राजेंद्र राठौर
एक सप्ताह देश के नाम कार्यक्रम में देशभर के अलग-अलग राज्यों से आए 350 एमबीबीएस छात्रों द्वारा झाबुआ जिले में सात दिवसीय स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया।
17 गांव में स्वास्थ्य शिविर लगाए गए।
350 विद्यार्थियों के साथ 40 डॉक्टर भी शामिल थे।
सेवांकुर भारत और शिवगंगा के संयुक्त तत्वाधान में जिले के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर लगाए गए। जिसमें विद्यार्थियों द्वारा ग्रामीणों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की जांच की गई और दवाइयां दी गई।
विद्यार्थियों द्वारा शिवगंगा के द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा जिस तरह से ग्रामीण क्षेत्रों में शिवजी का हलमा कार्यक्रम के अंतर्गत हुए कार्यों को देखा उसके बाद हमारी सोच ही बदल गई। जिस तरह से हम झाबुआ जिले को ग्रामीणों पिछड़ा समझ रहे थे वह गलत है यहां के रहवासी आज भी मिट्टी से जुड़े हुए हैं। शिवजी का हलमा के तहत किए गए कार्यों को देख कर हम शहरवासी अपने आप को काफी पिछड़ा महसूस कर रहे हैं। जिस तरह के यहां के रहवासी आज भी मिट्टी से जुड़े हैं वह अद्भुत है। यहां पर्यावरण और पानी बचाने के लिए किए जा रहे कार्यों की जितनी सराहना की जाए कम है। यहां के लोग बहोत मेहनती हैं और उनकी कार्य क्षमता हम लोगों से कहीं ज्यादा और अच्छी है। और यही कारण है कि यहां के लोगों की प्रतिरोध क्षमता काफी अच्छी है।
रविवार को मेडिकल छात्रों ने हाथीपावा की पहाड़ी पर हलमा कार्यक्रम रखा। मेडिकल विद्यार्थियों द्वारा यहां लगे पौधों को पानी दिया गड्ढे खोदकर पानी सहेजने के लिए संरचनाएं बनाई, सभी विद्यार्थियों ने परिश्रम कर मिट्टी से अपना जुड़ाव महसूस किया।
हाथी पांव पहाड़ी पर कार्यक्रम के समापन मैं उपस्थित पुलिस अधीक्षक अगम जैन द्वारा शिवगंगा के कार्यों का उल्लेख करते हुए बताया कि जिस तरह से शिवगंगा झाबुआ जिले में और अन्य जिले में पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण के कार्य सामाजिक समरसता के साथ कर रही है वह सराहनीय है शिवगंगा के कार्यों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है, शिवगंगा द्वारा सभी को साथ में लेकर किए जा रहे कार्यों से क्षेत्र में बदलाव आ रहा है। जिले में बसे आदिवासी अपने आप में सक्षम है वह अपनी कई बीमारियों का इलाज स्वयं ही कर लेते हैं। और दूसरों के प्रति इनका आदर और अपनापन देखकर कोई इन्हें पिछड़ा नहीं कह सकता। यहां के वासी अपनी समस्याओं को स्वयं ही हल करने में सक्षम है।
शिवगंगा के राजाराम कटारा ने बताया हलमा के तहत किए जा रहे कार्यों ने आज जन आंदोलन का रूप ले लिया है आज पूरे विश्व में जल और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश दे रहा है। हलमा कदम से कदम और
हाथ से हाथ मिला कर कार्य करने की प्रेरणा भी देता है।
शिवगंगा गुरुकुल में मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई।
एमबीबीएस छात्रों के साथ आए डॉक्टर नितिन ने बताया जब हम झाबुआ रहे थे, तब हमारे जहन में झाबुआ को लेकर पिछड़े क्षेत्र की छवि थी हमें लगा था यहां के लोग काफी पिछड़े होंगे लेकिन यहां आकर यहां की संस्कृति परंपरा और लोगों के आदर भाव ने हमारी सारी कल्पना को ही पलट कर रख दिया। यहां के रहवासी ग्रामीण जरूर है लेकिन उनके जीने के अपने तरीकों से वह हमसे भी आगे है यहां के रहवासी सक्षम और मेहनती हैं हमने अलग-अलग क्षेत्रों में शिविर लगाए जिसमें हमने शुगर, ब्लड प्रेशर जैसी अन्य बीमारियों का टेस्ट किया तो पता चला यहां के लोगों को बीपी शुगर की समस्या काफी कम है। इनकी मेहनत और परिश्रम की क्षमता काफी अच्छी है।
यहां के लोगों में हमें आधुनिकता का भी असर देखने को मिला है। समय के साथ चलना अपनी परंपराओं को निभाना अपनी संस्कृति के प्रति इनका प्यार और सम्मान हम शहर वासियों को यह एहसास कराता है की हम भागदौड़ की जिंदगी जी रहे हैं लेकिन धरती के साथ यहां के रहवासीयो का जुड़ाव हम से कहीं ज्यादा है हम खुद को पिछड़ा महसूस कर रहे हैं।
हम जब गांव में गए ग्रामीणों ने हमारा दिल से आदर सम्मान किया। हमने वहां रात भी गुजारी हमारे लिए भोजन की व्यवस्था भी ग्रामीणों द्वारा की गई। खाने में दाल पानीये, दाल बाटी, चावल, लाल मिर्च की चटनी, मक्का की रोटी अन्य चीजें थी। हम सभी ने साथ मिलकर भोजन किया। जब हम गांव से वापस आ रहे थे तो ग्रामीणों द्वारा हमें भावभीनी विदाई दी गई।
यहां के रहवासियों से हमने जीवन जीने की कई कलाए सीखी विषम परिस्थितियो को कैसे अपने पक्ष में किया जाए और कम आधुनिक संसाधनों के बिना भी खुश और स्वस्थ जीवन यापन कैसे किया जाए। झाबुआ जिले का यह भ्रमण यादगार रहेगा। यहां हमें सीखने को बहुत कुछ मिला जो हमारे जीवन को आसान और सफल बनाने में बहुत मददगार होगा।
झाबुआ जिले में हम बार बार आएंगे यहां हम जिन्हें कुछ सिखाने आए थे हम ही उनसे सीख कर जा रहे हैं।
शिवगंगा के द्वारा किए जा रहे सामाजिक कार्यों के उद्देश्य में हम भी अपना योगदान बार-बार देना चाहेंगे शिवगंगा द्वारा किए जा रहे कार्यों की जितनी सराहना की जाए कम है।
प्रेस वार्ता में डॉ नितिन, डॉ राजेश पवार शिवगंगा के राजाराम कटारा उपस्थित थे।
मुंबई से आई एमबीबीएस छात्रा रुचिता ने बताया आदिवासी परंपरा हलमा कार्यक्रम में जब हमने खुद परिश्रम किया तो हमें एहसास हुआ कि हम लोग जो शहरों में रहते हैं उनका मिट्टी के साथ जुड़ाव कितना कम होता है हमें तो यह भी नहीं पता होता है कि खेती केसे होती है। शहरों में सीमेंटेड रोड बने हुए हैं मिट्टी देखने को ही नहीं मिलती बड़ी बड़ी बिल्डिंग पास पास बनी हुए हैं जिस कारण सूर्य का प्रकाश भी हमें पर्याप्त मात्रा नहीं मिल पाता लेकिन यहां आकर जब हमने पेड़ों में पानी डाला खुदाई कर परिश्रम किया तो हमें एहसास हुआ कि हम इन लोगों से कितना पिछड़े हुए। शहरों में पास पास घर होते है यहां इनके खेतों में दूर-दूर घर बने हुए होते हैं। मुझे यहां आकर एहसास हुआ है कि दुनिया का सबसे कठिन काम खेती करना है।
एमबीबीएस छात्र चीनमय में का कहना है यहां आने से पहले हमें लग रहा था भाषा हम लोगों के बीच में एक बाधा बनेगी लेकिन यहां आकर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि गांव वालों से और बच्चों से मेरा तालमेल इतना अच्छा हो गया कि जब हम गांव से वापस आ रहे थे तो पूरा गांव हमें छोड़ने आ गया। बच्चे मुझे रोक रहे थे मुझे आने नहीं दे रहे थे। मुझे जब जब मौका मिलेगा मैं झाबुआ आकर इनके बीच में रहूंगा, मेरा बस चले तो मे हर महीने झाबुआ आकर इन लोगों के बीच में रहूं।