ग्वालियर की शक्ति दीदी बनीं प्रेरणा, CM मोहन यादव बोले – “यही असली सशक्तिकरण है!”
CM मोहन यादव की पहल “शक्ति दीदी” ने बदली दो लड़कियों की किस्मत!
पहली बार पेट्रोल पंप पर दिखीं शक्ति दीदी, लोगों ने सम्मान में बजाई तालियां
जब पेट्रोल पंप पर खड़ी दो लड़कियों ने सबको हैरान कर दिया
शक्ति दीदी: एक ऐसी पहल, जिसे हर शहर में लाने की जरूरत है!
शक्ति दीदी: साहस, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की नई कहानी
एक नई सुबह की शुरुआत
ग्वालियर जिले में एक नई सुबह ने दस्तक दी। यह सुबह सिर्फ सूरज की किरणों से नहीं, बल्कि दो युवा लड़कियों के हौसले से भी रोशन थी। यह कहानी है मुस्कान शाह और करिश्मा रावत की, जिन्हें न सिर्फ अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की चाह थी, बल्कि अपने आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता की लड़ाई भी लड़नी थी।
जब सरकार ने “शक्ति दीदी” पहल शुरू की, तब शायद किसी ने यह नहीं सोचा था कि यह पहल दो साधारण-सी दिखने वाली लड़कियों की जिंदगी को असाधारण बना देगी। भितरवार नगर के जय बालाजी फ्यूल पंप पर जब उन्हें फ्यूल डिलीवरी वर्कर की जिम्मेदारी दी गई, तो यह उनके लिए सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि समाज की रूढ़ियों को तोड़ने की शुरुआत थी।
संघर्ष की शुरुआत: जब सपनों ने हकीकत से टकराया
मुस्कान शाह और करिश्मा रावत के लिए यह रास्ता आसान नहीं था। समाज में यह धारणा थी कि पेट्रोल पंप जैसे काम पुरुषों के लिए होते हैं। “लड़कियां इस तरह के काम कैसे करेंगी?” “क्या यह उनके लायक है?” ऐसी ही बातें सुनने को मिल रही थीं।
जब पहली बार मुस्कान ने अपने परिवार को बताया कि वह पेट्रोल पंप पर काम करने जा रही है, तो सबका चेहरा उतर गया। उसकी माँ ने कहा, “बेटा, यह लड़कियों का काम नहीं है। कोई सम्मानजनक नौकरी देखो।”
करिश्मा की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी। उसके पिता ने नाराजगी जताते हुए कहा, “हमारी बेटी दूसरे लोगों के सामने तेल डालेगी? यह काम कोई लड़का नहीं कर सकता?”
पर मुस्कान और करिश्मा ने अपने परिवार को समझाया कि यह सिर्फ तेल डालने की नौकरी नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की ओर एक कदम है। समाज की सोच बदलने के लिए किसी न किसी को पहला कदम उठाना ही होगा।
नई राहें, नए अनुभव: जब वे शक्ति दीदी बनीं
5 मार्च, 2025 का दिन था, जब ग्वालियर जिले की कलेक्टर रुचिका चौहान अपने अधिकारियों के साथ भितरवार के जय बालाजी फ्यूल पंप पर पहुंचीं। यह वही दिन था जब मुस्कान और करिश्मा को “शक्ति दीदी” का गौरवपूर्ण खिताब मिला।
सरकार की इस पहल का उद्देश्य था जरूरतमंद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें रोजगार के अवसर देना। यह न केवल महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक अनोखा प्रयास था, बल्कि समाज में बदलाव लाने की एक नई पहल भी थी।
जब अधिकारियों ने मुस्कान और करिश्मा को उनकी नई जिम्मेदारी सौंपी, तो उनके दिल में एक अजीब-सी खुशी थी। यह खुशी सिर्फ नौकरी मिलने की नहीं, बल्कि कुछ नया करने की थी।
पहला दिन: जब मुश्किलों ने घेरा
पहला दिन हमेशा खास होता है, लेकिन साथ ही चुनौतियों से भरा भी। जब मुस्कान और करिश्मा पहली बार अपनी ड्रेस पहनकर पेट्रोल पंप पर पहुंचीं, तो वहां खड़े लोगों की नजरें उन पर टिक गईं।
शुरू में कुछ ग्राहकों ने झिझक महसूस की, लेकिन जब उन्होंने देखा कि दोनों लड़कियां आत्मविश्वास के साथ काम कर रही हैं, तो धीरे-धीरे माहौल बदलने लगा।
साहस की पहचान: जब लोगों ने सम्मान दिया
मुस्कान और करिश्मा ने अपने काम से लोगों का भरोसा जीत लिया। अब वे सिर्फ एक फ्यूल डिलीवरी वर्कर नहीं थीं, बल्कि “शक्ति दीदी” बन चुकी थीं।
“आप दोनों बहुत अच्छा काम कर रही हैं। हमें गर्व है कि हमारे शहर में ऐसी पहल हो रही है!” एक ग्राहक ने कहा।
भितरवार नगर के लोग भी अब उनकी तारीफ करने लगे थे। वे महिला सशक्तिकरण की एक जीवंत मिसाल बन गई थीं।
समाज की सोच में बदलाव: जब पहल ने असर दिखाया
“शक्ति दीदी” पहल ने केवल मुस्कान और करिश्मा की जिंदगी ही नहीं बदली, बल्कि समाज की सोच को भी बदल दिया।
जहां पहले लोग लड़कियों के ऐसे काम करने को अजीब मानते थे, वहीं अब वे उन्हें सम्मान की नजर से देखने लगे थे। अब माता-पिता अपनी बेटियों को यह कहने लगे थे, “अगर वे कर सकती हैं, तो तुम भी कर सकती हो!”
यह बदलाव छोटा नहीं था। यह एक नई क्रांति की शुरुआत थी।
मुश्किलें अभी बाकी हैं, लेकिन रास्ता मिल गया है
हालांकि, यह सफर आसान नहीं था। अब भी कुछ लोग ऐसे थे जो इस पहल की आलोचना करते थे। कुछ लोग अब भी यह मानने को तैयार नहीं थे कि महिलाएं इस तरह के काम कर सकती हैं।
लेकिन मुस्कान और करिश्मा अब रुकी नहीं थीं। वे जानती थीं कि बदलाव धीरे-धीरे ही आता है। उन्होंने ठान लिया था कि वे अपने काम को पूरी लगन और मेहनत से करेंगी, ताकि आने वाली लड़कियों के लिए यह रास्ता और आसान हो जाए।
अधिकारियों की भूमिका: जब प्रशासन बना सहारा
ग्वालियर जिला प्रशासन ने इस पहल को सफल बनाने के लिए पूरी मदद की। कलेक्टर रुचिका चौहान, एसडीएम देवकीनंदन सिंह, एसडीओपी जीतेन्द्र नगायच, और अन्य अधिकारियों ने यह सुनिश्चित किया कि शक्ति दीदी को किसी भी तरह की परेशानी न हो।
“अगर आपको कोई दिक्कत होती है, तो बेझिझक हमें बताएं। हम आपके साथ हैं,” यह आश्वासन उन्होंने दिया।
प्रशासन की यह पहल दर्शाती है कि जब सरकार और जनता मिलकर कुछ अच्छा करने की ठान लें, तो बदलाव जरूर आता है।
आगे की राह: जब शक्ति दीदी की कहानियां और फैलेंगी
“शक्ति दीदी” सिर्फ भितरवार तक सीमित नहीं रहेगी। यह पहल ग्वालियर जिले के अन्य हिस्सों में भी शुरू होगी।
अब और भी महिलाएं इस रोजगार का हिस्सा बनेंगी। वे अपने घर की आर्थिक स्थिति सुधार सकेंगी और अपने आत्मसम्मान को भी मजबूत करेंगी।
यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक क्रांति की शुरुआत है, जो आने वाले समय में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए प्रेरित करती रहेगी।
जब बदलाव की लहर उठती है
मुस्कान शाह और करिश्मा रावत ने सिर्फ एक नई नौकरी नहीं पाई, उन्होंने समाज की पुरानी सोच को भी चुनौती दी।
वे अब महिलाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं। उनकी कहानी बताती है कि अगर हौसला और मेहनत हो, तो कोई भी मुश्किल रास्ता आसान हो सकता है।
अब सवाल यह नहीं है कि महिलाएं क्या कर सकती हैं, बल्कि सवाल यह है कि हम उन्हें कितने अवसर दे सकते हैं?
और यही “शक्ति दीदी” पहल का असली मकसद है—महिलाओं को सशक्त बनाना और उन्हें वह पहचान देना, जिसकी वे हकदार हैं!