हलाल टाउनशिप: नया विवाद
हाल ही में कर्जत, मुंबई के पास ‘हलाल लाइफ़स्टाइल टाउनशिप’ नामक प्रोजेक्ट सुर्ख़ियों में आया। इस प्रोजेक्ट में विज्ञापन के अनुसार केवल मुस्लिम निवासियों के लिए मकान और मस्जिद सहित हलाल सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएंगी।
इस पर महाराष्ट्र सरकार, मानवाधिकार आयोग और राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई। सरकार ने स्पष्ट किया कि मज़हब के आधार पर किसी भी हाउसिंग प्रोजेक्ट को भारत में अनुमति नहीं दी जाएगी।
असली समस्या: आवास में भेदभाव
मुंबई और अन्य शहरों में कई मुस्लिम परिवार अक्सर शिकायत करते हैं कि उन्हें आम सोसाइटीज़ में घर लेने से मना कर दिया जाता है।
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कभी मंदिर का हवाला दिया जाता है
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कभी ‘माहौल अलग है’ कहकर रोक दिया जाता है
इस भेदभाव के कारण ही बिल्डर ‘हलाल होम्स’ जैसे प्रोजेक्ट बेचने की कोशिश करते हैं। लेकिन यह हल नहीं बल्कि समाज में नया बंटवारा पैदा करता है, और नफरत को बढ़ावा देता है।
संविधान और समान अधिकार
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को बराबरी और बिना भेदभाव के अधिकार प्रदान करता है। यदि किसी इंसान को केवल अपने मज़हब के कारण घर न खरीदने दिया जाए, तो यह संविधान की भावना के खिलाफ है।
इस प्रकार की प्रवृत्ति गंगा-जमुनी तहज़ीब को भी चोट पहुँचाती है।
सूफ़ियों और संतों की शिक्षाएँ: मोहब्बत और इंसानियत
भारत की मिट्टी में सूफ़ियों और संतों की खुशबू बसी हुई है।
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ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती
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हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
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बाबा फरीद
इन सबने मोहब्बत और इंसानियत का पैग़ाम दिया। उन्होंने कभी मज़हब की दीवारें नहीं बनाई, बल्कि इंसान को इंसान से जोड़ा।
आज जब कॉलोनियाँ मज़हबी पहचान पर बँटने लगी हैं, यह उनकी शिक्षाओं के विपरीत है।
असली हल: खुला समाज
कर्जत का विवाद यह सोचने पर मजबूर करता है कि असल हल ‘हलाल टाउनशिप’ या ‘हिंदू सोसाइटी’ नहीं है।
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हर मोहल्ला और सोसाइटी सबके लिए खुली होनी चाहिए
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मज़हब के आधार पर किसी को रोकना अस्वीकार्य है
यह संविधान का संदेश है और भारत की असली पहचान भी।
गंगा-जमुनी तहज़ीब को अपनाने की जरूरत
देश बदल रहा है और दुनिया भारत की ओर देख रही है। ऐसे में:
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हलाल टाउनशिप या हिंदू कॉलोनी का नाम देना
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समाज में बंटवारा करना
ये गलत दिशा में कदम हैं।
समाज तभी तरक्की करेगा, देश विकसित होगा और भारत दुनिया में अग्रणी बनेगा, जब हम सूफीवाद और मोहब्बत की राह अपनाएँगे।
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