पंडित Deen Dayal Upadhyay जी की जीवनी
मनेंद्रगढ़। 25 सितंबर 1916 को पंडित Deen Dayal Upadhyay का जन्म मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता का नाम रामप्यारी था। उनके पिता रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर थे और माता धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।
Deen Dayal तीन वर्ष के भी नहीं हुए थे, कि उनके पिता का देहांत हो गया और उनके 7 वर्ष की उम्र में मां रामप्यारी का भी निधन हो गया था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आएं, आजीवन संघ के प्रचारक रहे। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ और दीनदयाल उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने तथा 1967 तक वे भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे।

अंत्योदय का नारा देने वाले दीनदयाल उपाध्याय का कहना था कि अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिन्दू संस्कृति है। उनका कहना था कि भारत की जड़ों से जुड़ी राजनीति, अर्थनीति और समाज नीति ही देश के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखती है।
कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सका:Deen Dayal Upadhyay
कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सका है। सन् 1967 में कालीकट अधिवेशन में उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए और मात्र 43 दिन बाद ही 10/11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई और इस सूचना से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई।
पं. Deen Dayal Upadhyay ने अपनी परंपराओं और जड़ों से जुड़े रहने के बावजूद समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी नवीन विचारों का सदैव स्वागत किया। उन्हें भाजपा के पितृपुरुष भी कहा जाता है।
Upadhyay जी के जीवन का रोचक प्रसंग- एक बार एक किसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए पंडित Deen Dayal Upadhyay जीप में बैठकर जा रहे थे। कार्यक्रम के तहत सुबह 9 बजे जुलूस निकलने वाला था। इसके लिए वहां बड़ी तादाद में किसान इकट्ठा हुए थे। रास्ते में जीप खराब हो गई। यह पता चलने पर कि जीप को सुधरने में वक्त लगेगा, उपाध्याय जी बेचैन होने लगे, क्योंकि वे समय के बड़े पाबंद थे। वे ड्राइवर से बोले- तुम जीप सुधार कर लाते रहना, मैं तो चला; और वे तेज चाल से पैदल ही कार्यक्रम स्थल की ओर चल दिए। 5-6 मील चलने के बाद उन्हें कार्यकर्ताओं की एक जीप मिली, जिसमें बैठकर वे ठीक समय पर पहुंच गए।
ऐसे ही एक बार वे एक कार्यकर्ता की मोटरसाइकल की पिछली सीट पर बैठकर कहीं जा रहे थे। ऊबड़-खाबड़ और संकरा रास्ता कंटीली झाड़ियों से भरा था। एक झाड़ी से उनके पैर में गहरा घाव लगा, जिससे खून बहने लगा, लेकिन वे चुपचाप बैठे रहे। गंतव्य पर उतरने के बाद जब वे लंगड़ाते हुए आगे बढ़े तो वहां उपस्थित कार्यकर्ताओं को चोट के बारे में पता चला।इस पर मोटरसाइकल वाला कार्यकर्ता बोला- पंडित जी, आपके पांव में इतना गहरा घाव हो गया था तो आपने बताया क्यों नहीं, रास्ते में कहीं मरहम-पट्टी करवा लेते।
Deen Dayal बोले- यदि ऐसा करते तो नियत समय में कैसे पहुंचते। इतने समय के पाबंद थे उपाध्याय जी। वंही मुगलसराय स्टेशन, वर्तमान- पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन.पिलर नंबर ..673/1276 पर 11 फरवरी को इसी दिन 1968 को प्रातः 3.30 पर एक रेलवेमैन ने सहायक स्टेशन मास्टर को सबसे पहले एक शव की सूचना दी , 3.35 पर पुलिस को सूचना दी गई 3.45 पर 3 सिपाही शव की निगरानी को पहुंचे , 4 बजे रेलवे पुलिस के दरोगा साहब वहां पहुंचे । 6 बजे डॉक्टर साहब आये व मृत्यु की पुष्टि की 7.30 को शव का पहला फ़ोटो खींचा गया ।
शव जमीन पर सीधा पड़ा था , 6 घंटो के बाद शव को स्टेशन लाया गया । उनकी ही धोती से शव को ढक दिया गया । स्थानीय रेलवे कर्मचारी ने सबसे पहले पुष्टि की यह शव पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का हैं । उनकी मुट्ठी में 5₹ का एक नोट था नानाजी देशमुख अंकित कलाई घड़ी थी व जेब में 26₹ व रेल का टिकट था।
यतः पिंडे ततः ब्रह्माण्डे सम्पूर्ण व्यवस्था का केंद्र मानव होना चाहिए।आज हम समस्त कार्यकर्ताओ को याद रखना चाहिए , इस एकात्म_मानववाद के पुरोधा का बलिदान , जिनका एकमात्र चिंतन राष्ट्रवाद रहा ।संघ के स्वयंसेवक से लेकर जनसंघ के अध्यक्ष तक
पं दीनदयाल उपाध्याय जी का पूरा जीवन देश के लिए समर्पित रहा पुण्यतिथि पर शत-शत नमन
आंचलिक खबरे ब्यूरो
अश्विनी श्रीवास्तव
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