतना ही नही आज प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल में गुटबाज़ी इस तरह से छाई हुई है मि संगठन के शीर्ष नेताओं को अब एक साथ लाने में नेतृत्व भी असमर्थ दिखाई दे रहा है।अब तो ऐसा लग रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व की कुछ करे तो ही बात बन सकती है।वरना भाजपा पार्टी के नेताओं को “धुन्ध” अपनी आग़ोश में इस तरह जकड़ रखा हैं कि संभवतः पार्टी नेता ना अपनी ही सूरत देख पा रहे है और ना ही जनता की सीरत ऐसे में पार्टी का क्या होगा इसका अंदाजा लगाना कोई मुश्किल काम नही है। लेकिन इस गुटबाजी में एक बात तारीफ़े क़ाबिल है कि नेताओं अंतर्द्वंद्व बाहर से दिखाई नही देता लेकिन आंतरिकतौर पर सभी नेताओं की स्थिति “अपनी डफ़ली, अपना राग”वाली बनी हुई हैं। शायद प्रदेश के नेता आपस मे एक-दूसरे के साथ होना भी मुनासिब नही समझते।यह तक कि संगठन के राजनैतिक कार्यक्रम भी गुटों के हिसाब से तैयार किया जाता है तब कहीं जाकर उसे अमल में लाया जाता है। राष्ट्र की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी का प्रदेश में यह आलम होगा।यह समझ से परे है।
इतना ही नही वही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने पार्टी की ओर से सफाई पेश करते हुए कहा कि “पार्टी में किसी प्रकार की गुटबाज़ी नही हैं लेकिन कभी- कभार मुद्दों को लेकर वैचारिक मतभेद हो जाता है जो स्थाईतौर पर नही होता किसी भी दाल में ऐसा होना एक स्वाभाविक बात है लेकिन जब भी जनता के हितों को लेकर सत्तासीन दाल का सामना करने की बात आती है तो सभी एकजुट रहते है”।
वास्तविकता तो यही है कि गुटबाजी के कारण आज देश की एक बड़ी राजनैतिक पार्टी करीब तीन-चार घटकों में बट चुकी है।ये अलग बात है कि संगठन में मुख्य रूप से दो बड़े घटक है।जिसमें से एक का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, कर रहे है तो दूसरी ओर उनके ही सरकार में लगातार मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल है।और ये दोनों ही आज प्रभावी नेता है। इतना ही नही इसके अलावा पार्टी में भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी,केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय के साथ ही साथ पूर्व सांसद जिन्हें अब त्रिपुरा का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है रमेश बैस उनका भी एक अपना घटक है लेकिन राज्यपाल बनाने के बाद से उनके समर्थक अब दुसरों का सहारा तलाशने में लगे हुए है।
अतः भाजपा के इन हालातों पर नज़र डाले तो ज्ञात होता है कि भाजपा एक घने कोहरे के आगोश में है,और ये कोहरा भाजपा से कब तक छटेगा कुछ कहा नही जा सकता। इल्म हो कि भाजपा अभी अपनी राजनैतिक गतिविधियों को प्रदेश में ना तो जनता के सामने प्रदर्शित कर रही है और ना ही भूपेश सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद उसने अपने कार्यकर्ताओं को हो कोई संदेश दिया है।कहीं ऐसा तो नही कि भाजपा की यह ख़ामोशी तूफ़ान के आने के पहले का सन्नाटा हो। क्योंकि भाजपा में वास्विकता में क्या चल रहा है यह अभी तक नज़र में नही आया है,हो सकता है भाजपा में कोई बड़ा राजनैतिक मंसूबा पक रहा हो।जिसे अमल में लाकर वह सन्नाटे को चीरकर अपने इर्दगिर्द छाई “धुन्ध” से चमत्कारिक रूप से बाहर आ जाये।