प्रजापिता Brahma Baba का स्मृति दिवस प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय में मनाया गया
निसिंग। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्वविद्यालय निसिंग में प्रजापिता Brahma Baba का स्मृति दिवस मनाया गया। जिसमें उर्मिला दीदी ने ब्रह्मा बाबा की विशेषताओं के बारे में बताया की परमपिता परमात्मा शिव ने प्रजापिता ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर सन 1936, 37 में सिंध हैदराबाद में ओम मंडली की स्थापना हुई।
जिसमें लोगों को घर बैठे ही दादा लेखराज के दर्शन होने लगे और साथ में श्री कृष्णा दिखाई देने लगे। बाबा घर में गीता पाठ किया करते थे। ओम की ध्वनि लगाया करते थे । जिसे सुनते हुए अनेकानेक लोग ध्यान की अवस्था में चले जाते थे । उनको साक्षात्कार होने लगे।
यह सब देखते हुए धीरे-धीरे कर Brahma Baba के घर में सत्संग सुनने वालों की संख्या बढ़ने लगी और बाबा को भी दिव्या अनुभूतियां होने लगी तो बाबा ने हीरे जवाहरात का व्यापार जो कि वह कोलकाता में करते थे। उसको छोड़ दिया और असली ज्ञान हीरे जो हमें हीरे तुल्य बनाने वाले हैं।
उनका व्यापार शुरू कर दिया।रोज-रोज जो माताएं भाई-बहन सत्संग में इकट्ठे होते उन्हें परमात्मा शिव का सत्य परिचय सुनते हुए धीरे-धीरे पूरे सिंध में इसकी धूम मच गई और भाई-बहनें बाबा के पास आने लगे लेकिन जैसे-जैसे लोगों की संख्या बढ़ती गई और सिंधी लोगों को बहुत परेशानी होने लगी कि यह लोग तो हमारा खान-पान शुद्ध करवा रहे है।
यह कैसा सत्संग है,जिसमें हमारे परिवार जनों का व्यवहार और जीवन भी बदलता जा रहा है । वह एक दो के बहकावे में आकर विरोध शुरू कर देते हैं। और जैसे-जैसे Brahma Baba उनको ज्ञान की बातें सुनाते वह सुनते रहते लेकिन इतने में सन 1947 मैं भारत आजाद हुआ और सभी सिंधी परिवार पाकिस्तान से भारत में आ गए लेकिन ब्रह्मा वत्स वहीं रहकर के राजयोग का अध्ययन करते रहे 5 मई 1950 को शिव पिता के आदेश अनुसार ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का स्थानांतरण अरावली की पहाड़ियों पर माउंट आबू में हुआ ।
ऐसे यज्ञ की शुरुआत हुई और आज यह यज्ञ वटवृक्ष की तरह विश्व के कोने कोने में फेल गया। भारत भर में अनेक ब्रह्माकुमारी सेवा केन्द्रों के स्थापना में मार्गदर्शन करते हुए 18 जनवरी 1969 को उन्होंने अपना भौतिक देह त्याग दिया।
मधुबन में स्थित शान्ति स्तम्भ उनके जीवन और कार्यों की एक श्रृद्धांजलि के रूप में स्थापित किया गया
मधुबन में स्थित शान्ति स्तम्भ उनके जीवन और कार्यों की एक श्रृद्धांजलि के रूप में स्थापित किया गया जो एक सामान्य मनुष्य से अति सामान्य महानता को प्राप्त करना और जीवन के गहन सत्यों को छूने की चुनौती स्वीकार करने का अद्भुत मिसाल साबित हो रहा है।
सन 1936 में Brahma Baba को हुए साक्षात्कारों के बाद अनेकों वर्ष बीत गये, जिस जीवनशैली को उन्होंने क्रान्तिकारी रूप से अपने जीवन में अपनाया उससे प्रेरित होकर अनेकों ने अपने आपको सशक्त बनाकर भविष्य के लिए आशा की किरण जगाई। Brahma Baba ने जिस जीवन कौशल की शिक्षा दी वो समय की कसौटी पर खरी उतरती गई। जिन युवा बहनों को उन्होंने सबसे आगे रखा था । अब वो अपने 90-95 वर्ष की आयु में शान्ति, प्रेम और ज्ञान का प्रकाश स्तम्भ बनकर आगे बढ़ रही हैं।
Brahma Baba की विशेषताओं को सुनाने के साथ ब्रह्मा बाबा को स्नेह भरी पुष्प अंजलि अर्पित की। सभी भाई बहनों ने ब्रह्मा भोजन ग्रहण किया।और इस समृति दिवस पर करनाल सेक्टर 9 में ब्रह्मकुमारी निर्मला दीदी ने सारा दिन सभी भाई बहनों को योग तपस्या कराई । करनाल सेक्टर 9 मे मधुबन के चार धाम की यात्रा कराई गई शांति स्तंभ हिस्ट्री हाल और बाबा का कैमरा सबको बहुत सुंदर से सजाया गया सभी आत्माएं इनके दर्शन कर मधुबन का अनुभव करते हुए प्यारे बाबा की शिक्षाओं और यादों में मगन हो गई।
जोगिंद्र सिंह, निसिंग
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