मार्केटिंग का शिकार होती भारतीय संस्कृति-आँचलिक ख़बरें-रवि आनंद

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भारत एक कृषि प्रधान लोककल्याण राज्य है। बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उसे अपने घर से माता-पिता और परिजनों से मिलती है। जैसा आदमी का खानपान होता है उसकी मनोदशा में अमूमन वैसी होती है। इंसान को जितनी चादर हो उतना ही पांव फैलना चाहिए। जिन लोगों ने विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की थी उन्हें ये बात 80 के दशक के बाद से विलुप्त सा प्रतीत होने लगा। भारत अब गरीबी की जंजीरों को तोड़ने के लिए विश्व पटल पर खुद को शामिल कराने के लिए राष्ट्रमंडल वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर कई तरह के संगठन में सहभागिता दिखाई। परिणामस्वरूप भारत भारतीयता से दूर होकर एक नई-नवेली आधुनिक इंडिया बनाने की ओर अग्रसर हो गई और वर्ल्ड बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ अमेरिका और यूरोपीय संघ से कर्जदार बनने की ओर बढ़ा कदम देश के प्राचीनतम संस्कृति को मिस्र और माया सभ्यता की तरह विलुप्त करना आरंभ किया। नतीजा भारत चीन, जापान कोरिया की तरह अपनी संस्कृति से किसी भी प्रकार से समझौता नहीं करने की वजह, आधुनिकता के नाम पर अपने समृद्ध इतिहास को गवाना ही बेहतर माना। विश्व में सोने की चिड़िया के नाम से पहचान रखने वाली भारत जो अपने मसलों के दाम पर यूरोप को जीत लिया था। 21वीं सदी में आधुनिकता के नाम पर कर्जदार बन गया है। जहां की संस्कृति थी बिना गलती के भी माफी मांगने की,आज सबके गुनाहगार हो कर भी माफी की बात को ही तौहीन मान लिया है। इसके लिए किसी को जिम्मेदार बताने से पहले एक बार जरूर सोचिए? दूसरे से सीखने में कोई गलत बात नहीं पर अपनेआप को हीन भावना से ग्रसित करना कितना उचित है?होली दिवाली की जगह मदर्स डे -फादर्स डे, और ओल्ड एज होम की बढ़ती संख्या भारत को कहीं भारतीयता से ही ना दूर कर दे।

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