सांस्कृति कार्यक्रम में शानदार प्रस्तुतियों से कलाकरों ने बटोरी तालियां,महोत्सव का तीसरा दिन-आंचलिक ख़बरें-अश्विनी कुमार श्रीवास्तव

News Desk
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चित्रकूट।धर्मनगरी में चल रहे राष्ट्रीय रामायण मेला के 49वें महोत्सव के तीसरे दिन मंगलवार को प्रथम सत्र के दौरान श्रीरामकथा मर्मज्ञों ने श्रीराम से जुड़े प्रसंग सुनाएं। विद्वत गोष्ठी में हिंदी के साहित्यकारों ने अपने विचारों से दशर्कां को प्रभावित किया। इस दौरान हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम से दर्शकों का मनोरंजन हुआ तथा दशर्कों ने कलाकरों व विद्वानों की सराहना की।
श्रीरामकथा मर्मज्ञ सेवानिवृत्त जयपाल सिहं ने मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के आदर्शों का व्याखान करते हुए कहा कि यदि श्रीराम वनवास काल के दौरान चित्रकूट परिक्षेत्र में न आए होते तो, इस परिक्षेत्र के लोग संस्कृति, संस्कारों में और भी पिछडे रह जाते। कहा कि यदि भगवान श्रीराम की कथा तुलसीदास द्वारा न लिखी गई होती, तो वर्तमान समय में अमानवीय युग होता। उन्होंने श्रीराम के नाम के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि श्रीराम से अधिक उनके नाम का महत्व है। आकाशवाणी छतरपुर के मानस वक्ता व राज्यपाल से पुरस्कृत महोबा निवासी पं0 जगप्रसाद तिवारी ने श्रीरामचरितमानस के प्रसंगें के माध्यम से श्रीरामचरितमानस की समाज में उपयोगिता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि हमें जीवन जीना है, तो रामचरितमानस का अध्ययन अवश्य करना होगा। उन्होने बताया कि विद्यार्थियों, गृहस्थों, व्यापारियों, राजनैतिज्ञों तथा समाज के हर वर्ग के लिए श्रीरामचरितमानस की एक-एक चौपाई हमें जीवन जीने की कला सिखाती है।
इस दौरान हुई विद्वत गोष्ठी में हिंदी साहित्य के प्रख्यात साहित्यकार एवं अनुसंधानकर्ता डॉ चन्द्रिका प्रसाद दीक्षित ने बताया कि उन्हे खोज में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक दुर्लभ शगुन सुमंगल रामायण प्राप्त हुई है। जिसमें रामायण प्राचीन हस्त निर्मित कागज में काली स्याही से लिखी हुई है। बताया कि इसमें सात सर्ग है, प्रत्येक सर्ग में सात पृष्ठ है और प्रत्येक प्रष्ठ में सात दोहे है। प्रत्येक सर्ग में मात्र उन्चास और सातों सर्ग में तीन सौ तेतालिस दोहे है। कहा कि गोस्वामी तुलसीदास ने सम्पूर्ण रामकथा को दोहा शैली में जन-जन तक पहुचाने के लिए शगुन सुमंगल रामायण लिखी है। रामायण मेला समिति के उपमंत्री एवं समाजिक समिति के चिंतक प्रद्वुमन कुमार द्वुबे उर्फ लालू ने कहा कि भगवान श्रीराम का अवतरण सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन में एक नई क्रांति का संचार करने वाला है। दशरथ नदंन होकर गुरू गृह जाकर, सम्पूर्ण शिक्षाओं को प्राप्त कर समाज के लिए उसका उपयोग कर सके, इसके लिए श्रीराम के अवतरण की परिकल्पना की गयी है और वह श्रीरामकथा के रूप में पूर्णतः को भी प्राप्त हुई। रामायण मेला के संकल्पक डॉ लोहिया के राष्ट्रीय रामायण मेला का लक्ष्य भी समाज में समानता, भाईचारा, आर्थिक समानता एवं राष्ट्रीय एकता तथा हिन्दुस्तान को बढावा देना है।
इस दौरान हुए सांस्कृति कार्यक्रमों में सरस म्यूजिकल ग्रुप लखनऊ की सरला गुप्ता ने अपनी टीम के साथ मनमोहक भजन व बुंदेलखण्डी लोक गीत बडे मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किए गए। जिसे सुनकर श्रोताओं ने बार-बार प्रशंसा की। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के श्रीकृष्ण भावनात्मक भावनाम्रत संघ (इस्कान) द्वारा हरि संकिर्तन, संगीत के साथ भाव-विभोर होकर नृत्य का अभिनय किया। जिसका दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट कर भरपूर आनंद लिया। माँ भगवती लोक गीत पार्टी चित्रकूट व महोबा के लखन लाल यादव लोक नृत्य समिति झांसी के रामाधीन आर्य ने भजन एवं लोक गीतों की प्रस्तुती से दर्शकों को भाव-विभोर कर दिया। ग्राम खैरी बिसंडा की माया देवी ने संगीत प्रस्तुत किया, तो सभागार में बैठे रामायण प्रेमियों के आनंद का ठिकाना न रहा। इसी क्रम में ही वृन्दावन की ख्याति लब्ध मण्डली द्वारा प्रातः अहिल्या उद्धार रामलीला का मंचन किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मेले के महामंत्री डॉ करूणा शंकर द्विवेदी ने किया।
आयोजन में मेले के अध्यक्ष राजेश करवरिया, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष नीलम करवरिया, मनोज मोहन गर्ग, प्रिन्स करवरिया, ज्ञानचन्द्र गुप्ता, सतेन्द्र पाण्डेय, प्रमोद मिश्रा, मुकेश पाण्डेय, दद्दू महाराज आदि का सराहनीय योगदान रहा।

 

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