नारी सम्मान Vs राजनीति: कब मिलेगी महिला को असली इज़्ज़त?

Aanchalik Khabre
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नारी सम्मान

भारत जैसे सांस्कृतिक देश में जहां नारी को शक्ति और सृजन का प्रतीक माना जाता है, वहीं आज भी नारी सम्मान केवल भाषणों और नारों तक सीमित रह गया है। चाहे घर हो, समाज हो या फिर राजनीति – हर जगह महिलाओं को दोयम दर्जे का ही व्यवहार झेलना पड़ रहा है। आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तो राजनीति में उनकी छवि को बार-बार निशाना बनाना एक चिंताजनक प्रवृत्ति बन चुकी है।

 

राजनीति में महिला अपमान: एक गंभीर सामाजिक विकृति:-

राजनीति में महिला अपमान अब कोई असामान्य घटना नहीं रह गई है। सत्ता की लड़ाई में जब मुद्दों की कमी पड़ती है, तब महिला नेता के पहनावे, चरित्र या पारिवारिक पृष्ठभूमि पर सवाल उठाना आम बात हो जाती है। यह प्रवृत्ति न केवल महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है, बल्कि एक लोकतांत्रिक समाज में महिलाओं की भागीदारी पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है

 

डिंपल यादव के पहनावे पर टिप्पणी: क्या यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अपमान नहीं?

हाल ही में एक बयान ने फिर से नारी सम्मान पर बहस को जन्म दे दिया। समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव के पहनावे को लेकर विवादस्पद टिप्पणी की गई, जिसमें उनके वस्त्रों को “अशोभनीय” कहा गया। यह टिप्पणी इस बात का उदाहरण है कि आज भी महिलाओं को उनके कपड़ों से आंका जाता है, न कि उनके काम या सोच से।

यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी महिला नेता को इस तरह निशाना बनाया गया हो। इससे पहले भी कई बार महिला राजनेताओं को उनके निजी जीवन या पहनावे के आधार पर ट्रोल किया गया है। यह घटना समाजवादी पार्टी विवाद के रूप में उभरकर सामने आई और पूरे देश में इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली।

 

प्रश्नों के घेरे में नारी सम्मान विमर्श

(सुधाकर आशावादी)

अपशब्द, गुंडागर्दी, नारी के विरुद्ध अपराध जैसे गंभीर विषयों पर अराजक तत्वों का समर्थन करने वाली समाजवादी पार्टी अपने ही बुने ज़ाल में फँसती नजर आ रही है। बच्चों से गलती हो जाती है, जैसे वाक्य बोलकर गुंडों की पीठ थपथपाने वाली समाजवादी पार्टी के इतिहास से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है। अपराधियों में पीड़ित और दबंग अपराधियों का जाति विभेद के अनुसार समर्थन व विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी मौलाना साजिद रशीदी द्वारा सांसद डिम्पल यादव के पहनावे पर की गई टिप्पणी पर पिछले पायदान पर खड़ी हो गई है। मौलाना साजिद का बयान सपा के लिए साँप के गले में छछून्दर सरीखा अटक गया है, जिसका न विरोध करते बन रहा है और न ही समर्थन करते।

सच यह भी है कि राजनीति केवल स्वार्थ की भाषा बोलती व समझती है। मान अपमान राजनीति के लिए कोई मायने नहीं रखते। यदि राजनीति में आत्मगौरव व आत्म सम्मान का कोई स्थान होता, तो समाजवादी पार्टी और उसके साथ विपक्ष में खड़े राजनीतिक दल लाभ हानि जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ मानकर समाजवादी पार्टी की सांसद श्रीमती डिम्पल यादव के पहनावे पर की गई टिप्पणी पर चुप्पी साधने हेतु विवश न होते । राजनीति में दोगलेपन का इससे निकृष्ट उदाहरण क्या होगा कि सपा सांसद श्रीमती डिम्पल यादव के पहनावे पर एक धर्म गुरु मौलाना साजिद रशीदी द्वारा की गई अशोभनीय टिप्पणी पर समाजवादी पार्टी व उससे जुड़ा गठबंधन शर्मिंदगी का अनुभव नहीं कर रहा है तथा अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए  न मौलाना साजिद रशीदी के विरुद्ध सड़कों पर उतर रहा है और न ही उनके विरुद्ध दंडनीय कार्यवाही की माँग कर रहा है। बात बात पर सरकार को घेरने वाले विपक्ष का अपने ही गठबंधन की सांसद की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले बयान का विरोध न करना यही सिद्ध करता है कि पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक की राजनीति करने का दंभ भरने वाला विपक्ष केवल मतलब की विघटनकारी राजनीति तक ही सीमित है। धार्मिक व्यक्ति की टिप्पणी का विरोध न करने के पीछे उसकी मजबूरी यही है, कि कहीं उसके विरोध के चलते अल्पसंख्यक वोट बैंक उससे न छिटक जाए। निस्संदेह नारी सम्मान, दलित उत्पीड़न तथा अन्य अनेक विषयों पर यदि दमनकारी तत्व सपा से जुड़े होते हैं, तब समाजवादी पार्टी के होंठ सिल जाते हैं। समझ नहीं आता कि संकीर्ण राजनीति के इस कुत्सित खेल में समाजवादी पार्टी कब तक अपनी प्रतिनिधि सांसद का अपमान सहने के लिए विवश रहेगी तथा अवांछित मुद्दों को बहस का विषय बनाने वाला विपक्ष इस अपमान का घूँट पीकर अपमानित क्यों नहीं हो रहा है ?

 

मौलाना साजिद रशीदी का बयान: क्या धार्मिक मंच भी नारी सम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं?

राजनीति के साथ-साथ धार्मिक मंचों से भी नारी सम्मान को चोट पहुंचाने वाले बयान अक्सर सुनाई देते हैं। हाल ही में मौलाना साजिद रशीदी ने एक सार्वजनिक मंच से महिलाओं के पहनावे पर विवादस्पद टिप्पणी की। उनका कहना था कि “आज की महिलाएं अश्लीलता फैला रही हैं और इसके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहिए।”

ऐसे बयान न केवल महिलाओं की आज़ादी पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि धार्मिक मंचों से भी महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं मिल पा रहा है। जब धर्म और राजनीति दोनों मिलकर महिलाओं को कठघरे में खड़ा करें, तो यह स्थिति और भी भयावह हो जाती है।

 

नारी सम्मान: शब्दों से अधिक व्यवहार में ज़रूरी:-

आज हर राजनीतिक पार्टी अपने घोषणापत्र में नारी सम्मान की बात करती है। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान शुरू किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही है। संसद से लेकर पंचायत तक, महिलाओं की आवाज़ को या तो दबाया जाता है या फिर नजरअंदाज़ किया जाता है।

नारी सम्मान का मतलब सिर्फ सीटें आरक्षित करना या चुनाव प्रचार में महिलाओं का इस्तेमाल करना नहीं है। इसका असली अर्थ है – महिला की सोच, आत्मनिर्भरता, निर्णय क्षमता और उसके निजी चुनावों का सम्मान करना।

 

राजनीति में महिलाओं के लिए दोहरे मापदंड क्यों?

जब एक पुरुष नेता तर्क करता है या तीखे सवाल करता है, तो उसे “आक्रामक” या “मजबूत” कहा जाता है, लेकिन वही काम अगर कोई महिला नेता करे तो उसे “अभिमानी”, “बोलने में बदतमीज”, या फिर “शो ऑफ” कह दिया जाता है। यह सोच साफ़ दिखाती है कि राजनीति में महिलाओं के लिए अब भी नारी सम्मान एक उपहास बनकर रह गया है।

कई बार महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए उनके परिवार के नाम का सहारा लेना पड़ता है, और जब वे जीत जाती हैं, तो उनके निर्णयों को भी उनके पति या पिता से जोड़ दिया जाता है। यह रवैया महिलाओं की पहचान को लगातार धुंधला करता है।

 

सोशल मीडिया ट्रोलिंग: डिजिटल युग में भी अपमान:-

सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की आज़ादी को एक नया मंच दिया है, लेकिन यह मंच महिलाओं के लिए अधिक अपमानजनक साबित हो रहा है। खासकर महिला नेताओं को उनके काम से ज्यादा उनके कपड़ों, हाव-भाव और आवाज़ पर ट्रोल किया जाता है।

हाल ही में हुए समाजवादी पार्टी विवाद और डिंपल यादव पहनावा टिप्पणी ने यह साबित कर दिया कि नारी सम्मान की बात केवल दिखावा है। मौलिक मुद्दों से भटककर महिलाओं की छवि पर हमला करना राजनीति की सबसे घिनौनी चाल बन चुका है।

 

क्या बदलेगा यह परिदृश्य?

जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक किसी भी कानून, नीति या आरक्षण का कोई वास्तविक असर नहीं होगा। जरूरी है कि बच्चों को स्कूलों में नारी सम्मान का सही अर्थ सिखाया जाए। धर्मगुरुओं से लेकर राजनीतिक नेताओं तक को यह समझना होगा कि महिला का सम्मान उसके कार्यों और विचारों से किया जाए, न कि कपड़ों या रिश्तों से।

 

निष्कर्ष: नारी सम्मान – अब सिर्फ नारा नहीं, कार्यनीति बने

नारी सम्मान को अब केवल भाषणों, नारों या वादों तक सीमित नहीं रखा जा सकता। यह एक सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक क्रांति की मांग करता है। जब तक महिलाओं को उनकी सोच, आत्मनिर्भरता और व्यक्तित्व के आधार पर इज़्ज़त नहीं दी जाएगी, तब तक हम एक समान और विकसित समाज की कल्पना नहीं कर सकते।

राजनीति को अब यह तय करना होगा कि वह महिला नेताओं को मोहरा बनाएगी या उन्हें नेतृत्व में बराबरी का स्थान देगी। डिंपल यादव पहनावा टिप्पणी, मौलाना साजिद रशीदी बयान, और समाजवादी पार्टी विवाद जैसे प्रसंग केवल घटनाएं नहीं, बल्कि आइना हैं उस मानसिकता का जो नारी सम्मान की सच्चाई को बेनकाब करती है।

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