Jahangir: न्याय, प्रेम और कला का संवेदनशील मुगल सम्राट

Aanchalik Khabre
11 Min Read
Jahangir

मुगल इतिहास में अगर कोई सम्राट न्यायप्रियता, कलात्मक सौंदर्य, साहित्यिक रुचि और संवेदनशील प्रशासन का प्रतीक है, तो वह है सम्राट Jahangir । उसका असली नाम नूरुद्दीन मोहम्मद सलीम था, लेकिन इतिहास में वह “Jahangir” के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसका अर्थ है — “दुनिया का विजेता”। वह अकबर का पुत्र और शाहजहाँ का पिता था, जिसकी भूमिका भारतीय इतिहास के सांस्कृतिक, प्रशासनिक और राजनीतिक परिदृश्य में अत्यंत महत्वपूर्ण रही।

Contents

 

Jahangir का प्रारंभिक जीवन:-

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि:

Jahangir का जन्म 31 अगस्त 1569 को फतेहपुर सीकरी में हुआ। उसके पिता अकबर उस समय तक एक शक्तिशाली मुगल सम्राट बन चुके थे। माँ मरियम-उज़-ज़मानी (जोधाबाई) राजपूत राजकुमारी थीं, जिनके माध्यम से मुगलों और राजपूतों के बीच सांस्कृतिक संबंध और मजबूत हुए।

बचपन का माहौल और शिक्षा:

सलीम को विशेष ध्यान से पाला गया। उसे फारसी, अरबी, तुर्की, इतिहास, गणित, खगोलशास्त्र, युद्धनीति, कूटनीति और संगीत की शिक्षा दी गई। Jahangir बचपन से ही चित्रकला में रुचि रखने वाला था और प्रकृति का सच्चा प्रेमी था। यद्यपि वह कुशल सेनानायक नहीं था, लेकिन एक समझदार और न्यायप्रिय शासक बनने के सभी गुण उसमें विकसित हो चुके थे।

Jahangir का राज्यारोहण और शासन प्रारंभ:-

गद्दी तक की यात्रा:

Jahangir के गद्दी पर बैठने से पहले उसका अपने पिता अकबर से विवाद हुआ। उसने विद्रोह भी किया, लेकिन बाद में अकबर के आग्रह पर उसने आत्मसमर्पण कर दिया। अकबर की मृत्यु के बाद 3 नवंबर 1605 को सलीम ने “Jahangir” की उपाधि धारण की और आधिकारिक रूप से मुगल सम्राट बना।

प्रशासनिक दृष्टिकोण:

Jahangir ने अकबर की नीतियों को जारी रखा, विशेष रूप से धार्मिक सहिष्णुता और न्याय को प्राथमिकता दी। वह प्रजा के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध था और जनता की समस्याओं को सीधे सुनने की व्यवस्था की। इसीलिए उसने न्याय की श्रृंखला — “श्रृंखलित न्याय” — की शुरुआत की, जिससे कोई भी अन्यायग्रस्त व्यक्ति सीधे सम्राट तक अपनी बात पहुँचा सकता था।

 

 

यहाँ Jahangir के शासनकाल की प्रमुख लड़ाइयों और संघर्षों :-

  1. राजकुमार खुर्रम (Jahangir) का विद्रोह (1622–1625)

  • कारण:
    खुर्रम (बाद में Jahangir) को अपने पिता Jahangir के दरबार में बढ़ते हुए नूरजहाँ के प्रभाव से खतरा महसूस हुआ।
  • परिणाम:
    उसने विद्रोह कर दिया और मुग़ल सेना के विरुद्ध युद्ध किया। अंततः उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा।
    बाद में उसे उत्तराधिकारी बना दिया गया।

 

  1. ख़ानजहाँ लोदी और अफगानों का विद्रोह

  • स्थान:
    दक्कन (मध्य भारत)
  • परिणाम:
    विद्रोह को दबा दिया गया, लेकिन इससे दक्कन में मुग़ल नियंत्रण कमजोर हो गया।

 

  1. राजपूत विद्रोह (मेवाड़ के साथ संघर्ष)

  • मेवाड़ के राणा अमर सिंह से संघर्ष:
    अकबर के समय से चल रही इस लड़ाई को Jahangir ने आगे बढ़ाया।
  • परिणाम:
    अंततः 1615 में अमर सिंह ने संधि कर ली और मेवाड़ ने मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली।
    यह एक बड़ा राजनीतिक और सैन्य विजय मानी गई।

 

  1. अहमदनगर का संघर्ष (दक्षिण भारत में)

  • बिजापुर और गोलकोंडा के साथ संघर्ष:
    दक्कन की सुल्तानतों से निरंतर टकराव जारी रहा।
  • मालिक अंबर के साथ संघर्ष:
    Jahangir की सेना को अहमदनगर के मलिक अंबर ने कई बार हराया।
  • परिणाम:
    यह लड़ाई पूरी तरह से मुग़लों के पक्ष में नहीं गई। मलिक अंबर ने बार-बार मुग़ल सेना को पीछे हटाया।

 

  1. नूरजहाँ और महावत खान का संघर्ष (दरबारी षड्यंत्र)

  • महावत खान ने 1626 में जहाँगीर को बंदी बना लिया था।
  • नूरजहाँ ने साहस और बुद्धिमत्ता से स्थिति को संभाला और जहाँगीर को मुक्त करवाया।
  • यह संघर्ष मुख्यतः आंतरिक सत्ता की राजनीति से जुड़ा था।

 कुल निष्कर्ष:

Jahangir का शासनकाल प्रशासनिक सुधारों, कला और न्यायप्रियता के लिए जाना जाता है। वह युद्धों की अपेक्षा शासन और संस्कृति में अधिक रुचि रखता था। उसके शासन में:

  • कोई बहुत बड़ा विदेशी युद्ध नहीं हुआ,
  • लेकिन कई आंतरिक विद्रोह और सीमावर्ती संघर्ष हुए,
  • दक्कन और राजपूत राज्यों के साथ टकराव जारी रहे।

 

Jahangir की न्यायप्रियता और प्रशासनिक शैली:-

श्रृंखलित न्याय की व्यवस्था:

लाल किले के बाहर स्वर्ण की एक श्रृंखला लगाई गई थी जिसे खींचने से घंटी बजती थी और Jahangir खुद शिकायत सुनता था। यह व्यवस्था भारतीय इतिहास की सबसे अनूठी और जनता के अनुकूल मानी जाती है। इसके पीछे उसकी यह सोच थी कि न्याय न राजा का अहंकार है, बल्कि उसका कर्तव्य।

प्रशासनिक सुधार और शांति की नीति:

Jahangir ने कानून-व्यवस्था को मज़बूत किया, भ्रष्टाचार को कम करने के प्रयास किए और स्थानीय प्रशासन में न्यायिक तंत्र को बेहतर बनाया। विद्रोही प्रदेशों में सैनिक कार्यवाही के बजाय संधियों और संवाद का उपयोग अधिक किया गया।

 

धार्मिक सहिष्णुता और धार्मिक नीति:-

अकबर की नीति का पालन:

Jahangir ने अपने पिता अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को बनाए रखा। यद्यपि वह व्यक्तिगत रूप से इस्लाम के प्रति निष्ठावान था, लेकिन हिंदू मंदिरों को संरक्षण देना, हिंदू दरबारियों को उच्च पद देना, और जज़िया कर न लगाना — ये सब उदाहरण उसकी सहिष्णुता को दर्शाते हैं।

सिक्ख धर्म से संबंध:

हालाँकि Jahangir का शासनकाल गुरु अर्जुन देव जी के साथ विवाद के लिए भी जाना जाता है। सिक्खों का मानना है कि गुरु अर्जुन देव को जहाँगीर के आदेश पर शहीद किया गया। यह घटना उसकी धार्मिक नीति पर कुछ प्रश्न उठाती है, लेकिन अधिकांशतः उसका व्यवहार अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु रहा।

 

Jahangir और नूरजहाँ की कहानी:-

प्रेम और राजनीति का संगम:

1611 ई. में Jahangir ने मेहरुनिस्सा नामक एक विधवा से विवाह किया, जिसे उसने “नूरजहाँ” की उपाधि दी — “दुनिया की रोशनी”। नूरजहाँ न केवल सुंदरी थी, बल्कि अत्यंत बुद्धिमान, नीतिज्ञ और राजनीतिक समझ रखने वाली महिला थी।

नूरजहाँ गुट और शक्ति संतुलन:

नूरजहाँ ने शासन में अप्रत्यक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसका गुट — जिसमें उसके पिता इतिमाद-उद-दौला, भाई आसफ खाँ और दामाद खुर्रम (शाहजहाँ) शामिल थे — दरबार की निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करता था। सिक्कों पर नूरजहाँ का नाम छपना उस समय की सबसे बड़ी मिसाल है कि किस हद तक उसने सत्ता पर पकड़ बनाई।

 

कला, संस्कृति और स्थापत्य में योगदान:-

चित्रकला का स्वर्ण युग:

Jahangir ने चित्रकला को अत्यधिक बढ़ावा दिया। उसने विशेष रूप से प्रकृति पर आधारित लघुचित्र बनवाए। कलाकारों को दरबार में सम्मान और पुरस्कार दिए जाते थे। प्रसिद्ध चित्रकारों में उस्ताद मंसूर, अबुल हसन आदि उसके दरबार का हिस्सा थे।

साहित्य और आत्मकथा ‘जहाँगीरनामा’:

Jahangir ने अपनी आत्मकथा ” Jahangirnama” स्वयं लिखी, जो भारतीय इतिहास के लिए अमूल्य स्रोत है। इसमें उसने अपने शासनकाल, फैसलों, अनुभवों और विचारों को अत्यंत ईमानदारी से लिखा है। यह मुगल राजव्यवस्था, संस्कृति और दरबार की झलक देता है।

स्थापत्य योगदान:

Jahangir ने यद्यपि अकबर और शाहजहाँ की तुलना में कम निर्माण कार्य कराए, लेकिन लाहौर, आगरा और कश्मीर में सुंदर उद्यान, मकबरे और भवन बनाए गए। उसकी समाधि लाहौर में है, जो स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है।

 

विदेशी संबंध और यूरोपीय आगंतुक:-

ब्रिटिशों से पहला संपर्क:

Jahangir के शासन में ही ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में व्यापार की शुरुआत की। 1615 में सर थॉमस रो उसके दरबार में आए। उन्हें कुछ व्यापारिक विशेषाधिकार भी दिए गए, जिसने भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की नींव रखी।

अन्य विदेशी संबंध:

Jahangir ने डच, फ्रेंच और पुर्तगाली व्यापारियों को भी भारत में व्यापार करने की अनुमति दी। उसने कूटनीतिक रूप से संतुलन बनाए रखा और किसी एक विदेशी शक्ति को अधिक प्रभावी नहीं होने दिया।

 

अंतिम वर्ष और उत्तराधिकार का संकट:-

शाहजहाँ का विद्रोह:

Jahangir के पुत्र खुर्रम (बाद में शाहजहाँ) ने नूरजहाँ के प्रभाव से असंतुष्ट होकर विद्रोह किया। कई वर्षों तक यह संघर्ष चला, लेकिन अंततः नूरजहाँ और उसके भाई ने समझौते के जरिए खुर्रम को उत्तराधिकारी बना दिया।

Jahangir की मृत्यु:

1627 ई. में Jahangir का निधन हुआ जब वह कश्मीर से लाहौर लौट रहा था। उसे लाहौर के शाहदरा बाग में दफनाया गया। उसकी समाधि एक बाग के बीच स्थित है और वास्तुकला का अनुपम उदाहरण मानी जाती है।

 

Jahangir की विरासत और ऐतिहासिक महत्व:

न्यायप्रियता की मिसाल:-

Jahangir का नाम आज भी “श्रृंखलित न्याय” की वजह से लिया जाता है। वह केवल सम्राट नहीं था, बल्कि न्याय और करुणा का आदर्श था। उसने प्रशासन को मानवीय दृष्टिकोण से चलाया।

कला और संस्कृति का स्वर्ण युग:-

Jahangir के शासन को “मुगल चित्रकला का स्वर्ण युग” कहा जाता है। उसका योगदान स्थापत्य, साहित्य और चित्रकला में अमूल्य रहा। उसकी आत्मकथा ‘जहाँगीरनामा’ भारतीय इतिहास के लिए बेमिसाल दस्तावेज है।

नूरजहाँ के साथ साझेदारी का उदाहरण:-

Jahangir और नूरजहाँ का संबंध भारत के इतिहास में पहली बार एक महिला को सत्ता की उच्चतम परिधि तक पहुँचाने का उदाहरण बना। यह मुग़ल इतिहास की एक अनोखी कहानी है जिसमें प्रेम, राजनीति और शक्ति का विलक्षण संतुलन देखने को मिलता है।

 

निष्कर्ष

Jahangir की कहानी सत्ता के भूखे सम्राट की नहीं, बल्कि एक ऐसे शासक की है जिसने न्याय को सर्वोपरि रखा, कला को अपनाया, साहित्य को सम्मान दिया और प्रेम को सत्ताशक्ति में बदलने की राह दिखाई। उसकी नीतियाँ, प्रशासनिक सोच, सांस्कृतिक दृष्टिकोण और न्यायप्रियता ने मुगल इतिहास को न केवल मजबूत बनाया, बल्कि उसे गरिमा और संवेदनशीलता से भर दिया।

Also Read This – अमरोहा खबर: संदिग्धों को चोर समझकर भीड़ ने की पिटाई, वीडियो वायरल, पुलिस जांच में जुटी

 

Share This Article
Leave a Comment