मंगल पाण्डेय: क्रांतिकारियों का क्रांतिकारी – 198वीं जयंती पर विशेष

Aanchalik Khabre
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मंगल पाण्डेय

 कौन हैं वो महा क्रांतिकारी?

किसे कहा जाता है क्रांतिकारियों का क्रांतिकारी
जी हाँ कोन है वो महा क्रन्तिकारी जिसकी आज 198 वी जयंती है
दरअसल हम
महा क्रांति कारी मंगल पाण्डेय जी की बात कर रहे है
अंग्रेजो का वह सिपाही जिसने अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ ही क्रांति का बिगुल फूंक दिया था

भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम का अग्रदूत

दोस्तों महाक्रन्तिकारी मंगल पाण्डेय उन क्रांतिकारियों में से है जिन्होंने अपने दम पर भारत के पहले स्वंत्रता संग्राम का बिगुल फूंक दिया था
जी हाँ दोस्तों मंगल पाण्डेय से शुरू अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह पूरे देश में फैलकर 1857 की पहली आजादी की लड़ाई के रूप में बदल गया

क्या आप जानते हैं मंगल पांडे पर बनी फिल्म और किताब के बारे में?

आपने यूँ तो मंगल पाण्डेय के विषय में बहुत कुछ पढ़ा सुना होगा
मगर क्या आपको पता है एक एक्टर ने उन पर प्रभावित होकर कर डाला था एक फिल्म का निर्माण
क्या आप जानते किस लेखक ने मंगल पाण्डेय को कहा था महा क्रन्तिकारी और लिख डाली एक महत्व पूर्ण किताब
और क्यूँ जल्लाद मंगल पाण्डेय को फांसी नहीं देना चाहते थे
आज हम इस विडियो के जरिये मंगल पाण्डेय के जीवन से जुड़े ऐसे ही रोचक किस्सों को बतायेगे

मंगल पांडे का जन्म और सैन्य जीवन की शुरुआत

दरअसल आज यानी 19 जुलाई को देश में आजादी की लड़ाई का पहली बार शंखनाद करने वाले अमर शहीद मंगल पांडेय की 198वीं जयंती है। आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में हुआ था
उन्हें एक उच्च जाति के ब्राह्मण परिवार में धर्म और संस्कारों से भरी परवरिश मिली।
1849 में उन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सिपाही के रूप में अपनी सेवा शुरू की

कारतूस और धार्मिक आस्था का अपमान

लेकिन जल्द ही अंग्रेजों के अन्याय और भारतीय सैनिकों के धार्मिक अपमान ने उनके भीतर विद्रोह की चिंगारी जला दी
अंग्रेजों ने एनफील्ड राइफलों के लिए जो नए कारतूस दिए, उनमें गाय और सूअर की चर्बी लगी होने की खबर फैल गई
सिपाहियों को इन्हें मुंह से काटना पड़ता था, जिससे उनके धर्म और आस्था का अपमान होता था
ब्रिटिश सरकार ने इसे अफवाह बताया, लेकिन बाद में जांच में सच्चाई सामने आ गई
यही वह चिंगारी थी, जिसने मंगल पांडे को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर कर दिया

29 मार्च 1857: विद्रोह का आरंभ

और ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसरों पर हमला कर विद्रोह की शुरुआत की।
यह विद्रोह केवल एक सैनिक बगावत नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ पूरे भारत में गुस्से का विस्फोट था।

फांसी से पहले जल्लादों का इनकार

18 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को फांसी दी जानी थी, ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर के सभी जल्लादों ने मंगल पांडेय को फांसी देने से इनकार कर दिया था।
जल्लादों ने अपने हाथ मंगल पांडेय के खून से न रंगे जाने की बात कहते हुए फांसी देने से इनकार किया था।
इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने कलकत्ता (कोलकाता) से चार जल्लादों को बुलाया।
मंगल पांडेय की फांसी की खबर सुनने के बाद कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ गुस्सा भड़क गया,
जिसे देखते हुए ब्रिटिश राज ने मंगल पांडेय को फांसी 18 अप्रैल को न देकर दस दिन पहले आठ अप्रैल को ही दे दी।

मंगल पांडे की शहादत और देशव्यापी विद्रोह

उनकी शहादत ने पूरे देश में आज़ादी की अलख जला दी।
दरअसल हम आपको बता दें 1857 का यह विद्रोह मेरठ से शुरू होकर दिल्ली, कानपुर और लखनऊ तक फैल गया था।
जिसमे झाँसी की रानी, बिरसा मुंडा जैसे क्रन्तिकारियों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था और अंग्रेजो को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया था

विद्रोह के व्यापक कारण

इसके पीछे सिर्फ धार्मिक अपमान नहीं, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक कारण भी थे।
लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति, भारतीयों का प्रशासनिक पदों से बहिष्कार, अंग्रेजों का आर्थिक शोषण और सामाजिक अपमान ने लोगों के अंदर असंतोष पैदा कर दिया था।
कंपनी की नीतियों ने किसानों, सैनिकों और शासकों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया।
यही विद्रोह भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला संगठित संघर्ष बना।

‘मारो फिरंगी को’ का पहला नारा

आज मंगल पांडे को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है।
मंगल पांडेय ने ‘मारो फिरंगी को’ का नारा भी दिया था, ऐसा कहा जाता है कि फिरंगियों के खिलाफ सबसे पहला नारा मंगल पांडेय के मुंह से ही निकला था।
यही वजह है कि मंगल पांडेय को स्वतंत्रता संग्राम का पहला क्रांतिकारी माना जाता है।

सम्मान और प्रेरणा का प्रतीक

इसी कारन दिनकर कुमार ने उन्हें महाक्रन्तिकारी का टाइटल देकर उन पर किताब भी लिखी है
1984 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया और 2005 में आमिर खान ने उनके जीवन पर मंगल पाण्डेय नामक फिल्म भी बनायीं
उनकी कुर्बानी ने भारत को स्वतंत्रता की ओर पहला कदम बढ़ाने की ताकत दी।

आज की पीढ़ी को संदेश

आज उनकी जयंती पर हम सब उन्हें नमन करते हैं।
आप मंगल पाण्डेय जैसे वीरों को कैसे याद करते है अपने विचार हमे कमेंट में जरूर बताएं।

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