बिहार की राजनीति में एक बार फिर से चुनावी गर्मी तेज हो चुकी है। अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां अपनी रणनीति को धार दे रही हैं। इस दौड़ में सबसे ज्यादा सक्रियता दिखा रहे हैं राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव। दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके तेजस्वी यादव इस बार आरजेडी को केवल यादव-मुस्लिम (M-Y) समीकरण तक सीमित नहीं रखना चाहते। उनका मकसद पार्टी को हर तबके की आवाज़ बनाना है, ताकि पिछड़ों (ओबीसी), अति पिछड़ों (ईबीसी), दलितों और महिलाओं का व्यापक समर्थन मिल सके। इसके साथ ही तेजस्वी यादव एक पुरानी परछाई से भी मुक्ति पाना चाहते हैं – ‘जंगलराज’ की छवि से।
2020 के विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेजस्वी यादव को ‘जंगलराज का युवराज’ कहकर निशाना बनाया था। लालू-राबड़ी शासन के दौरान अपराध, भ्रष्टाचार और अराजकता के आरोपों को लेकर आरजेडी पर ‘जंगलराज’ का ठप्पा लग गया था। तेजस्वी यादव ने इस आरोप को हल्के में नहीं लिया। पिछली बार चुनाव के दौरान उन्होंने लालू-राबड़ी के कार्यकाल में हुई गलतियों के लिए माफी मांगी थी और पोस्टरों से अपने परिवार की तस्वीरें तक हटवा दी थीं। इस बार फिर से तेजस्वी यादव उसी छवि को सुधारने के लिए मैदान में हैं। उनका जोर है कि आरजेडी अब एक बदली हुई पार्टी है जो विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर काम करना चाहती है।
लालू यादव पिछड़ों के मसीहा माने जाते थे, लेकिन समय के साथ आरजेडी का समर्थन मुख्यतः यादव और मुस्लिम वोटरों तक सीमित होता गया। तेजस्वी इस समीकरण को बदलना चाहते हैं। उनका मकसद ओबीसी, ईबीसी और दलित समुदाय तक अपनी पहुंच मजबूत करना है। इसी क्रम में उन्होंने पिछली कुछ रैलियों में खासकर ईबीसी और दलितों को साधने की कोशिश की है।
22 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर आयोजित रैली में तेजस्वी ने खुलकर कहा कि कर्पूरी ठाकुर से उन्हें राजनीति की प्रेरणा मिली है। उन्होंने याद दिलाया कि जब आरजेडी नीतीश कुमार सरकार का हिस्सा थी, तब उनकी पार्टी ने पिछड़ों के लिए आरक्षण बढ़ाने का लगातार दबाव डाला था। 9 फरवरी को पटना में तेली समुदाय के लिए आयोजित रैली में भी उन्होंने खुलकर समर्थन मांगा। बिहार में तेली समुदाय ईबीसी का अहम हिस्सा है और इसकी आबादी लगभग 3 फीसदी है।
राहुल गांधी के जातीय गणना बयान का काउंटर अटैक
कुछ हफ्ते पहले पटना पहुंचे राहुल गांधी ने बिहार में हुई जातिगत गणना को फर्जी करार दिया था। इसे लेकर राज्य में राजनीतिक बहस तेज हो गई। तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर एक संतुलित रुख अपनाते हुए ओबीसी वोटरों को साधने में जुटे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी, राहुल गांधी के जातीय राजनीति के पैंतरे को काउंटर करते हुए अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं।
लालू यादव के लिए भारत रत्न की मांग: समर्थन या विवाद?
हाल ही में सहरसा में एक रैली के दौरान तेजस्वी यादव ने अपने पिता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को भारत रत्न देने की मांग की। उन्होंने दलील दी कि लालू यादव ने ऐसे दौर में दलितों और वंचितों की आवाज़ उठाई जब वे कुएं से पानी तक नहीं भर सकते थे। हालांकि, राजनीतिक विरोधियों ने चारा घोटाले में सजा पाए लालू यादव के इतिहास को याद दिलाकर इस मांग की आलोचना की। तेजस्वी का यह कदम दलितों और पिछड़ों को पार्टी के करीब लाने की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक जन विश्वास रैली में कहा कि आरजेडी अब केवल M-Y यानी मुस्लिम-यादव की पार्टी नहीं है। उन्होंने पार्टी के नए समीकरण को ‘MY-BAAP’ बताया। इसका अर्थ है:
M: मुस्लिम
Y: यादव
B: बहुजन
A: अगड़ा (सवर्ण)
A: आधी आबादी (महिलाएं)
P: गरीब (Poor)
तेजस्वी ने कहा, “जब हम ‘बाप’ कहते हैं तो उसमें बहुजन, अगड़े, महिलाएं और गरीब सभी शामिल हैं। हमारा मकसद सबको साथ लेकर चलना है। आप जितनी ताकत देंगे, हम उतना काम करेंगे।” इस नारे से साफ है कि आरजेडी अब हर तबके को जोड़ने की कोशिश कर रही है।
ईबीसी और दलितों को टिकट देने की तैयारी
जानकारी के मुताबिक, आरजेडी इस बार विधानसभा चुनाव में ईबीसी समुदाय के ज्यादा नेताओं को टिकट देने पर विचार कर रही है। इसके अलावा सामान्य सीटों से भी दलित उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की योजना है। 2020 के चुनाव में पार्टी ने ईबीसी वर्ग से तीन नेताओं को टिकट दिया था, लेकिन वे हार गए थे। इस बार तेजस्वी यादव कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
राजनीतिक समीकरण: चिराग पासवान और नीतीश कुमार की चुनौती
तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान से है। दोनों नेताओं का ईबीसी और दलित समुदाय में खासा प्रभाव है। चिराग पासवान अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं और दलित वोटरों को साधने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ नीतीश कुमार भी सामाजिक न्याय के एजेंडे के साथ ओबीसी और ईबीसी पर मजबूत पकड़ रखते हैं। ऐसे में तेजस्वी की मुहिम इन्हीं वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश है।
जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता
आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि वे गांव-गांव जाकर लोगों को बताएं कि लालू यादव के शासन में उन्हें क्या मिला था। कार्यकर्ता ईबीसी और दलित समुदाय के बीच तेजस्वी यादव का संदेश पहुंचाने में जुटे हैं। पार्टी का मानना है कि अगर जमीनी स्तर पर यह संदेश सही ढंग से पहुंचा, तो इसका फायदा चुनाव में जरूर मिलेगा।
तेजस्वी यादव की नई राजनीति: सिर्फ सत्ता की चाह या बदलाव की कोशिश?
तेजस्वी यादव की नई रणनीति को कई लोग सत्ता पाने की कोशिश मानते हैं, तो कुछ इसे बिहार की राजनीति में एक सकारात्मक बदलाव के तौर पर भी देख रहे हैं। ‘जंगलराज’ की छवि से बाहर निकलकर यदि आरजेडी वाकई में विकास, शिक्षा और रोजगार जैसे मुद्दों पर फोकस करती है, तो यह पार्टी के लिए भी फायदेमंद होगा और बिहार के लिए भी।
आगामी विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के राजनीतिक करियर के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं। ओबीसी, ईबीसी और दलित वोट बैंक को साधने के लिए उन्होंने जो कवायद शुरू की है, वह कितनी सफल होगी, यह वक्त बताएगा। लेकिन एक बात तो साफ है कि तेजस्वी यादव इस बार किसी भी मोर्चे पर ढिलाई देने के मूड में नहीं हैं। ‘जंगलराज का युवराज’ का तमगा हटाने से लेकर ‘MY-BAAP’ के नारे तक, तेजस्वी यादव ने हर मोर्चे पर तैयारी शुरू कर दी है। बिहार के मतदाता अब तय करेंगे कि तेजस्वी की यह मेहनत वोटों में तब्दील होती है या नहीं।