सूर्यप्रकाश दुबे
मुंबई। बृहन्मुंबई महानगर पालिका (BMC) एक ओर जहां शहर भर में अवैध निर्माण और झोपड़पट्टियों पर कार्रवाई के लिए नए कानून बनाने में जुटी है, वहीं दूसरी ओर उसका अपना ही एक विभाग पिछले 15 वर्षों से अतिक्रमण करके चल रहा है। पूर्वी उपनगर के घाटकोपर (एन वार्ड) में एक चार मंजिला इमारत की छत पर स्थित एक स्टोर रूम को अवैध रूप से बिल्डिंग एंड फैक्ट्री (बीएफ) विभाग के कार्यालय में तब्दील कर दिया गया है। यह विभाग अतिक्रमण पर कार्रवाई के लिए ही जिम्मेदार है।
क्या है पूरा मामला?
इमारत के टेरेस पर बने इस कार्यालय में इंजीनियर, सहायक अभियंता और जूनियर इंजीनियर सहित लगभग 15 सदस्यों की टीम बैठती है, जो पूरे वार्ड में अतिक्रमण पर कार्रवाई की योजना बनाती और उसे अंजाम देती है। हैरानी की बात यह है कि यह पूरा निर्माण कानूनी रूप से स्वीकृत नहीं है। पहले यह स्थान एक स्टोर रूम हुआ करता था, जिसे बाद में बिना किसी अनुमति के कार्यालय में परिवर्तित कर दिया गया।
‘पोट कलैया चोल के दौड़े’ वाली स्थिति
स्थानीय निवासी और आरटीआई कार्यकर्ता मनोहर जरियाल ने इस पाखंड पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “जब एक गरीब व्यक्ति कर्ज लेकर अपना छोटा-सा घर बनाता है, तो BMC तुरंत अवैध निर्माण का नोटिस थमा देती है। लेकिन जिस विभाग को यह कार्यवाही करनी है, वह खुद अतिक्रमण में बैठा है। यह स्पष्ट रूप से नियमों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया है।”
कहां है कानून? रिकॉर्ड भी गायब
दिलचस्प बात यह है कि इस अवैध कार्यालय के निर्माण या रखरखाव से जुड़ा कोई भी दस्तावेज BMC के पास मौजूद नहीं है। आरटीआई से पता चला कि इस कार्यालय के नवीनीकरण पर 10 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन इस फंड के आवंटन का कोई रिकॉर्ड नदारद है। एक सेवानिवृत्त BMC अभियंता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक बार तो एक ठेकेदार ने अपने खर्चे पर इसका निर्माण कार्य कर दिया था, जबकि दूसरी बार रखरखाव विभाग ने दूसरे मद के फंड का इस्तेमाल कर इसे चुपचाप ठीक करवा दिया।
BMC का बचाव कमजोर
BMC की ओर से दिए गए एक संक्षिप्त बयान में कहा गया है कि घाटकोपर (पश्चिम) के हीराचंद देसाई मार्ग पर कुछ कार्यालयों का स्थानांतरण प्रक्रिया में है और जल्द ही इस कार्यालय को भी स्थानांतरित कर दिया जाएगा। उनका दावा है कि मौजूदा इमारत में जगह की कमी के चलते यह एक अस्थाई व्यवस्था थी। हालाँकि, ‘अस्थायी’ व्यवस्था के 15 साल तक चलने और उस पर लाखों रुपये खर्च होने का तर्क संदेह पैदा करता है।
नैतिकता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न
यह मामला नागरिकों के बीच प्रशासनिक विश्वसनीयता पर एक गंभीर सवाल खड़ा करता है। एक ओर आम आदमी के छोटे से निर्माण को अवैध ठहराया जाता है और दूसरी ओर सरकारी विभाग स्वयं बिना अनुमति के निर्माण करते हैं और करोड़ों का बजट खर्च करते हैं। इससे दोहरे मानदंड स्पष्ट झलकते हैं। नागरिक अधिकारियों से इस मामले की पारदर्शी जांच और त्वरित कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।
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