Chand Bardai : दोस्ती, वीरता और शब्दों का योद्धा

Aanchalik Khabre
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Chand Bardai

Chand Bardai का परिचय

Chand Bardai मध्यकालीन भारत के एक ऐसे कवि थे, जिनका नाम वीरता, निष्ठा और दोस्ती की मिसाल के रूप में लिया जाता है। वे न केवल एक प्रतिभाशाली कवि थे बल्कि पृथ्वीराज चौहान के घनिष्ठ मित्र, सलाहकार और युद्धसाथी भी थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना पृथ्वीराज रासो है, जिसे हिंदी साहित्य का पहला महाकाव्य माना जाता है। इस रचना में उन्होंने अपने मित्र की वीरता, प्रेम, युद्ध और बलिदान की गाथा अमर कर दी। आज भी उनके नाम का उल्लेख होते ही वीरता और दोस्ती की तस्वीर हमारे मन में उभर आती है।

Chand Bardai

जन्म और शुरुआती जीवन

Chand Bardai का जन्म लगभग 1149 ईस्वी में लाहौर में हुआ। उस समय लाहौर एक प्रमुख सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र था। उनका असली नाम ‘पृथ्वीचंद’ था, लेकिन बाद में उन्हें ‘Chand Bardai’ के नाम से जाना जाने लगा। बचपन से ही वे तेज़-तर्रार, जिज्ञासु और पढ़ाई में रुचि रखने वाले थे। उन्हें कविता, इतिहास और भाषा का गहरा शौक था। उन्होंने संस्कृत, ब्रज भाषा, अपभ्रंश और कई क्षेत्रीय भाषाओं में महारत हासिल की। इसके साथ ही उन्होंने युद्धकला, नीति, व्याकरण और ज्योतिष का भी अध्ययन किया।

पृथ्वीराज चौहान से मुलाकात और दोस्ती

किशोरावस्था में ही Chand Bardai की मुलाकात अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान से हुई। कहते हैं कि यह मुलाकात एक दरबारी कार्यक्रम में हुई थी, जहां उन्होंने वीरता पर एक कविता सुनाई, जो पृथ्वीराज को बहुत पसंद आई। इसके बाद दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता गहरा होता गया। पृथ्वीराज ने उन्हें अपना राजकवि बना लिया। लेकिन उनकी भूमिका केवल कवि तक सीमित नहीं थी। वे युद्ध के समय भी साथ जाते, रणनीति बनाते और सैनिकों का मनोबल बढ़ाते थे।

पृथ्वीराज चौहान से मुलाकात और दोस्ती

किशोरावस्था में ही Chand Bardai की मुलाकात अजमेर के शासक पृथ्वीराज चौहान से हुई। कहते हैं कि यह मुलाकात एक दरबारी कार्यक्रम में हुई थी, जहां उन्होंने वीरता पर एक कविता सुनाई, जो पृथ्वीराज को बहुत पसंद आई। इसके बाद दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता गहरा होता गया। पृथ्वीराज ने उन्हें अपना राजकवि बना लिया। लेकिन उनकी भूमिका केवल कवि तक सीमित नहीं थी। वे युद्ध के समय भी साथ जाते, रणनीति बनाते और सैनिकों का मनोबल बढ़ाते थे।

पृथ्वीराज रासो – वीरता की अमर गाथा

Chand Bardai की सबसे प्रसिद्ध रचना पृथ्वीराज रासो है। यह महाकाव्य वीरगाथा काव्य की श्रेणी में आता है और इसमें वीरता, प्रेम और नीति का अद्भुत मिश्रण है। इसमें पृथ्वीराज चौहान के जन्म से लेकर उनके आखिरी समय तक की घटनाओं का वर्णन है। यह रचना ब्रज भाषा में लिखी गई है और इसमें अलंकार, छंद और लय का सुंदर मेल देखने को मिलता है।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मूल रासो लगभग 1,400 छंदों का था, लेकिन समय के साथ इसमें और सामग्री जोड़ी गई, जिससे इसके कुछ संस्करण 10,000 से भी ज्यादा छंदों के हो गए।

मुहम्मद गौरी और तराइन की लड़ाई

पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच कई युद्ध हुए, लेकिन सबसे प्रसिद्ध 1191 और 1192 ईस्वी में लड़ी गई तराइन की दो लड़ाइयां हैं। पहली लड़ाई में पृथ्वीराज ने गौरी को हरा दिया था, लेकिन दूसरी लड़ाई में धोखे और रणनीतिक चूक की वजह से वे हार गए। हार के बाद गौरी ने उन्हें बंदी बना लिया और गजनी ले जाकर उनकी आंखें फोड़ दीं।

गजनी में वीरता का आखिरी प्रदर्शन

जब Chand Bardai को यह खबर मिली, तो वे गजनी पहुंचे। उन्हें पता था कि पृथ्वीराज आवाज सुनकर निशाना लगा सकते हैं। एक दिन जब गौरी दरबार में बैठा था, उन्होंने एक कविता के जरिए पृथ्वीराज को इशारा दिया –

“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुलतान है, मत चूको चौहान।”

इसका मतलब था कि इतने फासले और ऊंचाई पर सुल्तान बैठा है, निशाना मत चूकना। पृथ्वीराज ने संकेत समझा और तीर चलाकर गौरी का अंत कर दिया। यह घटना उनकी मित्रता और साहस का प्रतीक है।

Chand Bardai का व्यक्तित्व और ज्ञान

वे सिर्फ कवि ही नहीं, बल्कि एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वे कई भाषाओं के ज्ञाता थे और अलंकार, छंद, व्याकरण, युद्धकला और ज्योतिष में निपुण थे। वे युद्धभूमि में सैनिकों के जोश को बढ़ाने के लिए कविताएं सुनाते थे और दरबार में प्रेम, सौंदर्य और नीति पर भी रचनाएं करते थे। उनकी रचनाएं सुनते ही लोगों के मन में साहस और गर्व की भावना पैदा हो जाती थी।

निजी जीवन

Chand Bardai ने कमला और गौरान नाम की दो महिलाओं से विवाह किया। उनके दस बेटे और एक बेटी थी। उनके बेटे जल्हण से उन्हें खास लगाव था। माना जाता है कि रासो को पूरा करने में जल्हण ने उनकी मदद की।

अंतिम समय और बलिदान

गौरी की हत्या के बाद कहा जाता है कि Chand Bardai और पृथ्वीराज ने तय किया कि वे दुश्मनों के हाथ जिंदा नहीं पड़ेंगे। कुछ कथाओं के अनुसार, दोनों ने एक-दूसरे को भाले से मारकर वीरगति पाई। यह घटना चाहे ऐतिहासिक रूप से सिद्ध न हो, लेकिन यह दोस्ती और निष्ठा की पराकाष्ठा का प्रतीक है।

साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्व

Chand Bardai का महत्व केवल एक कवि के रूप में नहीं है, बल्कि वे उस समय के समाज, संस्कृति और राजनीति के प्रत्यक्ष गवाह भी थे। उनकी रचना में उस दौर की युद्धकला, राजनीतिक परिस्थितियों, प्रेमकथाओं और लोकजीवन का सुंदर चित्रण मिलता है। भले ही इतिहासकारों में रासो की ऐतिहासिक सटीकता पर मतभेद हों, लेकिन इसका साहित्यिक महत्व अमूल्य है।

साहित्यिक और ऐतिहासिक महत्वजनमानस में प्रभाव

राजस्थान और उत्तर भारत के कई हिस्सों में आज भी गांवों में लोग रासो के अंश गाकर वीरता की याद ताजा करते हैं। मेले, उत्सव और लोकनाटकों में Chand Bardai और पृथ्वीराज की कहानियां सुनाई जाती हैं। उनके छंदों में वह लय और जोश है जो आज भी श्रोताओं के दिल को छू लेता है।

उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शब्दों की ताकत तलवार जितनी प्रभावशाली हो सकती है। उन्होंने अपने कवित्व से अपने मित्र की गाथा को अमर कर दिया। उनकी कहानी यह संदेश देती है कि सच्ची दोस्ती हर परिस्थिति में साथ निभाती है और अच्छा साहित्य सदियों तक जीवित रहता है। जब भी पृथ्वीराज रासो के छंद गाए जाते हैं, तो लगता है जैसे इतिहास फिर से जीवंत हो उठा हो और वीरता की वह गूंज हमारे आस-पास सुनाई दे रही हो।

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