“ब्लेड का रैपर और एक मर्डर मिस्ट्री: अमेठी की इलाइची देवी की हत्या की दिल दहला देने वाली कहानी”

Aanchalik Khabre
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Amethi

प्रस्तावना: जब एक ब्लेड बना कातिल तक पहुँचने की कड़ी

31 जुलाई की रात अमेठी जिले के एक शांत गांव में कुछ ऐसा घटा, जिसने पूरे इलाके को दहला दिया। सुबह एक खेत में एक महिला की लाश मिली—गला रेतकर बेरहमी से हत्या की गई थी। शुरुआत में कुछ भी साफ नहीं था, पर पुलिस को मिला एक मामूली सेविंग ब्लेड का रैपर, जो धीरे-धीरे इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने की कुंजी बन गया।

ये कोई फिल्म नहीं, हकीकत है। और ये कहानी बताती है कि कैसे क्राइम थ्रिलर की तरह एक-एक सुराग पुलिस को कातिल के करीब ले गया।

 घटनास्थल: फत्ते का पुरवा, पूरब गौरा गांवएक खामोश रात की खौफनाक सुबह

अमेठी जिले के जामो थाना क्षेत्र के गांव “फत्ते का पुरवा” में 1 अगस्त की सुबह लोगों को एक खेत में इलाइची देवी (45) का शव पड़ा मिला। गर्दन पर गहरे कट के निशान थे, जो सेविंग ब्लेड से वार का संकेत दे रहे थे।

कोई गवाह नहीं। कोई चीख नहीं सुनी गई। बस खेत की मिट्टी और एक छोटा सा रैपर, जो अपने भीतर बड़ा राज छुपाए बैठा था।

 सुराग 1: सेविंग ब्लेड का रैपरएक मामूली चीज़, जो बन गई गवाह

पुलिस को शव के पास एक सेविंग ब्लेड का रैपर मिला। इस बेहद मामूली चीज़ ने ही जांच की दिशा तय की। तुरंत स्थानीय दुकानों से पूछताछ शुरू हुई—कौन ब्लेड खरीदता है और क्यों?

गौरा चौराहे पर पान दुकानदार सुशील कुमार ने एक चौंकाने वाली जानकारी दी —
“31 जुलाई की शाम दादू मंगता नाम का शख्स मेरे यहां पान, सुपारी और एक ब्लेड लेकर गया था…”

 सुराग 2: पीछा, झगड़ा और झूठ की परतें

वहीं गांव के ही धर्मेंद्र मंगता ने बताया,
“मैंने देखा था कि रात को दादू अपनी पत्नी के पीछे-पीछे उसे मनाने की कोशिश कर रहा था… लेकिन थोड़ी देर बाद वो अकेला ही लौट आया…”

दूसरी ओर, दादू ने पुलिस को झूठ बोला —
“वो बाजार गई थी… लौटकर नहीं आई…”
लेकिन CCTV फुटेज और चश्मदीदों की गवाही ने उसकी झूठी कहानी को तार-तार कर दिया।

 पुलिसिया पेंच: जब कहानी बदल गई, सच सामने आया

अब पुलिस ने दादू मंगता उर्फ काना को हिरासत में लेकर सख्ती से पूछताछ की। कुछ देर तक बहाने, झूठ और चुप्पी…
लेकिन जब दबाव बढ़ा, तो सच खुद खुद निकल आया।

 हत्या की रात: झगड़ा, गुस्सा और एक खतरनाक फैसला

दादू ने पुलिस को बताया:
“उस रात मेरी पत्नी मुझसे मांस धोने को कह रही थी। हम दोनों के बीच झगड़ा हुआ। वो गुस्से में घर छोड़कर निकलने लगी। मैंने उसे रोका, लेकिन वो नहीं मानी। गुस्से में मैंने उसे धक्का दिया, वो गिर गई और बेहोश हो गई। फिर मैंने जेब से ब्लेड निकाला और उसका गला काट दिया…”

फिर उसने क्या किया?

  • पत्नी के कपड़े छेड़े, ताकि यह लगे कि कोई और अपराधी है।
  • ब्लेड को खेत के पास झाड़ियों में छिपा दिया।
  • और चुपचाप घर लौट आया, जैसे कुछ हुआ ही नहीं

 फरार नहीं, चालाक बना कातिल

दादू ने खुद को बिलकुल सामान्य बनाए रखा। पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट तक नहीं लिखवाई, बल्कि पूछे जाने पर कहता रहा कि वो बाजार गई थी।
पर एक ब्लेड, एक सीसीटीवी कैमरा, और कुछ चश्मदीदों की सच्चाई ने उसके बनाए झूठ के महल को गिरा दिया।

 घरेलू हिंसा: जब सबसे करीबी रिश्ता ही सबसे खतरनाक बन जाए

  • इस घटना ने एक बार फिर सामने रखा वो कड़वा सच जिसे समाज अक्सर नजरअंदाज करता है —
  • घरेलू हिंसा सिर्फ थप्पड़ या गाली नहीं होती; कई बार ये सीधे मौत तक पहुंच जाती है।
  • रिश्तों के भीतर पलने वाली नफरत, हताशा और गुस्सा अगर समय पर सुलझाया जाए, तो वो एक दिन जानलेवा बन जाती है।

 महिलाओं के खिलाफ अपराध: कब तक सहेगी वो?

इलाइची देवी की मौत एक संख्या बनकर दर्ज हो जाएगी, पर हर ऐसी मौत हमें ये सोचने पर मजबूर करती है —

  • क्या हमारा समाज महिलाओं की सुरक्षा को लेकर अब भी उतना असंवेदनशील है?
  • क्यों हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है, पर आवाज नहीं उठा पाती?
  • क्या हमारी चुप्पी इस अपराध में एक अदृश्य सह-अपराधी बन चुकी है?

 समाधान क्या है?

संवाद जरूरी है – परिवार के भीतर संवाद की कमी ही अक्सर सबसे खतरनाक विस्फोट बन जाती है।
सहायता पहुंचनी चाहिए – महिलाओं को कानूनी, सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य की मदद आसानी से मिले।
कानून का सख्त इस्तेमाल – IPC की धारा 302 (हत्या), 498A (घरेलू हिंसा), और 376 (बलात्कार) को मजबूत ढंग से लागू किया जाए।
समाज की सक्रिय भूमिका – आस-पास घरेलू हिंसा की कोई आहट भी मिले, तो रिपोर्ट करें। चुप न रहें।

 क्राइम थ्रिलर या समाज का आईना?

ये कहानी जितनी थ्रिलर जैसी है, उतनी ही हमारे समाज की मानसिकता की पोल खोलने वाली भी है। यहां हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं हुई —
विश्वास की हत्या,
रिश्ते की हत्या,
और समाज की जागरूकता की भी।

 अंतिम पंक्तियाँ: एक खामोश चीखजो अब भी गूंज रही है

इलाइची देवी की जिंदगी खत्म हो गई, लेकिन उसके साथ न खत्म हुई एक चीख — जो चुपचाप कहती है:

“अगर उस दिन किसी ने सुना होता… अगर किसी ने मदद की होती… अगर समाज ने आंखें मूंदी न होती…”

 आप क्या सोचते हैं?

  • क्या इस समाज की चुप्पी भी एक अपराध है?
  • क्या रिश्तों में गुस्से और अहंकार को कानून से पहले रोकने की कोशिश नहीं होनी चाहिए

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