फोर्टिस हॉस्‍पीटल, शालीमार बाग ने रोबोटिक की मदद से एक जटिल गॉल ब्‍लैडर सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया

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शहजाद अहमद / नई दिल्ली

फोर्टिस हॉस्‍पीटल शालीमार बाग के डॉक्‍टरों ने रोबोटिक की मदद से एक जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक पूरा किया है। डॉ प्रदीप जैन, प्रिंसीपल डायरेक्‍टर एवं एचओडी – रोबोटिक/लैप जीआई एवं जीआई ओंकोलॉजी, बेरियाट्रिक एंड मिनीमल इन्‍वेसिव सर्जरी, फोर्टिस, फोर्टिस हॉस्‍पीटल शालीमार बाग ने हाल में एक 36 वर्षीय महिला की जटिल गॉल ब्‍लैडर रिमूवल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह काफी दुर्लभ और जटिल किस्‍म की सर्जरी थी जिसे मात्र 45 मिनट में पूरा कर लिया गया जबकि मरीज़ पिछले साल अगस्‍त से गॉलब्‍लैडर में पथरी की समस्‍या से पीड़‍ित थीं। मरीज़ ने उल्‍लेखनीय रूप से काफी जल्‍दी स्‍वास्‍थ्‍यलाभ किया और उन्‍हें सर्जरी के एक दिन बाद ही, बिना किसी जटिलता के चलते, छुट्टी दे दी गई।

इससे पहले, मरीज़ दिल्‍ली/एनसीआर के एक निजी अस्‍पताल में गॉलब्‍लैडर निकालने के लिए लैपरोस्‍कोपी करवाने गई थीं लेकिन बीच में ही उनकी सर्जरी को अधूरा छोड़ना पड़ा था क्‍योंकि उनका गॉलब्‍लैडर आसपास फैली छोटी और बड़ी आंत में बुरी तरह से फंसा हुआ था, और बाइल डक्‍ट भी फंसी थी। अगले 8-9 महीनों के दौरान दिल्‍ली/एनसीआर के कई अस्‍पतालों में बहुत से अन्‍य विशेषज्ञों से परामर्श के बावजूद, मरीज़ को इस दुर्लभ मामले के चलते लैपरोस्‍कोपिक नहीं करवाने की सलाह दी गई थी। आखिरकार, वह फोर्टिस शालीमार बाग में डॉ प्रदीप जैन से मिलीं जो रोबोटिक सर्जरी के अनुभवी एक्‍सपर्ट हैं। फोर्टिस शाालीमार बाग में भर्ती के बाद उनका सीटी स्‍कैन और पैट स्‍कैन किया गया और इलाज कर रही मेडिकल टीम ने रोबोटिक असिस्‍टैंट से उनका गॉलब्‍लैडर निकालने का फैसला किया।

मामले की जानकारी देते हुए डॉ प्रदीप जैन, प्रिंसीपल डायरेक्‍टर एवं एचओडी – रोबोटिक/लैप जीआई एवं जीआई ओंकोलॉजी, बेरियाट्रिक एंड मिनीमल इन्‍वेसिव सर्जरी, फोर्टिस, फोर्टिस हॉस्‍पीटल शालीमार बाग ने कहा, ”जब यह मरीज़ हमारे पास इलाज के लिए आयी थीं तो काफी तनाव और अवसाद में थीं क्‍योंकि उनके दो छोटे बच्‍चे हैं, और उन्‍हें कई अस्‍पतालों ने यह कह दिया था कि अधिक जोखिम के चलते उनकी लैपरोस्‍कोपिक सर्जरी नहीं की जा सकती। उनके गॉलब्‍लैडर की दीवार भी सख्‍त हो गई थी, और कैंसर की आशंका भी थी। यदि सचमुच कैंसर होता तो मरीज़ के बचने की संभावना काफी कम होती। साथ ही, अगर मरीज़ का समय पर इलाज नहीं किया जाता तो उनका गॉलब्‍लैडर आसपास के अंगों से और चिपक सकता था। हमने सफलतापूर्वक उनकी रोबोटिक सर्जरी की और सच तो यह है कि इस मामले ने रोबोटिक-असिस्‍टैंस से की जाने वाली सर्जरी, खासतौर से इस प्रकार की जटिल और चुनौतीपूर्ण प्रक्रियाओं में, काफी संभावनाओं से भरपूर है।”

श्री दीपक नारंग, फैसिलिटी डायरेक्‍टर, फोर्टिस हॉस्‍पीटल शालीमार बाग, ने कहा, ”पारंपरिक सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी काफी फायदेमंद होती है, और इससे प्रयोग के लिए लचीले उपकरणों के साथ-साथ बाइल डक्‍ट को ठीक प्रकार से देखने के लिए स्‍पेश्‍यलाइज्‍़ड तकनीकों का भी लाभ मिलता है। इस क्षेत्र में डॉ प्रदीप जैन के लंबे अनुभवों और विशेषज्ञता के चलते वे इस सर्जरी के लिए आदर्श पसंद बने। उनकी दक्षता का ही परिणाम था कि पारंपरिक लैपरोस्‍कोपी के लिहाज़ से पहले जो सर्जरी बेहद मुश्किल मानी जा रही थी वह सफल रही। अस्‍पताल के अनुभवी मेडिकल प्रोफेशनल्‍स और आधुनिक टैक्‍नोलॉजी जटिल मामलों में भी मरीज़ों के लिए सर्जरी के उच्‍चतम मानक सुनिश्चित करती है।”

भारत में 6.12% आबादी गॉलस्‍टोन्‍स से पीड़‍ित है (3% पुरुष और 9.6% महिलाएं)। हालांकि कुछ मामलों में कोई लक्षण दिखायी नहीं देता, वहीं बहुत से मामले बिना किसी निदान के तब तक छूटे रहते हैं जब तक कोई गंभीर लक्षण सामने नहीं आता। यदि इलाज न किया जाए तो गॉलस्‍टोन बढ़ सकता है और आगे चलकर कैंसरकारी भी हो सकता है। इनकी वजह से बाइल डक्‍ट भी प्रभावित हो सकता है, जो कई प्रकार की जटिलताओं जैसे कोलेडोकोलिटियासिस, कोलंगाइटिस तथा पैंक्रिया‍टाइटिस का भी कारण बन सकता है। गॉलब्‍लैडर कैासर भी काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्‍योंकि इसमें स्‍पष्‍ट रूप से लक्षण दिखायी नहीं देते और निदान में भी देरी हो सकती है।

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