ओम है जीवन हमारा,
ओम प्राणाधारी है।
निर्लिप्त निराकार शिव,
डमरू त्रिशूल धारी है।
ओम है दुख विनाशक,
ओम सर्वानंद है।
ओम ही सृष्टि का आदि,
ओम ही तो अंत है।
त्रिनेत्र धारी पर भक्तों का,
होता अखंड विश्वास है।
विकल्पों के विकल्प हैं भोले,
हर पल उनका अहसास है।
ओम है बल तेजधारी,
ओम पूर्णानंद है।
ओम है आधार जग का,
ओम सच्चिदानंद है।
सत, रज, तम से ऊपर,
यही शिव तत्व रहस्य है।
सबके कष्टों को हर लेते,
दीन दुखियों की आस है।
ओम कण-कण में समाहित,
ओम ही तो त्रिदेव है।
ओम नाम जग में है प्यारा,
ओम त्रिगुणातीत है।
हर कण-कण में वास उनका,
शिव हर पल पास हैं।
शिव ही आदि, शिव ही अंत,
ओम से ही चलती श्वांस है।
ओम सबका पूज्य है,
हम ओम का पूजन करें।
ओम के ही ध्यान में हम,
शुद्ध अपना मन करें।
रश्मि पांडेय शुभि डिंडोरी मध्यप्रदेश