भारत सदियों से अपनी समृद्ध कला और शिल्प परंपरा के लिए प्रसिद्ध रहा है। हमारे देश के हर क्षेत्र में कोई न कोई अनोखी कला देखने को मिलती है, लेकिन कई बार इन अद्भुत कलाकारों को वह पहचान और मंच नहीं मिल पाता जिसके वे हकदार होते हैं। ऐसी ही एक विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं झांसी जिले के बड़ागांव थाना क्षेत्र के जोरी बुजुर्ग गांव के निवासी रामकुमार विश्वकर्मा। रामकुमार बीते 30 वर्षों से लकड़ी की शिल्पकला में निपुण हैं और अपनी अद्भुत कारीगरी के कारण जाने जाते हैं। उन्होंने न केवल खुद को इस कला में सिद्ध किया, बल्कि इस विरासत को जीवंत बनाए रखने के लिए कठिन संघर्ष भी किया।
तीस वर्षों का अनुभव और अनोखी शिल्पकला
रामकुमार विश्वकर्मा लकड़ी से भिन्न-भिन्न प्रकार की मूर्तियां, चित्र और कलात्मक वस्तुएं बनाते हैं। उनकी यह कला इतनी अनूठी है कि जो भी उनकी बनाई कृतियों को देखता है, वह अचंभित रह जाता है। उनका दावा है कि उनकी बनाई मूर्तियां और चित्र वर्षों बाद भी वैसी ही चमकदार और सुंदर बनी रहेंगी। वह इस कला में केवल उच्च गुणवत्ता की लकड़ी का प्रयोग करते हैं, जो ना तो गलती है, ना सड़ती है और ना ही उसमें दीमक लगती है।
लकड़ी पर चित्र उकेरने और मूर्तियां बनाने की यह कला सदियों पुरानी है, लेकिन आधुनिक समय में इसका प्रचलन धीरे-धीरे कम हो रहा है। आज जहां प्लास्टर, फाइबर और प्लास्टिक से बनी मूर्तियां बाजारों में देखने को मिलती हैं, वहीं रामकुमार जैसे कलाकार पारंपरिक शैली में लकड़ी की शुद्धता बनाए रखते हुए उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण कर रहे हैं। यह कला एक ओर जहां भारतीय परंपरा को जीवंत बनाए रखती है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण के अनुकूल भी है, क्योंकि इसमें प्लास्टिक या हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता।
प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन
रामकुमार विश्वकर्मा ने अपनी कला को केवल अपने गांव तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विभिन्न मंचों पर इसे प्रदर्शित भी किया। वह कई राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं और अपनी कला के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। उनके बनाए चित्रों और मूर्तियों की प्रदर्शनी कई बार आयोजित की गई है, जहां लोगों ने उनकी कला को खूब सराहा।
उनकी यह उपलब्धियां इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यदि किसी कलाकार को उचित मार्गदर्शन और सहयोग मिले, तो वह अपनी कला से न केवल अपनी पहचान बना सकता है बल्कि देश का नाम भी रोशन कर सकता है।
हर सफलता के पीछे कठिन परिश्रम और संघर्ष छिपा होता है, और रामकुमार भी इससे अछूते नहीं रहे। एक साधारण परिवार में जन्मे रामकुमार को बचपन से ही लकड़ी की कारीगरी का शौक था। संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी कला को निरंतर निखारते रहे।
जब उन्होंने शुरुआत की, तो लोगों को विश्वास नहीं था कि लकड़ी की मूर्तियां और चित्र भी एक टिकाऊ विकल्प हो सकते हैं। लेकिन रामकुमार ने अपनी मेहनत से इस धारणा को बदल दिया। आज उनके बनाए चित्र और मूर्तियां दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं।
रामकुमार की कारीगरी की सबसे खास बात यह है कि वह केवल उच्च क्वालिटी की लकड़ी का उपयोग करते हैं, जो वर्षों तक सुरक्षित रहती है। आमतौर पर लकड़ी की चीजों को लेकर यह धारणा होती है कि वे समय के साथ खराब हो जाती हैं, लेकिन रामकुमार इस चुनौती को भी पार कर चुके हैं।
उनका कहना है कि लकड़ी की सही देखभाल और उचित तकनीकों के माध्यम से इसे दशकों तक संरक्षित रखा जा सकता है। वह मूर्तियों में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं, जिससे उनकी कृतियां और अधिक आकर्षक बनती हैं।
गांवों की प्रतिभा को पहचान देने की जरूरत
रामकुमार जैसे कई कलाकार देश के विभिन्न गांवों में मौजूद हैं, लेकिन सही मंच और मार्गदर्शन के अभाव में उनकी कला वहीं सिमटकर रह जाती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि सरकार और समाज ऐसे प्रतिभाशाली कलाकारों की ओर ध्यान दें और उनकी कला को विश्व पटल तक पहुंचाने में सहायता करें।
सरकार द्वारा “एक जिला, एक उत्पाद” (ODOP) जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसका लाभ अगर रामकुमार जैसे कलाकारों को मिले, तो उनकी कला को नई ऊंचाइयां मिल सकती हैं। स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और उन्हें सही बाजार उपलब्ध कराने के लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
रामकुमार का सपना है कि उनकी कला आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे और लोग इस परंपरा को आगे बढ़ाएं। वह चाहते हैं कि बच्चे और युवा इस कला में रुचि लें और इसे एक पेशे के रूप में अपनाएं।
वह इस दिशा में कार्य करने के लिए इच्छुक हैं और चाहते हैं कि सरकार तथा अन्य संगठनों का सहयोग मिले, जिससे कि उनकी कला केवल एक शौक न रहकर लोगों के लिए रोजगार का साधन भी बन सके।
रामकुमार विश्वकर्मा की कहानी हमें यह सिखाती है कि यदि व्यक्ति के पास हुनर है और वह मेहनत करने के लिए तैयार है, तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। लकड़ी की मूर्तियां और चित्रकारी एक विलुप्त होती कला है, जिसे रामकुमार जैसे कलाकार संजीवनी प्रदान कर रहे हैं।
उनकी इस अनूठी प्रतिभा को पहचान देने और इसे बढ़ावा देने की आवश्यकता है, ताकि यह कला आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके। यदि सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो भारत की हस्तशिल्प कला न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना सकती है।