Ram Mandir के शिलान्यास में पहली ईंट रखने वाले कामेश्वर चौपाल नहीं रहे | Kameshwar Chaupal | Ramlala temple

News Desk
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राम मंदिर आंदोलन के नायक: कामेश्वर चौपाल का प्रेरणादायक सफर
राम मंदिर के शिलान्यास में पहली ईंट रखने वाले कामेश्वर चौपाल नहीं रहे
संघर्षों से भरा बचपन, फिर राम मंदिर आंदोलन के नायक बने कामेश्वर
प्रेरणा का स्रोत: साधारण जीवन से इतिहास रचने वाले कामेश्वर चौपाल

9 नवंबर 1989 की वह ऐतिहासिक सुबह, जब अयोध्या के आकाश में सूर्य की पहली किरण चमकी, पूरी धरती पर एक नई आशा और उत्साह का संचार हुआ। हज़ारों लोगों की भीड़ के बीच एक ऐसा पल आने वाला था, जो इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो जाएगा। उसी भीड़ में एक व्यक्ति शांत, स्थिर, लेकिन अपने अंदर असीम श्रद्धा और विश्वास लिए खड़ा था कामेश्वर चौपाल।

वही कामेश्वर चौपाल, जिन्होंने राम मंदिर के शिलान्यास के लिए पहली ईंट रखी। उनकी यह भूमिका केवल एक क्षणिक घटना नहीं थी, बल्कि यह उनकी लंबी तपस्या और संकल्प का प्रतिफल थी।

बचपन का सफर

कामेश्वर चौपाल का जन्म बिहार के सुपौल जिले के एक छोटे से गांव में हुआ। उनका बचपन संघर्षों और कठिनाइयों से भरा था। दलित समाज से होने के कारण उन्हें बचपन में भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन उनके माता-पिता ने उन्हें हमेशा सिखाया कि संघर्ष से ही जीवन को नया आकार मिलता है।

उनकी स्कूली पढ़ाई मधुबनी में हुई। यहीं पर उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का अध्ययन किया। रामायण की कहानियों ने उनके दिल में एक गहरी छाप छोड़ी। वह कहते थे, “राम हमारे आदर्श हैं, और उनके आदर्शों को अपनाना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।”

संघ से जुड़ाव और आदर्शों की ओर कदम
मधुबनी में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक कार्यकर्ता से हुई। यह मुलाकात उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुई। संघ ने उन्हें अपने आदर्शों और कर्तव्यों की ओर प्रेरित किया। धीरे-धीरे, वह संघ के कार्यों में सक्रिय हो गए और उन्हें मधुबनी जिले का प्रचारक बना दिया गया।Kmeshwar Chaupal Death Temple

राम मंदिर आंदोलन में भूमिका

1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन ने पूरे देश में एक नई चेतना जगा दी। यह आंदोलन केवल धार्मिक नहीं था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पहचान के लिए एक संघर्ष था। कामेश्वर चौपाल इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे। उनकी भूमिका इतनी महत्वपूर्ण थी कि जब 1989 में राम मंदिर के शिलान्यास के लिए पहली ईंट रखने की बात आई, तो विश्व हिंदू परिषद ने कामेश्वर को इस ऐतिहासिक कार्य के लिए चुना।

9 नवंबर 1989 को, हजारों लोगों की उपस्थिति में, उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के लिए पहली ‘राम शिला’ रखी। यह क्षण उनके जीवन का सबसे गौरवशाली पल था। उन्होंने कहा था, “यह मेरे लिए सिर्फ एक ईंट रखने का कार्य नहीं था, बल्कि यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा धर्म और कर्म था।”

दलित समाज के प्रतीक
कामेश्वर चौपाल दलित समुदाय से आते थे, और उनकी यह भूमिका समाज में एक बड़ा संदेश दे गई। राम मंदिर आंदोलन में उनकी भागीदारी ने दिखा दिया कि भारतीय समाज में सभी वर्गों का समान स्थान है। वह खुद कहते थे, “भगवान राम सबके हैं, और उनके आदर्शों को अपनाने का अधिकार सबको है।”

राजनीति और सामाजिक जीवन
राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद कामेश्वर चौपाल ने विश्व हिंदू परिषद छोड़कर 1991 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामा। उन्होंने दो बार संसदीय चुनाव लड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश वह दोनों बार हार गए। इसके बावजूद, उनकी पहचान एक मजबूत और प्रेरक नेता के रूप में बनी रही।

2002 से 2014 तक वह बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे। उनके कार्यकाल के दौरान उन्होंने समाज के पिछड़े वर्गों के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

जीवन के आखिरी दिन
पिछले कुछ महीनों से कामेश्वर चौपाल बीमार चल रहे थे। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। 6 फरवरी 2025 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, और अन्य प्रमुख नेताओं ने उनकी मृत्यु पर गहरा शोक व्यक्त किया।

उनकी प्रेरणा और विरासत
कामेश्वर चौपाल का जीवन केवल एक व्यक्ति का जीवन नहीं, बल्कि वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उन्होंने दिखाया कि कैसे एक साधारण व्यक्ति अपने संकल्प और कड़ी मेहनत से इतिहास रच सकता है।

उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद अपने आदर्शों पर अडिग रहना ही सच्ची सफलता है। वह न केवल राम मंदिर आंदोलन के नायक थे, बल्कि भारतीय समाज के लिए एक प्रेरक व्यक्तित्व थे।

उनके जीवन से हमें यह भी सीखने को मिलता है कि धर्म केवल पूजा का माध्यम नहीं, बल्कि यह हमारे कर्तव्यों और आदर्शों का मार्गदर्शक है। उनका यह कथन हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा:
“राम हमारे आदर्श हैं, और उनके आदर्शों को अपनाना ही हमारा सच्चा धर्म है।”

श्रद्धांजलि
कामेश्वर चौपाल के निधन से केवल राम मंदिर आंदोलन ही नहीं, बल्कि पूरे भारतीय समाज को एक अपूरणीय क्षति हुई है। उनकी यात्रा, उनके संघर्ष, और उनकी उपलब्धियां हर पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेंगी। उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

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