भारतीय सभ्यता, शालीनता और संस्कृति पूरे विश्व में एक मिसाल के तौर में जानी जाती है. लेकिन सत्ता के गलियारे में बैठे लोग अपनी जुबान से न सिर्फ अभद्र टिप्पड़ी करते है बल्कि भारत की छवि भी धूमिल करते है. नेताओं के विवादित और फूहड़ बोल हमेशा सुर्खियां बटोरते हैं. आमतौर पर इन नेताओं द्वारा, महिलाओं, धर्म, जाती व संप्रदाय पर विवादित टिप्पड़ी की जाती है. नेताओं के निशाने पर अक्सर महिलाएं होती हैं, फिर चाहे वह महिला राजनीति से जुड़ी हो या नहीं. उनके लिए महिलाएं आसान निशाना होती हैं, क्योंकि इनके पहनावे, रंग, रूप, कद-काठी, मोटापे या बालों को लेकर वे बड़ी आसानी से कुछ भी बोलकर निकल जाते हैं. ताज्जुब की बात तो यह है कि इन नेताओं पर कोई कार्रवाई भी नहीं होती. आइये डालते है नजर कुछ ऐसे ही बिगडे बोल नेताओं पर –
१- हाल ही में उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कहा कि औरतों को घुटने के पास फटी जींस पहने देखकर हैरानी होती है. ऐसी महिलाएं बच्चों के सामने ऐसे कपड़े पहनेंगी तो उन्हें क्या संस्कार देंगी. उनके इस बयान पर विपक्ष के साथ-साथ आम लोगों ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है.
२- आज़म खान का जया प्रदा के लिए अश्लील तंज़ : समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आज़म खान वैसे तो अपने विवादित बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहते ही हैं, लेकिन एक बार उन्होंने मर्यादा की सारी सीमाएं लांघते हुए अपने खिलाफ चुनाव लड़ रही भाजपा नेता जया प्रदा पर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी कर डाली थी. उन्होंने एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘वे सिर्फ 17 दिन में यह जान गए थे कि उनका नीचे का जो अंडरवियर है, वह खाकी रंग का है.‘ आजम खान के इस बयान को लेकर महिला आयोग ने भी उनको नोटिस जारी किया था.
३-महिलाओं को कार की तरह घर में पार्क करें तो उनसे रेप नहीं होगा: आंध्रप्रदेश विधानसभा के स्पीकर कोडेला शिव प्रसाद राव ने महिलाओं को लेकर कॉन्ट्रोवर्शियल बयान दिया था. उन्होंने कहा था कि महिलाओं को घरों तक ही सीमित रखा जाए तो उनके साथ रेप नहीं होगा. उन्होंने कार से महिलाओं की तुलना कर कहा था कि महिलाओं को कार की तरह घर में पार्क करें तो उनसे रेप नहीं होगा.
४- लड़को से गलती हो जाती है-मुलायम सिंह: समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एक रैली में कहा था, “जब लड़के और लड़कियों में कोई विवाद होता है तो लड़की बयान देती है कि लड़के ने मेरा बलात्कार किया. इसके बाद बेचारे लड़के को फांसी की सजा सुना दी जाती है. बलात्कार के लिए फांसी की सजा अनुचित है. लड़कों से गलती हो जाती है.”
५ – जयंती नटराजन ‘टंच माल- दिग्विजय सिंह: कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी महिलाओं पर कई बार विवादित बयान दिए. एक पार्टी कार्यक्रम में उन्होंने जयंती नटराजन को ‘टंच माल’ कह दिया था. दिग्विजय सिंह ने एक बार राखी सावंत पर टिप्पणी करते हुए कहा था अरविंद केजरीवाल और राखी सावंत जितना एक्सपोज करने का वादा करते हैं उतना करते नहीं हैं. उनके इस बयान पर राखी न उन्हें ‘सठिया गए हैं’ कहकर झिड़का था.
६- वोट की इज्जत बेटियों की इज्जत से बड़ी है-शरद यादव : शरद यादव महिलाओं पर कई बार अभद्र टिप्पणी कर चुके हैं. जेडीयू नेता शरद यादव ने बयान दिया था कि बेटियों की इज्जत से वोट की इज्जत बड़ी है, जिसके बाद सभी तरफ से इस बयान का खंडन किया गया था.
७- छत्तीसगढ़ की लड़कियां टनाटन हो गई हैं-बंसीलाल महतो: छत्तीसगढ़ के कोरबा से बीजेपी सांसद बंसीलाल महतो ने राज्य की लड़कियों के लिए ऐसे शब्द का इस्तेमाल किया था, जिसे लेकर उनकी काफी आलोचना हुई थी. महतो ने छत्तीसगढ़ के खेल मंत्री भैयालाल राजवाड़े का नाम लेते हुए कहा था कि वो अक्सर बोला करते हैं कि अब बालाओं की जरूरत मुंबई और कलकत्ता से नहीं है, कोरबा की टूरी और छत्तीसगढ़ की लड़कियां टनाटन हो गई हैं.
८- भगवान हनुमान दलित थे-योगी आदित्यनाथ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने विवादित बयानों को लेकर सुर्ख़ियों में बने रहते है. एक बार अलवर जिले के मालाखेड़ा में एक सभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने बजरंगबली को दलित, वनवासी, गिरवासी और वंचित करार दिया था. भगवान हनुमान को जाति में विभक्त करने पर उनकी काफी आलोचना की गई थी. राजस्थान ब्राह्मण सभा ने हनुमान जी को जाति में बांटने का आरोप लगाते हुए योगी आदित्यनाथ को कानूनी नोटिस भेजा था.
९ – वसुंधरा बहुत मोटी हो गई है : लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव ने राजस्थान चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पर बहुत ही फूहड़ तंज कसते हुए कहा था, “वसुंधरा को आराम दो, बहुत थक गई हैं, बहुत मोटी हो गई हैं, पहले पतली थीं, हमारे मध्य प्रदेश की बेटी हैं।”
ऐसे बयानों के पीछे मंशा क्या है ?
दरअसल, इस तरह के बयान अकसर रणनीति का हिस्सा होते हैं ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. इस को हवा देता है आज का सोशल मीडिया, जिस पर तथ्यों को और भी तोङमरोङ कर पेश किया जाता है. चुनावी विश्लेषकों के अनुसार , “दो विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा नेताओं के कङवे बोल चुनाव प्रचार का ही एक हथकंडा हो सकता है, जिस में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की हामी होती है. जाहिर है, इस से एक माहौल बनता है और वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है.”वहीँ दूसरी ओर एक “खास मानसिकता” के मद्देनजर धर्म, जाति, संप्रदाय या समूह विशेष को खुश या आकर्षित करने के लिए भी विवादित बयानों का उपयोग किया जाता है.
नैतिक पतन – मगर सवाल यह भी है कि क्या भारतीय राजनीति इतनी दूषित हो गई है कि वोट की खातिर या फिर वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नैतिक मूल्यों को भी ताक पर रख दिया जाए?
देश की राजनीति अगर इतनी गंदी हो गई तो लोकतंत्र की बात करने वाले सफेदपोश नेताओं को व्यक्तिगत टिपण्णी करने की आजादी किस ने दे दी?
इस के लिए जिम्मेदार कौन हो सकता है- क्या नेता, जो बेशर्मी की हद पार कर जाते हैं या फिर जनता, जो अब तक ऐसे नेताओं को वोट की चोट से राजनीति से ही बाहर नहीं कर पा रही?
क्या यह डर्टी पौलिटिक्स नहीं है?
भाषाई ओछापन व्यक्तित्व की वास्तविक अभिव्यक्ति है. पीड़ित कार्ड खेलने से किसी को गुरेज नहीं है. मतदाता के राजनैतिक रूप से प्रबुद्ध न होने के कारण उसका धर्म, जाति आदि भावनात्मक विषयों में इस्तेमाल करके नेता अपना हित साध लेते हैं.
देश के नेताओं व धर्मधुरन्धरों के लिए ही महान व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जी ने लिखा था कि “हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना है और फिर घटिया से घटिया उपयोगितावादी की तरह व्यवहार करना है. कई सदियों से हमारे देश के आदमी की प्रवृत्ति बनाई गई है अपने को आदर्शवादी घोषित करने की, त्यागी घोषित करने . पैसा जोड़ना त्याग की घोषणा के साथ ही शुरू होता है”