रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि: दुनिया की सबसे लंबी चलती लड़ाई
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को अब कई साल हो चुके हैं। हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों विस्थापित हो चुके हैं, और एक पूरा इलाका खंडहर बन गया है। इस संघर्ष को खत्म करने के प्रयास लगातार चलते रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला।
- रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि: दुनिया की सबसे लंबी चलती लड़ाई
- ट्रंप की चेतावनी: नाटो का दरवाज़ा बंद
- क्यों नाटो में शामिल होना चाहता है यूक्रेन?
- ट्रंप और जेलेंस्की की मुलाकात: पुरानी कड़वाहट, नई उम्मीदें
- बहुपक्षीय बातचीत: क्या दुनिया मिलकर सुलह करा सकती है?
- ट्रंप की “धौंस” या रणनीति?
- जेलेंस्की की स्थिति: दबाव और अकेलापन
- क्या अमेरिका बदल रहा है अपनी विदेश नीति?
- यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी
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यही वजह है कि जब रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अलास्का में मुलाकात हुई, तो उम्मीदें जगीं कि शायद अब कुछ हल निकले। लेकिन इसके तुरंत बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की अमेरिका पहुंचे, तो चर्चा का रुख बदल गया।
ट्रंप की चेतावनी: नाटो का दरवाज़ा बंद
मुलाकात से पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने ट्विटर (अब X) हैंडल पर एक बयान दिया, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। उन्होंने साफ-साफ लिखा: “यूक्रेन को नाटो में कभी भी शामिल नहीं किया जा सकता।”
यह बयान केवल एक निजी राय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चेतावनी के रूप में देखा गया। इससे न सिर्फ यूक्रेन को झटका लगा, बल्कि नाटो के बाकी सदस्य देशों में भी असहजता फैल गई।

क्यों नाटो में शामिल होना चाहता है यूक्रेन?
यूक्रेन की कोशिश रही है कि वह नाटो (NATO – North Atlantic Treaty Organization) का हिस्सा बने, ताकि वह रूस के खिलाफ एक सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का हिस्सा बन सके।
नाटो की सदस्यता यूक्रेन के लिए राजनीतिक, सैन्य और रणनीतिक सुरक्षा की गारंटी है।
लेकिन अमेरिका जैसे बड़े सदस्य देश का विरोध यूक्रेन के लिए एक गहरी निराशा है
ट्रंप और जेलेंस्की की मुलाकात: पुरानी कड़वाहट, नई उम्मीदें
यह पहली बार नहीं है जब जेलेंस्की और ट्रंप आमने-सामने आ रहे हैं। इससे पहले भी जब जेलेंस्की व्हाइट हाउस आए थे, तो दोनों नेताओं के बीच तीखी बहस हुई थी। उस मुलाकात में दोनों की विचारधाराएं टकरा गई थीं, एक ओर ट्रंप का “अमेरिका फर्स्ट” रवैया, दूसरी ओर जेलेंस्की की सुरक्षा और समर्थन की मांग।
इस बार की मुलाकात पहले से ही तनावपूर्ण माहौल में हो रही है। लेकिन खास बात यह है कि इस बार बातचीत की मेज पर जेलेंस्की अकेले नहीं हैं,उनके साथ अन्य देशों के नेता भी मौजूद रहेंगे।
बहुपक्षीय बातचीत: क्या दुनिया मिलकर सुलह करा सकती है?
इस बार की वार्ता में केवल अमेरिका और यूक्रेन ही नहीं, बल्कि अन्य यूरोपीय और सहयोगी देश भी शामिल हो रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य स्पष्ट है रूस-यूक्रेन युद्ध को किसी शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में ले जाना।
हालांकि ट्रंप का रुख यह दर्शाता है कि अमेरिका युद्ध को समाप्त तो करना चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों पर।
ट्रंप की “धौंस” या रणनीति?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का जेलेंस्की को नाटो न join करने की चेतावनी सिर्फ धमकी नहीं, बल्कि एक रणनीतिक चाल भी हो सकती है। हो सकता है कि वे रूस को यह संदेश देना चाहते हों कि अमेरिका अब यूक्रेन को नाटो में लाने का इरादा नहीं रखता ताकि रूस शांत रहे।
दूसरी ओर, यह भी संभव है कि ट्रंप वास्तव में अमेरिका की सैन्य ज़िम्मेदारियों को सीमित करना चाहते हैं जैसा कि वह पहले भी कई बार कह चुके हैं।
जेलेंस्की की स्थिति: दबाव और अकेलापन
राष्ट्रपति जेलेंस्की के लिए यह समय बेहद कठिन है। एक ओर रूस का लगातार हमला, दूसरी ओर पश्चिमी सहयोगियों का बदलता रुख। अमेरिका से स्पष्ट समर्थन न मिलना यूक्रेन की रणनीति पर असर डाल सकता है।
अब जब अमेरिका ने संकेत दे दिया है कि वह नाटो में यूक्रेन की सदस्यता को मंजूरी नहीं देगा, तो जेलेंस्की के पास विकल्प सीमित हो गए हैं।
क्या अमेरिका बदल रहा है अपनी विदेश नीति?
ट्रंप के बयानों और हालिया कदमों से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अमेरिका अब “विश्व का पुलिस वाला” बनने की भूमिका से पीछे हट रहा है।
“अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत ट्रंप ऐसे हर गठबंधन पर सवाल उठाते रहे हैं जिसमें अमेरिका को भारी लागत उठानी पड़ती है।
यूक्रेन पर यह नीति बहुत सीधा असर डाल रही है।
यह सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी
ट्रंप और जेलेंस्की की यह मुलाकात दुनिया की राजनीति के नए संतुलन का संकेत हो सकती है।
जहां एक तरफ युद्ध को खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी ताकतें अपनी शर्तों पर दुनिया को चलाना चाहती हैं।
यह केवल एक “धौंस” नहीं थी, यह उस नई विश्व व्यवस्था की झलक थी, जिसमें पुराने सहयोग और समझौते अब उतने मज़बूत नहीं रह गए हैं।
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