झुंझुनू-स्कूल में केवल हाजिरी लगाने के हर महीने के साढ़े तीन लाख खर्च-आंचलिक ख़बरें-संजय सोनी

Aanchalik Khabre
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झुंझुनू,30जुलाई। एक ओर जहां माध्यमिक और प्रारंभिक शिक्षा विभाग की स्कूलों में नामांकन की होड़ मची हुई है। वहीं दूसरी ओर संस्कृत स्कूल नामांकन को ही तरस रहे है। जी हां झुंझुनू की हम बात कर रहे है। जहां पर ऐसे भी स्कूल चल रहे है। जहां पर एक भी बच्चा नहीं है। लेकिन फिर भी स्कूल में लंबा चौड़ी फौज स्टाफ की कार्यरत है।

हम बात कर रहे है झुंझुनू जिले का पदमपुरा गांव और गांव की राजकीय उच्च प्राथमिक संस्कृत स्कूल। जहां भवन के साथ-साथ यहां पर स्टाफ भी पूरा है। प्रधानाध्यापिका है साथ में चार टीचर है। व्यवस्थाएं भी पूरी है। चाहे दरी पर बैठकर पढें या फिर टेबल कुर्सी पर। लेकिन नहीं है तो बच्चे। जी हां इस स्कूल में बीते दो सालों में एक भी बच्चे ने एडमिशन नहीं लिया। वजह शिक्षकों की आपसी राजनीति। स्कूल की प्रधानाध्यापिका तो खुले रूप से अपनी साथी शिक्षिकाओं पर आरोप लगा रही है कि वे आने वाले लोगों से अभद्रता करती है और उनकी अनुपस्थिति में सरपंच व अन्य ग्रामीणों से हाथापाई तक हो गई। इसके बाद ग्रामीणों ने स्कूल से मुंह मोड़ लिया है। प्रधानाध्यापिका ने अपने उच्चाधिकारियों पर भी आरोप लगाया है कि वे उनके पत्रों का जवाब नहीं देते। वहीं अपनी पीड़ा फोन पर बताती है तो उसके फोन भी को ब्लेक लिस्ट मेंडाल दिया।

पदमपुरा गांव की यह स्कूल किशोरपुरा पंचायत के अंतर्गत आती है। सरपंच रामनिवास और वार्ड पंच संजय झाझडिय़ा ने तो इस पूरी स्कूल को लेकर जो आरोप लगाए तो वो आपको भी चौंका देंगे। सरपंच और पंच का कहना है कि यह स्कूल नहीं बल्कि तमाशा है और शिक्षक पूरी शिक्षा पर धब्बा है। यहां के स्टाफ को लडऩे से फुर्सत मिले तो अभिभावकों से संपर्क कर बच्चे लाएं। उन्होंने बताया कि इस संदर्भ में पंचायत ने प्रस्ताव लेकर ज्वाइंट डायरेक्टर तक पत्र लिखा है ।लेकिन कोई कार्रवाईनहीं हुई। जबकि अब तो दो साल से स्कूल में एक बच्चा भी नहीं है। वहीं लाखों रुपए की तनख्वाह ये शिक्षक तमाशा कर ही ले जाते है।

इस संदर्भ में जब हमने संस्कृत शिक्षा विभाग के चूरू स्थित कार्यालय में सेवारत संभागीय प्रभारी राजेंद्रप्रसाद शर्मा से बातचीत की। तो वे भी कार्रवाई करने की बजाय बेबस नजर आए। उन्होंने कहा कि स्कूल को लेकर उनके पास भी पत्र आए हुए है। जिन्हें लेकर निदेशालय को भेजा गया है। कार्रवाई या फिर कोई भी कदम निदेशालय ही उठाता है। कुल मिलाकर चिट्ठियों के चक्कर में ही सरकार के के लाखों रुपए पानी में बह रहे है और विद्यार्थियों को भी शिक्षा नहीं मिल रही।

झुुंझुनू जैसे शिक्षिक जिले में संस्कृत स्कूलों की इस दशा को देखकर आप भी चौंक गए होंगे। नामांकन में यहां की माध्यमिक और प्रारंभिक विभाग की स्कूलों ने पूरे प्रदेश में लोहा मनवाया है तो वहीं संस्कृत विभाग की स्कूलें पलीता लगाने में कसर नहीं छोड़ रही है। अब यह देखने वाली बात होगी कि आखिरकार ऐसे कब तक संस्कृत शिक्षा विभाग अध्यापकों को बैठे बिठाए लाखों रुपए हर महीने बहाता है। क्योंकि यह पैसा कहीं ना कहीं आम जनता की गाढी कमाई का ही एक हिस्सा है और वह पानी की तरह फिजूल में बहाई जा रही है। बताया यह भी जा रहा है कि पदमपुरा स्कूल में एक महिला शिक्षक के कारण सारा का सारा बंटाधार है। यह महिला शिक्षक पूर्व में भी जहां कार्यरत थी। उसे भी ताला लगाकर ही आई थी। पिछले पांच साल का स्कूल का नामांकन इस प्रकार हुये। सन 2014-15 में 58, 2015-16 में 45, 2016 -17 में 34, 2017-18 में 33, 2018 -19 में शून्य, 2019-20 में शून्य (अब तक)।

प्रधानाध्यापिका राजपति आर्या 12 साल से इसी स्कूल में कार्यरत हैं। उनकी तनख्वाह हर महीने करीब 72 हजार 334 रुपए। उन्होने दो साल में बिना पढ़ाए ही सरकार से 17 लाख 36 हजार 16 रुपए उठा लिये। अध्यापक बजरंगलाल शर्मा 16 साल से इसी स्कूल में कार्यरत है। उनकी तनख्वाह हर महीने करीब 72 हजार 510 रुपए हैं। उन्होने दो साल में बिना पढाए लिए 17 लाख 40 हजार 240 रुपए उठा लिये हैं। अध्यापिका सरोज 12 साल से इसी स्कूल में कार्यरत है। उनकी तनख्वाह हर महीने करीब 70 हजार 210 रुपए है। उन्होने दो साल में बिना पढाए लिए 16 लाख 8 5 हजार 40 रुपए उठाये हैं।

अध्यापिका अनुजा पांच सालों से इसी स्कूल में कार्यरत है। उनकी तनख्वाह हर महीने करीब 67 हजार 378 रुपए हैं। उन्होने दो साल में बिना पढाए लिए 16 लाख 17 हजार 72 रुपए वेतन के उठाये हैं। अध्यापक रामसिंह तीन साल से इसी स्कूल में कार्यरत हैं।उनकी तनख्वाह हर महीने करीब 70 हजार 210 रुपए हैं। उन्होने भी दो साल में बिना पढाए लिए 16 लाख 8 5 हजार 40 रुपए उठाये हैं।

इस तरह दो साल में इस स्कूल के स्टाफ को वेतन के रूप में 84 लाख 63 हजार 408 रुपए का सरकारी खजाने से भुगतान के स्प में मिलना है। बीते साल तो एक भी बच्चा ना होने से ये टीचर आधे से ज्यादा तनख्वाह ले चुके है जो करीब करीब 50 लाख रुपए के करीब की है। वहीं इस बार भी एक बच्चा भी स्कूल नहीं आया है। ऐसे में इतनी राशि फिर से ले जाने को तैयार है।

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