नकारात्मकता पर सकारात्मकता की विजय, आरजेएस फेमिली ने दी आवाज-आंचलिक ख़बरें-RJS पाॅजिटिव मीडिया

Aanchalik Khabre
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सकारात्मक बनाएं अपना समाज
– लेखक पार्थ सारथि थपलियाल (आरजेएस स्टार रेडियो ब्राॅडकास्टर)
भारतीय संस्कृति में सकारात्मकता की बड़ी महत्ता दिखाई देती है। नकारात्मक चरित्र समाज मे बलशाली होने पर भी आदर्श नही बन पाए। रावण, अहिरावण, कुम्भकर्ण आदि बहुत बलशाली थे लेकिन सोच नकारात्मक थी। विद्वान होते हुए भी रावण मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हाथ मारे गए। विजया दशमी उसी विजय का पर्व है। जहां सत्य है वही विजय है।
महाभारत की सारी कहानी दुर्योधन की नकारात्मक सोच का ही परिणाम है। कंस की नकारात्मकता ही उसे मृत्यु के मार्ग पर ले गई। वर्तमान में भी जितने लोग अपनी नकारात्मकता के कारण कुछ समय के लिए सितारे की तरह चमके हों, उनका अंत अच्छा नहीं हुआ। वे समाज द्वारा तिरष्कृत ही हुए हैं। उन्हें कभी भी यश नहीं मिला। सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं होता।
इसलिए खुशहाल जीवन के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है।
भगवान बुद्ध , भगवान महावीर और गांधी जी के
सत्य और अहिंसा का मार्ग हमें सकारात्मकता की ताकत देता है। लेकिन नकारात्मक माहौल में सकारात्मक जीवन कैसे जीयें ?
हमारे मन में हर पल सैकड़ों भाव उपजते रहते हैं। उनमें से अधिकतर भाव तो बुद्धि भी रिकॉर्ड नहीं कर पाती । गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है-
चंचलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवदृढम
तस्याहं निग्रहम मन्ये वायोरिव सुदुष्करम।।
अर्थात मन बहुत चंचल और हठी स्वभाव वाला है ।बड़ा दृढ़ और बलवान है। इसको वश में करना वायु को रोकने के समान कठिन कार्य है। इसलिए हमें मन को समझना होगा। मन में उपजे अच्छे विचार ही आदमी में अच्छा करने का भाव पैदा करते हैं ।ऐसे व्यक्ति में धैर्य,साहस और परस्पर जीने की भावना विकसित होती है। परस्पर सम्मान की भावना बढ़ती है। उसकी सोच मानवीय हो जाती है।
दूसरी और मन में उपजे बुरे भाव जब विचार की नर्सरी में बढ़ते हैं,तो ऐसा इंसान इर्ष्या, द्वेश ,छल- कपट,और पर निंदा में जीना शुरु कर देता उसका यह स्वभाव उसे नकारात्मक सोच की ओर ले जाता है ।मन में सोच नकारात्मक होगी तो ऐसे व्यक्ति से अच्छे परिणाम की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। निराशा में जीने वाली व्यक्ति से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं ?
ऐसे मन के लिए श्री कृष्ण कहते हैं -मन को रोकना अच्छे कामों में लगाना असंभव तो नहीं लेकिन कठिन है. यह स्वभाव दृढ़ निश्चय के साथ अभ्यास और वैराग्य के साथ किया जा सकता है। किसी ने अपने गुरु से पूछा कि गुरूजी सकारात्मक जीवन और नकारात्मक जीवन करता है। गुरूजी ने उसे उदाहरण देकर समझाया। एक आदमी ने आम की गुठली जमीन में डाल दी। कुछ दिनों के बाद पौधा हुआ, कुछ सालों के बाद वह पेड़ हुआ। 7 या 8 साल में उसमें एक आध फल आने लगे। धीरे-धीरे पेड़ भी बड़ा हो गया 10 -12 साल में उस पर भरपुर फल होने लगे और लोग खाने लगे ।लोग उस की छांव में बैठने भी लगे ।चिड़ियों का रैन- बसेरा भी बन गया ।आदमी की मेहनत सफल हो गई ।
दूसरी ओर ,एक दूसरा आदमी उसी गांव में रहता था। गांव के पास घना जंगल काफी हरा-भरा था। बड़े-बड़े देवदार और शीशम के पेड़ इस जंगल में थे।वह दूसरा आदमी बहुत लालची था।
उसने अपने जैसे कुछ लोगों को लेकर इन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर पास के बाजार में बेचना शुरु कर दिया ।इस काम से उसे भारी मुनाफा हुआ । उसने अब इस जंगल में आरा मशीन भी लगा दी।दो- चार लोगों को रोजगार भी मिल गया ।धनबल पर वह पंचायत का चुनाव भी जीत गया । अब वह नाम और प्रसिद्धि पा रहा था। आदमी ने गुरू जी पूछा कि अब आप बताइए जब सफल दोनों हैं ,तो अंतर क्या है ? गुरुजी बोले -तुम्हें दूसरा आदमी सफल लगता है, क्योंकि वह धन बल में सफल हो गया। चुनाव जीत कर आने वाले समय में पार्षद, विधायक या सांसद भी बन जाएगा। अपने तिकड़मी स्वभाव से मंत्री भी बन जाएगा । सरकारी धन पर कब्जा करेगा और भ्रष्टाचार करेगा ।एक दिन वो शैतान बन भी बन जाएगा। लेकिन जंगल काटना अन्याय है ।वह प्रकृति का मानवता को उपहार है। जीव-जंतु ,पशु-पक्षी को आश्रय मिलता है। हमें प्राण वायु मिलती है ।उस व्यक्ति के लालच ने मानवता को नुकसान पहुंचाया ।वह अपने उद्देश्य में सफल तो रहा , लेकिन किस कीमत‌ पर ? गांधी जी कहते थे – ” हमारे साध्य ही नहीं बल्कि साधन भी शुद्ध होने चाहिए। प्रकृति में हमारे उपयोग के लिए सभी पर्याप्त हैं। लेकिन लालची के लिए नहीं।”
नीति का एक श्लोक है-
“अन्यायोपार्जितं वित्तं दश वर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्तेचैकादशे वर्षे समूलं स विनश्यति।”
अर्थात अन्यायपूर्ण ढंग से कमाया गया धन दस वर्ष तक ही ठहरता है । इन वर्षों में वह धीरे-धीरे धन मूल सहित नष्ट हो जाता है । ये उदाहरण अपने ढंग की नकारात्मकता को व्यक्त करता है। इस दौर में भी देर है ,लेकिन अंधेर नहीं है। शिक्षा बढ़ाने के उद्देश्य की आड़ में जो शिक्षण संस्थान चलाए जा रहे हैं ,उनके संचालकों के मन में छुपी नकारात्मकता तब पता चलती है ,जब वे सलाखों के पीछे होते हैं।
छल-कपट वाले बलात्कारी बाबा अपमान भरा जीवन जेलों में बिता रहे हैं।
नकारात्मकता सिर्फ यही नहीं कि ऐसा व्यक्ति काम के प्रति न करने का भाव रखें, बल्कि यह भी है कि जो काम वह कर रहा है , उसमें मर्यादा कितनी अपनायी जा रही है?
सकारात्मकता लोगों द्वारा स्वयं अपनाए जाने पर ही विकसित होगी ।दूसरों का कल्याण करने से पहले स्वयं को सक्षम बनाएं ।इसके लिए जरूरी है कि सूर्योदय से आधा घंटा पहले जगें। प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करें ।
दो गिलास सादा पानी या गुनगुना पानी पियें। शौच इत्यादि से निवृत होकर खुले में घूमें, अच्छे विचारों को मन ही मन दुहरायें। योग-ध्यान और व्यायाम करें। स्नान करें ।जिस भी रीति-रिवाज से चाहे कुछ देर ही सही ‌ ईश्वर का ध्यान करें। नाश्ता अच्छा करें और अपना दैनिक कार्य करें ।दिन का भोजन बारह बजे से दो बजे के मध्य अववश कर लें। रात का भोजन कम करें और आठ-नौ बजे तक भोजन कर लें। कुछ देर टहलें।दस बजे तक सो जाएं। सोने से पहले यह विचार भी कर लें कि आज के दिन क्या अच्छा किया है ?कुछ दिनों बाद आपको अच्छा परिवर्तन दिखाई देगा. यह ध्यान रहे कि हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं। ईश्वर ने चींटी के लिए कण की और हाथी के लिए मठा की व्यवस्था की है। निमित्त कोई भी हो सकता है। अच्छे भाव के साथ निष्ठा पूर्वक वह काम करें जिसमें आप लगे हैं ।सफलता को विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए ,लेकिन असफलता को धैर्य से देखना भी सीखिए। समस्याओं को संयम पूर्वक देखने की कोशिश करें ।बाधाओं की दीवार में सफलता का एक द्वार भी निकलता है। उस द्वार को खोजें । हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ह्यूस्टन, अमेरिका में स्वलिखित कविता का पाठ किया – “वो जो मुश्किलों का अंबार है
वही तो मेरे हौसलों की मीनार है”
यही सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास हमें बेहतर कार्य की शक्ति देते हैं।
किसी का उपहास करने से बचें। निंदा करना नकारात्मकता की पहली सीढ़ी है ।जो आज सोशल मीडिया में और मुख्यधारा की मीडिया में भरपूर उपलब्ध है। अपने टेलीविजन रेटिंग पॉइंट बढ़ाने की खातिर न्यूज़ एंकर का टोन नकारात्मक पाया जाता है । इसका नकारात्मक प्रभाव देश भर में पड़ रहा है ।जाति-धर्म-भाषा आदि बिंदुओं पर भड़काऊ विचार दिखाई जाते हैं । जो भारत पूरी धरती के लोगों को अपना कुटुंब मानता रहा है। नकारात्मकता के कारण उसमें कुछ लोग कमी लाने का प्रयास करते हैं। जबकि भारत ने हमेशा विश्व कल्याण की बात की है।
” सर्वे भवंतु सुखिना ,सर्वे संतु निरामया.
सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुखभाग भवेत”
अर्थात सब लोग सुखी रहें सभी निरोग रहें, सभी अच्छे दिखाई दें। किसी को किसी प्रकार का कष्ट ना हो।ऐसे विचार निश्चित ही सकारात्मक सोच को बढ़ाएंगे ।सोचने का एक तरीका निदा फाजली के इस शेर में भी है-
“घर से मस्जिद है बहुत दूर, चलो यूं कर लें ,किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए”

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