Ashok Mahto : बिहार के एक विवादित किंवदंती का सच

Aanchalik Khabre
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बिहार की धरती ने एक से बढ़कर एक महान और विवादास्पद व्यक्तित्वों को जन्म दिया है। इन्हीं में एक नाम अत्यधिक चर्चित रहा है — Ashok Mahto। एक ओर जहाँ उन्हें गरीबों का रॉबिनहुड और समाज का मसीहा माना गया, वहीं दूसरी ओर वे अपराध की दुनिया में कुख्यात “गैंगस्टर” के रूप में भी पहचाने गए। Ashok Mahto की कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस सामाजिक व्यवस्था की है, जिसने उन्हें जन्म दिया, पालापोसा और अंततः या तो खलनायक बना दिया या नायक।


Ashok Mahto का प्रारंभिक जीवन

Ashok Mahto का जन्म बिहार के नवादा जिले में एक अत्यंत पिछड़े और दलित परिवार में हुआ था। उनके जन्म की सही तिथि विवादित है, लेकिन माना जाता है कि उनका बचपन गरीबी, भेदभाव और अन्याय के माहौल में बीता। शिक्षा से बहुत अधिक जुड़ाव नहीं था, लेकिन उनमें नेतृत्व की अद्वितीय क्षमता शुरू से ही झलकती थी।

उनकी जाति और वर्ग के कारण उन्हें सामाजिक सम्मान नहीं मिला, जिससे उनके भीतर व्यवस्था के प्रति गहरी असंतोष की भावना पनपी। यही असंतोष आगे चलकर उनके जीवन की दिशा तय करने वाला बना।


सामाजिक और जातीय संघर्ष

बिहार के नवादा, शेखपुरा और नालंदा क्षेत्र लंबे समय से भूमिहार और अन्य सवर्ण जातियों के प्रभुत्व में रहे हैं। दलित और पिछड़ी जातियों के लोग अक्सर शोषण का शिकार होते थे। Ashok Mahto ने इस सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई, लेकिन धीरे-धीरे यह संघर्ष अपराध की दिशा में मुड़ता चला गया।

उनकी मुठभेड़ लड्डन मुखिया और उसके गुर्गों से हुई जो सवर्ण बाहुबलियों में गिने जाते थे। यह संघर्ष केवल व्यक्तिगत नहीं था, यह दो सामाजिक शक्तियों के टकराव का प्रतीक बन गया।


Ashok Mahto गैंग का उदय

साल 2000 के आसपास Ashok Mahto और उनके साथी रणवीर महतो ने अपने गैंग की नींव रखी। इस गैंग ने खुद को ‘दलितों का संरक्षक’ बताया, जबकि पुलिस के रिकॉर्ड में वे हत्याओं, लूट, अपहरण और रंगदारी के आरोपी बने।

Ashok Mahto ने नवादा जिले को अपना मुख्य ठिकाना बनाया और यहाँ से उन्होंने कई बाहुबली नेताओं और गैंगस्टरों को चुनौती दी। उन्होंने पुलिस थानों पर हमले किए, जेल से फरार हुए, और अपनी गैंग को एक अजेय ताकत बना दिया। उनके समर्थक उन्हें ‘गरीबों का भगवान’ मानने लगे, वहीं पुलिस के लिए वे सिरदर्द बन चुके थे।


जेल ब्रेक और चर्चित घटनाएँ

2002 में Ashok Mahto की गिरफ्तारी के बाद उन्हें नवादा जेल में रखा गया था। लेकिन 2002 की रात को उनके गैंग ने जेल पर धावा बोल दिया और Ashok Mahto समेत कई अपराधियों को छुड़ा लिया। यह बिहार के इतिहास की सबसे चर्चित जेलब्रेक घटनाओं में से एक मानी जाती है।

इसके बाद, उन्होंने लड्डन मुखिया के कई करीबियों को मार गिराया, जिससे उन्हें “सामाजिक बदला लेने वाला योद्धा” का दर्जा भी मिला।


Ashok Mahto बनाम लड्डन मुखिया

Ashok Mahto और लड्डन मुखिया की दुश्मनी बिहार की अपराध गाथा में एक प्रमुख अध्याय है। लड्डन मुखिया भूमिहार जाति से थे और वर्षों तक नवादा पर आतंक का शासन चलाते थे। जब Ashok Mahto ने उन्हें चुनौती दी, तो यह महज दो गैंगों का युद्ध नहीं, बल्कि सामाजिक सत्ता का संघर्ष बन गया।

2004 में हुए खूनखराबे में कई निर्दोषों की जान गई, लेकिन Ashok Mahto ने इसे ‘सामाजिक क्रांति’ बताया। यह द्वंद्व कई वर्षों तक चला और मीडिया में लगातार सुर्खियाँ बटोरता रहा।


राजनीतिक संरक्षण और चुनावी समीकरण

बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का दखल कोई नई बात नहीं। Ashok Mahto के समर्थक उन्हें चुनाव लड़वाने की मांग करने लगे। उन्हें राजद, जदयू और अन्य दलों के नेताओं से समर्थन मिला। कई नेताओं ने उन्हें परोक्ष रूप से “समाज का प्रतिनिधि” कहा, और यह भी अफवाहें फैलीं कि उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था।

कई बार ऐसा कहा गया कि यदि Ashok Mahto चुनाव लड़ें, तो वे भारी बहुमत से जीत सकते हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि वे अपराधी होने के बावजूद एक “आंदोलन” बन चुके थे।


सामाजिक छवि: नायक या खलनायक?

Ashok Mahto की छवि दो ध्रुवों में बंटी हुई है। एक ओर गरीब, पिछड़े और दलित वर्ग के लोग उन्हें सामाजिक न्याय का मसीहा मानते हैं। वहीं पुलिस और न्याय व्यवस्था उन्हें एक खतरनाक अपराधी के रूप में देखती है।

उनके द्वारा किए गए कई काम — जैसे भ्रष्ट अधिकारियों को धमकाना, अमीरों से वसूली करके गरीबों की मदद करना — Robin Hood की छवि गढ़ते हैं, लेकिन साथ ही उनकी हिंसात्मक गतिविधियाँ उन्हें अपराधी भी सिद्ध करती हैं।


Social Media और Ashok Mahto

Ashok Mahto पर कई डॉक्युमेंट्री, न्यूज़ रिपोर्ट्स और लेख लिखे गए हैं। हिंदी अखबारों और टेलीविज़न चैनलों ने उन्हें कभी खतरनाक गैंगस्टर तो कभी क्रांतिकारी की तरह प्रस्तुत किया। मीडिया की इस दोहरी भूमिका ने उनकी छवि को और जटिल बना दिया।

उनकी कहानी को लेकर एक वेब सीरीज बनाने की भी चर्चा रही है, जहाँ उनकी जिंदगी के स्याह और उजले पक्षों को दर्शाया जाएगा।


वर्तमान स्थिति और रहस्यमयी गायब

Ashok Mahto की गिरफ्तारी के बाद से उनकी गतिविधियाँ गुप्त हो गईं। कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि वे जेल में हैं, जबकि कुछ अफवाहें बताती हैं कि उन्होंने राजनीतिक डील करके किसी सुरक्षित जगह पर शरण ली है।

उनकी अनुपस्थिति ने उन्हें और भी रहस्यमयी बना दिया है। आज भी उनके समर्थक उनका नाम श्रद्धा और क्रांति के प्रतीक के रूप में लेते हैं।


Ashok Mahto की विरासत

Ashok Mahto की विरासत केवल अपराध तक सीमित नहीं है। उन्होंने उस सामाजिक व्यवस्था की कमजोरी को उजागर किया, जो जाति, गरीबी और अन्याय पर टिकी हुई है। उनके उदय ने यह भी साबित किया कि यदि समाज की निचली परतों को न्याय नहीं मिलेगा, तो वे व्यवस्था के खिलाफ हथियार उठा सकते हैं।

उनकी कहानी बिहार के समाजशास्त्र, राजनीति और अपराध की त्रिकोणीय व्यवस्था का प्रतिबिंब है।


निष्कर्ष

Ashok Mahto एक व्यक्ति नहीं, बल्कि बिहार के जातीय, सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने की उपज हैं। वे न तो पूरी तरह अपराधी कहे जा सकते हैं, न ही पूरी तरह नायक। उनके जीवन में न्याय की मांग थी, लेकिन रास्ता हिंसा का चुना गया।

Ashok Mahto की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अगर समाज समय रहते न्याय देता, शिक्षा और अवसर उपलब्ध कराता, तो शायद एक “गैंगस्टर” की जगह “नेता” या “समाजसेवक” के रूप में उनकी पहचान होती।

आज भी जब Ashok Mahto का नाम लिया जाता है, तो लोगों की आँखों में या तो डर होता है या श्रद्धा — यही उनकी असली पहचान है।

 

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