शीर्षक आंवला नवमी और कनकधारा स्तोत्र
– लेखक आचार्य सत्यम व्यास वाराणसी(काशी) उत्तरप्रदेश
कार्तिक शुक्ल नवमी अर्थात् आंवला नवमी वह दिन है जब आदिगुरु शंकराचार्य ने एक वृद्ध महिला की सहायता करने के लिए स्वर्ण के आंवलों की वर्षा करवाई थी। इसलिए भी आंवला नवमी का महत्व है। यह दिन लक्ष्मी की प्राप्ति का दिन भी है। इस दिन कई लोग लक्ष्मीपूजन भी करते हैं। इस दिन शंकराचार्य ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी। इस वर्ष आंवला नवमी 12 नवंबर 2021 को है।
कथाओं के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक गांव में गए। वहां एक कुटिया के सामने जाकर भिक्षाम देहि की आवाज लगाई। वहां एक वृद्धा औरत अकेली रहती थी। वह अत्यंत गरीब थी। अपने लिए एक वक्त का भोजन भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाती थी। कभी-कभी तो उसे भूखा ही सोना पड़ता था। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह वृद्धा बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं। शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले।
ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे। इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती। शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतनी भेंट पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।