जतिंद्रनाथ मुखर्जी, जिन्हें पूरे देश में “बागा जतिन” के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनका साहस और त्याग आज भी प्रेरणा देता है। उनका नाम 20वीं सदी के प्रारंभिक भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के उन वीर योद्धाओं में आता है, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को सीधी चुनौती दी।
प्रारंभिक जीवन
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जन्म: 7 दिसंबर 1879
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जन्मस्थान: कुष्टिया, बंगाल प्रेसिडेंसी (अब बांग्लादेश)
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परिवार: एक साधारण बंगाली ब्राह्मण परिवार में जन्म
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शिक्षा: कलकत्ता सेंट्रल कॉलेज से पढ़ाई
बचपन से ही जतिन में अद्भुत शारीरिक क्षमता और निर्भीक स्वभाव था। यही गुण आगे चलकर उन्हें “बागा” यानी बाघ मारने वाला का नाम दिलाएंगे।
“बागा जतिन” नाम कैसे पड़ा?
एक बार जंगल में जतिन का सामना एक खूंखार बाघ से हो गया। निहत्थे होते हुए भी उन्होंने केवल एक चाकू से बाघ को मार गिराया। इस अद्भुत साहस के बाद लोग उन्हें प्यार से “बागा जतिन” कहने लगे।
क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत
जतिन मुखर्जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1905 के बंग-भंग आंदोलन के समय सक्रिय हुए। उन्होंने जुगांतर पार्टी में शामिल होकर हथियार इकट्ठा करने, क्रांतिकारियों को प्रशिक्षित करने और गुप्त योजनाएं बनाने का कार्य शुरू किया।
उनकी योजना केवल अंग्रेजों को चुनौती देने की नहीं थी, बल्कि पूरे देश में एक संगठित क्रांतिकारी नेटवर्क खड़ा करना थी।
महत्वपूर्ण क्रांतिकारी गतिविधियाँ
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1908 में अलीपुर बम केस में सहयोग
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जतिन ने कई क्रांतिकारियों को हथियार और संसाधन मुहैया कराए।
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जर्मन प्लान (1915)
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प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने जर्मनी से हथियार मंगाने की गुप्त योजना बनाई, ताकि अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया जा सके।
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रेल डकैती और हथियार संग्रह
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क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन और हथियार जुटाने के लिए कई साहसी कार्रवाइयाँ कीं।
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बालासोर की लड़ाई (1915)
1915 में ओडिशा के बालासोर जिले में जतिन और उनके साथियों ने ब्रिटिश पुलिस और सेना का डटकर सामना किया।
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कई घंटे तक चली इस भीषण मुठभेड़ में जतिन गंभीर रूप से घायल हुए।
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10 सितंबर 1915 को उनकी शहादत हुई।
उनके आखिरी शब्द थे –
“देश के लिए मरना ही सबसे बड़ा धर्म है।”
व्यक्तित्व और विचार
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निडर, अनुशासित और दूरदर्शी
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युवाओं में क्रांतिकारी जोश भरने वाले
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“सशस्त्र संघर्ष ही स्वतंत्रता का मार्ग है” में विश्वास
विरासत
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बागा जतिन का नाम आज भी बंगाल और ओडिशा में वीरता के प्रतीक के रूप में लिया जाता है।
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उनकी जीवनगाथा पर कई किताबें और शोध कार्य हुए हैं।
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भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया है।
FAQ
Q1: बागा जतिन को यह नाम कैसे मिला?
Ans: उन्होंने निहत्थे होकर एक बाघ को मार गिराया, इसी वजह से उन्हें “बागा जतिन” कहा जाने लगा।
Q2: बागा जतिन का जन्म कब और कहां हुआ था?
Ans: 7 दिसंबर 1879 को कुष्टिया, बंगाल प्रेसिडेंसी (अब बांग्लादेश) में।
Q3: बागा जतिन की मृत्यु कब हुई?
Ans: 10 सितंबर 1915 को बालासोर, ओडिशा में।
Q4: बागा जतिन किस क्रांतिकारी संगठन से जुड़े थे?
Ans: वे जुगांतर पार्टी से जुड़े थे।