अधूरे घर और बढ़ते क़र्ज़ की मार
दिल्ली-एनसीआर में पिछले एक दशक से रियल एस्टेट का सपना देखने वाले हज़ारों परिवार आज भी अधूरे घरों और बैंकों के क़र्ज़ की दोहरी मार झेल रहे हैं। सबवेंशन स्कीम के नाम पर बिल्डरों और बैंकों ने मिलकर ऐसा जाल बुना कि लोगों ने फ्लैट बुक करने के लिए अपनी जमापूंजी लगा दी, लेकिन न तो घर समय पर मिला और न ही आर्थिक राहत।
सबवेंशन स्कीम कैसे बनी जाल?
इस स्कीम के तहत खरीदार को केवल 5–10% रकम देनी होती थी। बाकी पैसा बैंक सीधे बिल्डर को देता और बिल्डर वादा करता कि प्रोजेक्ट पूरा होने तक EMI वही भरेगा। शुरुआत में सब कुछ ठीक लगा, लेकिन जैसे ही प्रोजेक्ट लेट होने लगे, बिल्डरों ने EMI भरना बंद कर दिया। इसके बाद बैंक सीधे खरीदारों से किश्त वसूलने लगे।
नतीजा यह हुआ कि हज़ारों परिवार अब तक ऐसे मकानों का क़र्ज़ चुका रहे हैं, जिनकी छत उनके सिर पर तक नहीं बनी।
पीड़ित खरीदारों की कहानियाँ
कई लोगों ने बैंकों पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि उनकी मंज़ूरी के बिना भी बड़ी रकम बिल्डरों को ट्रांसफ़र कर दी गई। कुछ मामलों में तो खरीदारों के खाते से दोहरी एंट्री दिखाकर पैसे काटे गए। ऐसे हालात में आम आदमी खुद को पूरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की दखल और CBI की कार्रवाई
लगातार शिकायतों और 1,200 से ज़्यादा घर खरीदारों की याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में CBI जांच का आदेश दिया।
CBI ने शुरुआती जाँच के बाद जुलाई 2025 में 22 FIR दर्ज कीं और दिल्ली-एनसीआर के दर्जनों ठिकानों पर छापेमारी की। अब उम्मीद है कि इस कार्रवाई से बिल्डर-बैंक गठजोड़ की असली परतें खुलेंगी।
खरीदारों की उम्मीदें
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अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा कराने की गारंटी
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EMI भुगतान से राहत
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बिल्डरों और बैंकों पर सख्त कार्रवाई
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रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता
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