जब जब राष्ट्रवाद की अनदेखी होगी , तब तब देश विदेशी लुटेरो,विदेशी शासको या फिर आतंकवादियों का शिकार होता रहेगा-आँचलिक ख़बरें-सुनीता कुमारी

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लेखिका- सुनीता कुमारी
बिहार

किसी भी देश की शासन व्यवस्था चाहे लोकतंत्र हो या राजतंत्र हो, उस देश का विकास तथा उस देश की सुरक्षा तभी संभव है ,जब देश के प्रत्येक नागरिक में राष्ट्रवाद की भावना चरम पर होगी। देश का प्रत्येक नागरिक अपने घर और परिवार की सुरक्षा एवं तरक्की की तरह देश के प्रति भी समर्पित होगा। परिवार की प्रत्येक सदस्यों की सुरक्षा की तरह देश की संपत्ति ,देश की सुरक्षा, देश के विकास के प्रति भी लोग सजग होंगे,तभी देश की सुरक्षा और विकास दोनों
संभव है।
राजतंत्र में भी राजा और प्रजा दोनों सजग रहेंगे तभी राज्य की सुरक्षा होगी और लोकतंत्र में भी जनप्रतिनिधि और जनता दोनों सजग रहेंगे तभी देश की सुरक्षा और विकास संभव हो पाएगा।
इतिहास साक्षी रहा है कि, जिस राजा के शासन में राजा और प्रजा के बीच तालमेल अच्छा रहा है, वह राज्य उत्कर्ष की ओर हमेशा बढा है। उस राज्य में प्रगति और विकास हर क्षेत्र में हुआ है ,चाहे वह शिल्प कला हो, संगीत हो, स्थापत्य कला हो, साहित्य सृजन हो, चाहे रोजमर्रा की जिंदगी हो ।हर क्षेत्र में विकास को देखा गया है। राज्य में जनता शिक्षित और विकसित सोच वाली थी। राजा का सहयोग करती थी और राजा भी जनता का ध्यान रखते थे, एक दूसरे के सहयोग से देश देश का विकास चरम पर था। जिसके फलस्वरूप नालंदा विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और विदेश देश विदेश के लोग शिक्षित होते रहे ज्ञान प्राप्त करते रहे, परंतु हमारे देश का दुर्भाग्य रहा कि, उत्तरोत्तर विकास करने की जगह विदेशी शासन , विदेशी हमलावरों के कारण देश निरंतर आगे बढ़ने की अपेक्षा पीछे रहा।
लगातार हमलों से देश कमजोर होता रहा देशवासी ही अपने देश में शरणार्थी बनते रहे और विदेशी राज करते रहे?
इन सब के जड़ में अगर कोई गहरी बात छुपी है तो वह है राष्ट्रवाद की भावना की कमी।
धन संपदा, संसाधन , मानव संसाधन की कमी ना होते हुए भी, देश का आविकसित रह जाना राष्ट्रवाद की कमी को ही उजागर करता।
प्राचीन काल से अब तक समय भले ही बदल चुका है परंतु हमारे देश में पहले भी राष्ट्रवाद की भावना का अभाव था और अभी भी राष्ट्रवाद की भावना की कमी है।
जिस वक्त हमारे देश में राजतंत्र था उस वक्त भी हमारे देश में राष्ट्रवाद के अभाव कारण ही राज्य विघटित होते रहते थे एवं सीमाएं बदलती रहती थी,जाती पाती की दुर्भावना राष्ट्रहित और राष्ट्रवाद से ऊपर थी,और अब भी है।
समाज का उच्च वर्ग का जीवन तो बेहतर था, परंतु ज्यादातर जनता शिक्षा एवं गरीबी की शिकार थी। समाज की मुख्यधारा से कटी हुई थी। जिस कारण राष्ट्रवाद क्या होता है यह ज्यादातर जनता जानती ही नहीं थी उनका शोषण राजा के द्वारा हो रहा था, सामंत के द्वारा हो रहा था या किसी साहूकार के द्वारा हो रहा था, ज्यादातर जनता को यह पता ही नहीं होता था। उनकी जिंदगी गुलामी और शोषण में ही बीत जाती थी वे जितना राजा से डरते थे उतना ही किसी साहूकार से भी डरते थे।
समाज में सम्मिलित उच्च वर्ग की कुछ जातियां राज्य का मुख्य हिस्सा हुआ करती थी, सर्वेसर्वा हुआ करते थी,बाकी जनता इन सब से दूर अंधेरों में जीवनयापन करती थी। मुख्य धारा से दूर जीवन यापन किया करती थी। अशिक्षित निम्न जाति जाति को गुलाम ही समझा जाता था ।जिन्हें देश की शासन व्यवस्था के बारे में कुछ पता ही नहीं होता था। यदि पता था तो सिर्फ इतना कि राजा के आदमी आकर ढोल बजाते हुए जनता को जो फरमान सुनाएगे उसे ही जनता को पूरा करना
है।
इस तरह की जनता का राष्ट्र के विकास और सुरक्षा में योगदान नहीं के बराबर था। यह जनता लगभग जनसंख्या मात्र थी ।जिस पर राजा शासन करते थे।
राज्य का उच्च वर्ग जिसके पास राज्य की लगभग पूरी संपत्ति होती थी, सुख वह के सारे संसाधन होते थे एवं निम्न जाति के लोगों को दबा कर अपना हम अहंकार पोषित करते थे, ऐसे ही लोगों का देश भर में बोलबाला हुआ करता था। उच्च वर्ग के लोगों के पास देश की सुरक्षा एवं देश विकास की
जिम्मेदारी थी।
देश की इतनी बड़ी इसी कमजोरी का फायदा समय-समय पर विदेशी लुटेरों ने उठाया करते थे?
इन विदेशी शासकों और लुटेरों से लड़ने के लिए उच्च वर्ग के यही लोग कार्यरत थे, इनके पास हथियार और धन हुआ करता था बाकी की जनता को इस हकीकत का पता ही नहीं था,बाकी की जनता इन लुटेरो से मारी जाती थी लुटी जाती थी इनके पास इन लुटेरो से लड़ने के न तो शाधन थे न ही कोई मंडली।
देश की इतनी बड़ी कमजोरी ने हीं देश को गुलाम बनाकर रख डाला था। देश की को अविकसित बना कर रख डाला है।
अंग्रेजों का आना हमारे देश के लिए दुर्भाग्य की बात थी अंग्रेजों ने देश का शोषण कर डाला, देश को गरीब देश की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया, परंतु एक अच्छी बात यह हुई कि, देश के लोग, देश के युवा ,जागृत होने लगे ।जाति पति धर्म से पड़े होकर देश को आजाद कराया । हजारों लोगों ने देश की आजादी के लिए अपना योगदान दिया ।कईयों ने अपने प्राण निछावर कर दिये।
देश की आजादी के समय राष्ट्रवाद की भावना देश में चरम पर थी,वह भावना प्राचीन काल से लेकर अब तक वैसे भावना देश में कभी नहीं रही।
देश का दुर्भाग्य कि, आजादी के बाद फिर से राष्ट्रवाद की भावना का लोप होने लगा।
देश में आजादी के बाद राजतंत्र की जगह लोकतंत्र की स्थापना हुई। प्राचीन राजाओं एवं उच्च वर्ग के सांमतों की जगह राजनेताओं ने ले लिया। इन राजनेताओं में राष्ट्रवाद की भावना का कोई मोल ही नहीं रहा।
प्रत्येक राजनेता में राजा बनने की होड़ शुरू हो गई। सत्ता की लोलुपता, सत्ता सुख भोगने के लिए ,राष्ट्रवाद को परे रखकर शासन में भागीदार बने रहे। जैसी कहानी सदियों पहले थी ,वही कहानी भारत में लोकतंत्र होने के बाद फिर से शुरू हो गई, फर्क इतना हुआ कि, पहले शोषक राजा और सामंत हुआ करते थे अब शोषक राजनेता और जनप्रतिनिधि हैं?
जो जनता को 5 वर्ष में एक बार अपना चेहरा दिखाते हैं ।काम नहीं होने का, विकास नहीं होने का जिम्मेदार भी जनता को ही ठहरा देते हैं फिर, किसी के माथे पर ढीकरा फोड़ते हैं।
समय बदल चुका है परंतु अगर देखा जाए तो देश में शोषण का सिलसिला अभी जारी है, तरीका मात्र बदल चुका है ।अगर ऐसा नहीं होता तो मुगलों या अंग्रेजों का शासन हमारे देश में होता ही नहीं होता?। देश के प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्रवाद की भावना होती ,सुरक्षा के लिए हथियार होते तो कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से निकाला नही जाता और ना ही दिल्ली की सत्ता पर या बंगाल की सत्ता पर किसी विदेशी आसीन होते हैं।
देश की स्थिति और परिस्थिति का अगर विश्लेषण किया जाए तो निष्कर्ष मात्र इतना ही निकलता है कि, देश में जाति जाती पाती धर्म क्षेत्रवाद की आड़ में राष्ट्रवाद का गला घोटा जा रहा है जिसका परिणाम आतंकवाद है।
जैसी भावना आजादी के वक्त लोगों में राष्ट्रवाद की थी वैसे ही भावना आजादी के बाद देश के लोगों में होती तो एक भी आतंकवादी देश में प्रवेश नहीं कर पाता और आज देश विकसित राष्ट्र की श्रेणी में सबसे अग्रणी होता है। जब-जब जिस काल में राष्ट्रवाद का दमन हुआ है या तो विदेशी शासकों ने प्रवेश देश में प्रवेश किया है या फिर किसी विदेशी लुटेरों ने देश में प्रवेश किया है। और आजादी के बाद इसे राष्ट्रवाद के अभाव के कारण आतंकवादी ने देश में दहशत फैलात रखा हैं।
अगर बदलाव चाहिए तो ,सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि देश के प्रत्येक राष्ट्र भक्ति में राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ाया जाए ।देश की संपत्ति देश की सुरक्षा एवं देश का विकास, के प्रति हर एक व्यक्ति को जागरूक किया जाए ।राष्ट्र को सर्वोपरि रखते हुए ही हर कार्य किया जाए ,तभी देश का विकास और देश की सुरक्षा दोनों संभव है ।इन सब के लिए सबसे पहले हमारे शासन व्यवस्था की खामियों को समाप्त करना होगा। देश को आगे बढ़ाना होगा, यह सफर इतना आसान नहीं है, परंतु अगर राष्ट्रवाद की भावना का विकास चरम पर होगा तो निश्चय ही देश विकसित और सुरक्षित होगा।

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