“पत्नी” एक शब्द नही समर्पण व प्रेम का प्रतीक है-आँचलिक ख़बरें-राजकुमार बरूआ

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लेखक- राजकुमार बरूआ
भोपाल

नारी के बारे में बात करना और उनके लिए नए शब्दों को खोज कर कुछ लिखना, सूर्य को दीपक दिखाने समान है। बात नारी के किसी भी रूप की की जाए
हर रूप में नारी पूर्ण एवं प्रेरणामयी है।
नारी ही तो पृथ्वी माता है, जो सबका बोझ उठाकर भी एक माता की तरह बच्चों को अपने गोद में रखकर ममता देते हुए उसका बोझ उठाती है।वात्सल्य लुटाते हुए प्रसन्न रहती है।
नारी की प्रशंसा में सभी लिखते है, परंतु मैं आज नारी के एक रूप के बारे में लिखने की कोशिश कर रहाँ हूँ जो औरो से अलग है। जी हां हिम्मत कर रहा हूं नारी के कई रूपों में से एक रूप “पत्नी” के विषय में लिखने की।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात को स्वीकार करता हूं कि,
पत्नी के रूप में नारी,समर्पण ,अपनापन, ममता, माया, मोह एवं निस्वार्थ भाव से सेवाभाव की जीती जागती तस्वीर है।यह शायद मेरा व्यक्तिगत मंतव्य है,जो नारी के अन्य रूप में देखने को कम मिलता है।
“पत्नी” एक उच्चारण ही नहीं बल्कि, एक आदमी के जीवन की सबसे बड़ी तपस्या का फल है, या दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन जीने के लिए सांसे या प्राण वायु है।
जब किसी व्यक्ति का जब विवाह होता है, शुरू में कुछ वर्षों तक पति पत्नी को एक दूसरे को समझने व जानने में बीत जाता है। अनकहे शब्दों को समझने में समय जरूर लगता है, पर पांच साल या दस साल बाद शब्दों की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती है। मन इतना एक दूसरे से जुड़ चुका होता है कि, बिन कहे भी सब कुछ कहा और सुना जा सकता है।
कई बार दोनों पास में नहीं होते,उसके बाद भी कुछ एहसास एक दूसरे के प्रति ऐसा बना रहता है जिससे दोनों के तन और मन से जुड़े रहते हैं। यह जो जुड़ाव है यही विवाहित जीवन का आधार है । अर्धनारीश्वर की प्राप्ति का मार्ग हैं ।समर्पण दोनों का एक दूसरे के प्रति सम्मान के साथ ,वास्तव में यही आलौकिक प्रेम और आन्नद है।
एक लड़की जब विवाह करके, अपने नए घर में आती है, उस घर को संपूर्ण रुप से अपना बनाकर आजीवन बिता देती है। सभी का मन जीतकर सब के प्रति समर्पित हो जाती है । कुछ वर्षों बाद वो मां भी बन जाती है। नौ महीने अपने गर्भ में रख कर एक बच्चे को जन्म देती है, बड़ा करती है। वह बच्चे बड़े होकर एक समय बाद अपने निर्णय खुद लेते हुए आगे बढ़ जाते हैं। लेकिन एक मां वहीं रह जाती है । उनको अपना बच्चा ही समझती है चाहे वह कितना भी बड़े हो जाएं।
पंरतु एक पत्नी का अपने पति के साथ जीवन अनगिनत वर्षों का होता है ,जिसमें एक पत्नी का समर्पण अपने पति के लिए आजीवन होता है।
इस रिश्ते के बारे में बात करना सूरज को दीपक दिखाने समान है ।
मेरा यह मानना है कि ,एक पुरुष का भी पूरा जीवन अपनी पत्नी के लिए ही समर्पित होता है ,क्योंकि पत्नी तन मन और सम्मान समर्पित करता है , वही पति अपनी सारी संपत्ति और आजीवन कमाया धन पत्नी और बच्चों के पीछे खर्च करता है।
एक नारी पत्नी के रूप में जितनी समर्पित है ,उतना किसी भी अन्य रिश्ते में नही है। पत्नी,पति के साथ जीती और अपने पति के लिए ही जीती है।पत्नी की तुलना किसी और रूप से करना तो नहीं चाहिए और ना की जा सकती।
पत्नी ही एक पुरुष के जीवन को सुंदर सरल और सुखमय बना सकती है। पत्नी घर संभाल लेती है तो पति बेफिक्र होकर बाहर काम कर लेता है ।जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते है मगर जो समर्पण पत्नी का अपने पति के लिए है ,उसकी व्याख्या तो की ही करना कठिन है।
शायद इस विषय पर यह लेख बहुत ही लंबा या बड़ा हो सकता है ,इसलिए मैं इस बात पर यही विराम लगाने की कोशिश करता हूं। शायद मैं जो कहना चाह रहा हूं आप उसको मेरे शब्दों से समझ पाए ।

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