भारत, एक कृषि प्रधान देश है, जहां अधिकांश जनसंख्या आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि एक समय ऐसा भी था जब भारत में खाद्यान्न की इतनी कमी थी कि आयात करना अनिवार्य था? उस समय एक ऐसे व्यक्ति ने आगे बढ़कर कृषि व्यवस्था को ही बदल डाला — उन्हें ही हम “हरित क्रांति के जनक” के नाम से जानते हैं। उनका नाम है डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन (M.S. Swaminathan)।
हरित क्रांति क्या थी?
“हरित क्रांति” (Green Revolution) एक ऐसा आंदोलन था जिसने भारत की कृषि को पारंपरिक तरीकों से आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों की ओर मोड़ा। इसका मूल उद्देश्य था – खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करना ताकि भारत आत्मनिर्भर बन सके।
1960 के दशक में जब भारत भुखमरी की कगार पर था, उस समय अमेरिका से गेहूं मंगाया जाता था। ऐसे संकट में हरित क्रांति की शुरुआत एक नई आशा बनकर सामने आई। इस क्रांति की नींव हरित क्रांति के जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने रखी।
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन: हरित क्रांति के जनक
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन को भारत में “हरित क्रांति के जनक” (Father of Green Revolution in India) के रूप में जाना जाता है। उन्होंने भारत में कृषि विकास की दिशा को पूरी तरह बदल दिया और अन्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता की नींव रखी। उनका पूर्ण नाम मोंगोलुरी स्वामीनाथन था, और उन्होंने विज्ञान तथा कृषि अनुसंधान को भारत के विकास में केंद्रित किया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध सर्जन थे, जिनका समाजसेवा में गहरा विश्वास था। आरंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने त्रिची से स्नातक की डिग्री ली और आगे की पढ़ाई मद्रास विश्वविद्यालय (अब चेन्नई) से कृषि विज्ञान में की। बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए नीदरलैंड और अमेरिका भी गए, जहाँ उन्होंने आनुवंशिकी (genetics) और पौधों की ब्रीडिंग पर गहन शोध किया।
हरित क्रांति में योगदान
1960 के दशक में भारत भीषण खाद्य संकट से जूझ रहा था। इस समय डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर गेहूं और चावल की उच्च उपज वाली किस्मों का विकास किया। इससे उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई और भारत खाद्यान्न के लिए आत्मनिर्भर बन गया। इस आंदोलन को ही हरित क्रांति कहा गया। इस क्रांति के कारण भारत में कृषि उत्पादन में भारी बढ़ोत्तरी हुई, जिससे लाखों लोगों को भूख से राहत मिली।
प्रमुख पद और जिम्मेदारियाँ
- डॉ. स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में कार्य किया।
- वे राज्यसभा सदस्य भी रहे और उन्होंने पर्यावरण व जैव विविधता के मुद्दों पर कार्य किया।
- उन्होंने एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की, जो किसानों को तकनीकी ज्ञान और सतत कृषि की दिशा में प्रशिक्षण देता है।
सम्मान और पुरस्कार
- भारत सरकार ने उन्हें 1967 में पद्म श्री, 1972 में पद्म भूषण, और 1989 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
- उन्हें रेमन मैगसेसे पुरस्कार, वर्ल्ड फूड प्राइज जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा गया।
विचार और दर्शन
डॉ. स्वामीनाथन हमेशा “इको-टेक्नोलॉजी” (eco-technology) यानी पर्यावरण के अनुकूल तकनीक के पक्षधर रहे। वे मानते थे कि कृषि में विकास तभी टिकाऊ होगा जब वह पर्यावरण और किसानों दोनों के लिए लाभकारी हो। वे किसानों को देश का “अन्नदाता” मानते थे और उनकी बेहतरी के लिए लगातार प्रयास करते रहे।
निधन
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन का निधन 28 सितंबर 2023 को 98 वर्ष की आयु में हुआ। उनका जीवन भारत की कृषि क्रांति, वैज्ञानिक सोच और सामाजिक उत्तरदायित्व का प्रतीक रहा।
हरित क्रांति के प्रमुख घटक
हरित क्रांति को सफल बनाने में कई तकनीकी और प्रशासनिक उपायों का सहारा लिया गया, जिनमें से प्रमुख हैं:
- उच्च उत्पादकता वाले बीज (HYV)
हरित क्रांति के जनक द्वारा उन्नत किस्मों के बीजों को खेतों में लागू कराया गया। इन बीजों ने पारंपरिक फसलों की तुलना में 2-3 गुना अधिक उपज दी।
- रासायनिक खाद और कीटनाशकों का प्रयोग
रासायनिक खादों और कीटनाशकों की सहायता से उत्पादन में गुणवत्ता और मात्रा दोनों बढ़ाई गई।
- सिंचाई सुविधाओं का विस्तार
हरित क्रांति में हरित क्रांति के जनक के सुझावों पर सरकार ने सिंचाई व्यवस्था में निवेश किया जिससे फसलें मौसम पर निर्भर नहीं रहीं।
- कृषि यंत्रीकरण
ट्रैक्टर, थ्रेशर, और हार्वेस्टर जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग खेती में होने लगा।
- सरकारी समर्थन और अनुदान
किसानों को बीज, खाद और मशीनरी सस्ते दामों पर उपलब्ध कराए गए। इसके अलावा MSP (Minimum Support Price) जैसी योजनाएं लागू की गईं।
हरित क्रांति के लाभ
हरित क्रांति के जनक द्वारा लाया गया यह परिवर्तन भारत के लिए एक वरदान साबित हुआ। इसके प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता
भारत ने गेहूं, धान और अन्य अनाजों में इतनी वृद्धि की कि आयात की आवश्यकता लगभग समाप्त हो गई।
- किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार
फसल की अधिक पैदावार से किसानों की आमदनी बढ़ी और उनका जीवन स्तर ऊंचा हुआ।
- कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन
फर्टिलाइज़र, ट्रैक्टर, कीटनाशक और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उद्योगों में तीव्र वृद्धि हुई।
- ग्रामीण विकास में योगदान
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े, स्कूल, सड़कें और बिजली जैसी सुविधाएं बेहतर हुईं।
हरित क्रांति की चुनौतियाँ और आलोचना
हालांकि हरित क्रांति के जनक डॉ. स्वामीनाथन की कोशिशें प्रशंसनीय थीं, परंतु इस क्रांति के कुछ नकारात्मक पक्ष भी सामने आए:
- क्षेत्रीय असमानता
हरित क्रांति का लाभ मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित रहा। अन्य राज्यों को इसका लाभ नहीं मिला।
- पर्यावरण पर प्रभाव
अत्यधिक रासायनिक खादों और कीटनाशकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई और जलस्रोत प्रदूषित हो गए।
- छोटे किसानों की अनदेखी
जिन किसानों के पास पूंजी नहीं थी, वे इस तकनीकी बदलाव का लाभ नहीं उठा सके और ऋण के जाल में फंसते चले गए।
- एक जैसी फसल पर निर्भरता
मुख्यतः गेहूं और चावल की खेती को बढ़ावा दिया गया जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुंचा।
हरित क्रांति का वर्तमान और भविष्य
आज जब हम सतत कृषि (Sustainable Agriculture) की बात करते हैं, तो हरित क्रांति के जनक डॉ. स्वामीनाथन की दृष्टि और भी प्रासंगिक हो जाती है। उन्होंने केवल उत्पादन की बात नहीं की, बल्कि किसान की समग्र स्थिति, पर्यावरण संरक्षण और तकनीकी नवाचार को भी महत्व दिया।
उनकी संकल्पना के आधार पर आज की आवश्यकता है कि:
- जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए।
- सूक्ष्म सिंचाई और जल संरक्षण तकनीकों को अपनाया जाए।
- सभी राज्यों तक कृषि सुधारों को पहुंचाया जाए।
डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन के अनमोल विचार
“If agriculture goes wrong, nothing else will have a chance to go right.”
– Dr. M.S. Swaminathan, हरित क्रांति के जनक
निष्कर्ष
हरित क्रांति के जनक डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन ने भारत को भुखमरी से मुक्त कर खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया। उनका योगदान केवल विज्ञान तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने किसानों को आत्मविश्वास और सम्मान भी दिलाया।
आज भी जब हम भारत की कृषि समस्याओं को हल करने की बात करते हैं, तो हमें हरित क्रांति के जनक की सोच और नीतियों को याद रखना चाहिए। उनकी दूरदर्शिता ही थी कि आज भारत दुनिया के अग्रणी खाद्यान्न उत्पादक देशों में शामिल है।
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