Indian Democracy: जनता की शक्ति, देश की पहचान

Aanchalik Khabre
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Indian Democracy

भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा और सबसे जीवंत लोकतंत्र है। यह सिर्फ एक शासन व्यवस्था नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की आवाज़, अधिकार और उम्मीदों का प्रतीक है। संविधान ने हमें जो अधिकार दिए हैं—स्वतंत्रता, समानता, न्याय और अभिव्यक्ति की आज़ादी—वही लोकतंत्र की असली आत्मा हैं।

1947 में आज़ादी के बाद भारत ने जिस लोकतांत्रिक यात्रा की शुरुआत की, वह आज एक मिसाल बन चुकी है। हर पाँच साल में करोड़ों मतदाता मतदान कर सरकार चुनते हैं। Voter list update एक अत्यंत आवश्यक प्रक्रिया बन चुकी है जो इस चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और भरोसेमंद बनाती है। चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है, जबकि न्यायपालिका स्वतंत्र है और मीडिया, सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने में सक्षम है।

भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत इसकी विविधता है—भाषा, धर्म, जाति और संस्कृति में भिन्नता के बावजूद सभी को बराबरी का अधिकार है। पंचायत से लेकर संसद तक, हर व्यक्ति को भागीदारी का अवसर मिलता है, बशर्ते कि वह Voter list update के माध्यम से सही तरीके से मतदाता सूची में शामिल हो।

हालाँकि चुनौतियाँ भी कम नहीं—भ्रष्टाचार, जातिवाद, ध्रुवीकरण, और कभी-कभी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर दबाव। परंतु जब Voter list update समय पर होती है और फर्जी मतदाताओं को हटाया जाता है, तब चुनाव की निष्पक्षता में विश्वास बढ़ता है। जनता ने बार-बार अपने वोट की ताकत से यह दिखाया है कि असली ताकत जनता के हाथ में है।

डिजिटल युग में सोशल मीडिया और युवाओं की सक्रिय भागीदारी ने लोकतंत्र को और सशक्त किया है। साथ ही, Voter list update ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए अब और भी सुलभ हो गया है। लोग अब सिर्फ चुनावों में हिस्सा नहीं लेते, बल्कि यह सुनिश्चित भी करते हैं कि उनका नाम मतदाता सूची में सही दर्ज हो।

 

Election Commission of India: लोकतंत्र का प्रहरी

भारत का चुनाव आयोग(Election Commission of India) देश के लोकतांत्रिक ढांचे का एक मजबूत स्तंभ है। इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी और तभी से यह स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनावों का संचालन कर रहा है। हर चुनाव से पहले Voter list update कराना आयोग की एक प्राथमिक ज़िम्मेदारी होती है।

यह एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है, जिसका प्रमुख कार्य लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनावों को स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कराना है। Voter list update की प्रक्रिया आयोग द्वारा समय-समय पर शुरू की जाती है ताकि कोई पात्र नागरिक वोट देने से वंचित न रह जाए।

आयोग के पास पर्याप्त शक्तियाँ होती हैं जिससे यह चुनाव प्रक्रिया को नियंत्रित और निष्पक्ष बना सके। आधुनिक तकनीक, ईवीएम, वीवीपैट के साथ-साथ Voter list update प्रक्रिया में आधार कार्ड, मोबाइल OTP और डिजिटल सत्यापन को जोड़ा गया है।

 

भारत की निर्वाचन प्रणाली (Electoral system in India):-

भारत की निर्वाचन प्रणाली (Electoral system in India) निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने का ढांचा प्रदान करती है। इसमें मतदाता पंजीकरण और Voter list update एक बुनियादी आवश्यकता है। नागरिकों का चुनाव में भाग लेना तभी संभव है जब उनका नाम सही तरीके से मतदाता सूची में दर्ज हो।

चुनाव आयोग के माध्यम से चुनावी सूची, नामांकन, मतदान आदि की प्रक्रिया संचालित होती है। लेकिन अगर Voter list update समय पर न हो, तो कई योग्य मतदाता मतदान से वंचित हो सकते हैं। अतः यह प्रणाली तभी प्रभावी है जब यह सूची सटीक और अद्यतन हो।

 

पारदर्शी चुनाव (Transparent elections) का अर्थ:-

पारदर्शी चुनाव(Transparent elections) का अर्थ है ऐसी प्रक्रिया जिसमें प्रत्येक चरण साफ, निष्पक्ष और भरोसेमंद हो। इसमें Voter list update अहम भूमिका निभाता है क्योंकि सही मतदाता सूची से ही निष्पक्ष मतदान संभव है। जनता का विश्वास इसी पारदर्शिता पर आधारित होता है।

 

फर्जी मतदाता (Fake voters issue)पर टिप्पणी:-

फर्जी मतदाता(Fake voters) भारतीय चुनाव प्रणाली की एक बड़ी चुनौती है। जब Voter list update में लापरवाही होती है, तब मृत या एक से अधिक बार दर्ज नाम चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं। डिजिटल पहचान और समय पर Voter list update के ज़रिए इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है।

 

 

भारतीय चुनाव प्रणाली में विपक्ष की राजनीति( Opposition politics in India):-

विपक्ष चुनावों में एक अहम भूमिका निभाता है। Voter list update प्रक्रिया में भी विपक्ष का दबाव चुनाव आयोग को सतर्क बनाता है। अगर सूची में गड़बड़ी हो, तो विपक्ष सबसे पहले सवाल उठाता है और सुधार की माँग करता है।

कई विपक्षी दल चुनावी जनसभाओं में जनता से अपील करते हैं कि वे समय रहते Voter list update कर लें ताकि वे अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें। यह जागरूकता लोकतंत्र को और मज़बूत करती है।

 

यह एक दृष्टिकोण है जो की डॉ. सुधाकर आशावादी द्वारा दी गई है  –

 मतदाता पुनरीक्षण पर राजनीति के निहितार्थ

(डॉ. सुधाकर आशावादी- Author)

किसी भी राष्ट्र की समृद्धि सभी नागरिकों की राष्ट्र के प्रति समर्पित भावना से ही संभव है तथा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जितनी उपयोगिता सत्ता पक्ष की है, उससे अधिक उपयोगिता सकारात्मक विपक्ष की है, जो पग पग पर सत्ता को जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध घेरता रहे, बिना किसी तार्किक आधार के मात्र विरोध के नाम पर विरोध की राजनीति न करे। विडम्बना है कि भारत में विपक्ष केवल नकारात्मक दिशा में गतिशील है। विपक्ष को भारत की एकता व अखंडता से जुड़े मुद्दों से कोई सरोकार नहीं रह गया है। यदि उसे देश की संवैधानिक संस्थाओं पर तनिक सा भी विश्वास होता, तो वह संकीर्ण  चिंतन एवं मात्र राजनीतिक कारणों से जनहितकारी नीतियों का विरोध न करता और न ही लोकतंत्र के प्रमुख घटक मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के विरुद्ध अनर्गल और अतार्किक बयानबाज़ी करता। विधान सभाओं से लेकर संसद तक मतदाता सूची के परीक्षण पर बवाल मचाता।

विपक्ष के सम्मुख एक बड़ी चुनौती अपना अस्तित्व बचाने की है। अनेक चुनाव परिणामों से स्पष्ट हो चुका है, कि देश की अधिकांश जनता विपक्ष को नकार चुकी है। विपक्ष इसे अपनी नैतिक हार न मान कर भी बेशर्मी से अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम के मत्थे मढ़ता है, कभी चुनाव आयोग पर। ऐसा करते समय विपक्ष भूल जाता है कि वही चुनाव आयोग और वही ईवीएम उन राज्यों में भी कार्य कर रहा है, जहां विपक्ष से जुड़े राजनीतिक दलों का सत्ता पर कब्जा है।

मतदाता पुनरीक्षण पर कांग्रेस, राजद, सपा, तृणमूल कांग्रेस सहित जो जो दल सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्हें देश के मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री ज्ञानेश कुमार ने करारा जवाब दिया है तथा उनसे पूछा है कि पारदर्शी प्रक्रिया से तैयार की जा रही मतदाता सूची क्या मजबूत चुनाव और मजबूत लोकतंत्र की नींव नही है ? क्या जिन लोगों की मौत हो चुकी है, उन्हें वोट डालने दिया जाए ? क्या अपात्र लोगों को मताधिकार मिलना चाहिए ? कड़वा सच यही है, कि जब जब लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार के प्रयास किए जाते हैं, तब तब अराजक तत्व और उनके समर्थक राजनीतिक दल सुधारों का विरोध करने के लिए सड़क से लेकर संसद तक विरोध पर उतर आते हैं तथा व्यवस्था के सकारात्मक सुधार को स्वीकार नहीं कर पाते । कौन नहीं जानता कि अव्यवस्था का समर्थन वही करते हैं, जिन्हें प्रचलित अव्यवस्था से कोई लाभ प्राप्त हो रहा हो। विचारणीय प्रश्न यह भी है, कि क्या एक नागरिक को एक से अधिक मताधिकार प्रयोग करने का अधिकार मिलना चाहिए। जिन नागरिकों ने अपने स्थाई निवास और अपने कार्यस्थल पर अलग अलग मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा रखा हो, क्या उन्हें इस जालसाज़ी की सजा नहीं मिलनी चाहिए ? क्या किसी भी मतदाता को दो स्थानों पर मतदान की आज़ादी मिलनी चाहिए ? क्या मतदाता सूची में पारदर्शिता नहीं होनी चाहिए ? गंभीर चिंतन का विषय यही है कि मतदाता सूचियों में गड़बड़ का आरोप लगाने वाले ही यदि मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर सवाल उठाएँगे, तो सवाल उठने वालों की नीयत पर भी सवाल खड़े होंगे। केवल एक ही प्रदेश की मतदाता सूची का प्रश्न नहीं है। सवाल पूरे देश में चुनाव सुधारों का है, जिसके लिए निष्पक्ष मतदाता सूची देश की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। जहां तक संभव हो, विभिन्न चुनावों के लिए पृथक पृथक मतदाता सूची जारी करने से अच्छा है कि राष्ट्रीय स्तर पर केवल एक मतदाता सूची बने। हर चुनाव से पहले उसकी वैधता व विश्वसनीयता का परीक्षण हो, ताकि किसी भी राजनीतिक दल को मतदाता सूची पर सियासत करके जनता को भ्रमित करने का अवसर ही न मिल सके।  डॉ.सुधाकर आशावादी

 

निष्कर्ष:-

Voter list update लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रीढ़ है। जब हर नागरिक यह सुनिश्चित करता है कि उसका नाम सूची में सही दर्ज है, तभी लोकतंत्र की असली शक्ति प्रकट होती है। चुनाव आयोग, राजनीतिक दल, मीडिया और स्वयं जनता—सभी की ज़िम्मेदारी है कि वे Voter list update को प्राथमिकता दें और एक निष्पक्ष, पारदर्शी चुनाव प्रणाली की नींव को और भी सुदृढ़ करें।

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