किसानों से ही कुछ दबंग किसान बनकर गांव की जमीन पर करते हैं कब्जा-आँचलिक ख़बरें-प्रमोद मिश्रा

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अन्नदाता किसानों से ही कुछ दबंग किसान बनकर गांव की जमीन पर कब्जा करते हैं फिर शुरू होता है एक नया खेल

उत्तर प्रदेश चित्रकूट में 4 तहसील व 4 ब्लाक हैं जिसमें अन्नदाता किसान एक महत्वपूर्ण समाज है जिसकी उपेक्षा प्रकृति, जंगली जानवर ,अन्ना प्रथा आदि से होती है फिर भी सरकारें किसानों के लिए योजनाएं देती हैं लेकिन उन्हीं योजनाओं से किसान क्यों वंचित रह जाता है और सरकार की चकबंदी व्यवस्था में किसानों में बहुत से झगड़े शुरू होते हैं। पहले तो किसान फौजदारी में सर ,हाथ, पैर ,शरीर में चोटे खाते हैं और खिलाते भी हैं और उसमें किसान को कितना फायदा मिलता है यह सब कारण ग्रामीण अंचल में रास्ते, नाले , नाली कृमश: चकरोड ,रोड ,बीएमडब्ल्यू मार्ग ,नाले में पुल ,खेतों में पानी जाने के लिए 5 कड़ी की नाली भी खेत के बगल में बनाई जाती है जिसमें 10 कड़ी चकरोड ,व 20 कड़ी का सेक्टर,ग्राम समाज की जमीन,व तालाबों में क्यों कब्जा किया जाता है दबंग किसानों द्वारा झगड़ा के लिए आमादा होते हैं इसका मुख्य कारण राजस्व कर्मचारी व अधिकारी से सांठगांठ कर कुछ लेन देन शुरू करके सुरु होता है कब्जा का गेम।इसी कारण से प्रार्थी किसान उसकी स्वयं की जमीन में स्वामित्व रूप से कार्य करने से वंचित किया जाता है और उनको कुछ परेशानी वाले मुकदमों में फंसा कर फिर कोर्ट फीस , कमीशन व किराया का दौर चलता है समय बहुत वर्षों तक किसान खुद लड़ता है लेकिन कुछ ऐसे दबंग किसान और कर्मचारी अधिकारी 18 या 19 वर्ष तक प्रार्थी किसान जिन्होंने अपने अधिकार की जमीन चक रोड ,नाली ,खलिहान अंबेडकर पार्क ,व तालाबों में हुए कब्जा व बवाल का निस्तारण आखिर क्यों नहीं हो पाता चित्रकूट जिले के कुछ रखबो मऊ, पटोरी ,सेसा सुबकरा आज से लगभग 20 वर्ष हुए 2001 के बाद धारा 52 भी लगा लेकिन किसानों का इतना नुकसान इस चकबंदी व्यवस्था से क्यों हुआ और इस के जिम्मेदार कौन है? और कब राजस्व परिषद के कर्मचारी व अधिकारी कुम्भकरणी नीद से कब जागकर दबंगों द्वारा कब्जा करने वाली जमीन को कब तक मुक्त कराते है। मोटा बेतन व अन्य सुविधाओं से लैस अधिकारी व कर्मचारी को बेतन सायद किसान व व्यापारी से टैक्स काटकर दिया जाता है तो राजस्व विभाग को पीड़ित के जमीनी मामले में निस्पछ, पारदर्शिता, सही व स्पस्ट,न्यायप्रियता अधिकारी के अनुसार की जाय तो किसान का फालतू समय मुकदमों लगता है उसकी बचत होगी।कुछ किसानों का कहना है कि प्रार्थनापत्र उपजिलाधिकारी जी को दे आते हैं तो उनकी परेशानी बढ़ जाती है जिसमें अन्नदाता ऐसा क्यों महसूस करते हैं क्या अधिकारी समाज के प्रभावशाली व्यक्तियों के आगे मुं क होकर भ्रामक स्थिति पैदा की जाती है जिससे समाज में किसान की व्यवस्था बिगड़ती है वास्तव में ऐसा हो रहा है जैसे 2 किसानों के खेत के बीच में बाहर की ओर से 100 मीटर 10 कड़ी चकरोड छूटी हुई है लेकिन उसके बाद चकरोड 10 कड़ी की ना होकर 5 कड़ी चकरोड लगभग 200 मीटर है इसके बाद दबंग किसानों द्वारा पूरी चकरोड और नाली को ही गायब कर दिया गया उसमें कब्जा कर लिया गया राजस्व के ट्रेसर के नक्शे में पैसा देकर बनवा दिया जाता है जिससे किसान जानता है कि यह चकरोड 10 कड़ी की है तो उसमें निकलते वक्त उनको कटीली तार भी लग जाती है और इससे एक मामला 17-12-19 को संपूर्ण समाधान दिवस मऊ चित्रकूट में दिया गया था जिसमें जिलाधिकारी महोदय चित्रकूट द्वारा संबधित अधिकारी को बकायदा आदेश दिया गया और ७ माह हो गए अभी तक किसान को चकरोड़ व नाली का सुख नहीं मिलने से नाराज हैं वैसे बिना रास्ते किसान की कुछ जमीन वगैर जोते पडी रह जाती है या तो वह बेचारा आठ_दस बिस्वा जमीन फावड़े से खनकर सब्जी व फसल उगाते हैं।लेकिन किसान बन्जर जमीन को भी उपजाऊ बना देते हैं किसान की उपजो पर कर व कमीसन भी देश के विकास के लिए लगाया जाता है अतः राजस्व विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को वेतन देकर किसान की सेवा के लिए होते है न कि खुद किसान अधिकारी व कर्मचारी की सेवा करता है न्याय मांगता है फिर भी किसान को झूठा आश्वासन देकर न्याय न देकर पैसे कमाने के लिए धोखे डाला जाता है पर किसान क्या करे राजस्व परिषद का नियम ही समझ में आता और यदि मजिस्ट्रेट साहब पूरी तहसील से अच्छे लेखपालों की एक कमेटी बनाकर सम्पूर्ण तहसील की जो सरकारी जमीन है उसको दबंगों के कब्जे से मुफ्त कराकर एक नए आयाम स्थापित किया जा सकता है ।

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