12 सितम्बर शहीद दिवस के रूप में जाना जाएगा
भारत के स्वाधीनता संग्राम से अब-तक जितनी भी सरकारें बनी सभी सरकारों ने मज़दूरों पर गोलियाँ चलाई।
शेख़ अंसार – समाज सेवी
भारत के मज़दूर आन्दोलन पर पहली गोली ब्रिटिश हुकूमत ने राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मज़दूरों पर चलवाई थी, जिसमें एक नवजवान मज़दूर जरहूगोंड़ की शहादत हुई। स्वाधीन भारत का पहला गोली कांड सन 1948 को राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मज़दूरों पर चलाई गई, जिसमें रामदयाल और ज्वालाप्रसाद शहीद हुए थे।
12 सितम्बर 1948 को अविभाजित मध्यप्रदेश के अर्जुनसिंह सरकार की पुलिस ने बीएनसी मिल्स राजनांदगाँव के मज़दूरों पर बर्बर गोलियाँ बरसाई जिसमे दो मज़दूरों जगत सतनामी, घनाराम देवांगन और बालक राधे ठेठवार को मोतीपुर बस्ती में गोली लगने से शहादत हुई। जबकि शहीद मेहतरू देवांगन को एक दिन पहले 11 सितम्बर को मैनेजमेंट के गुण्डों ने लाठी-तलवारों से लैस होकर उस समय प्राणघातक हमला किया, जब जुलूस शांतिपूर्वक नारा लगाते हुए बीएनसी मिल्स के जीएम बंगला का पार रही थी। इस अनापेक्षित हमले से जुलूस मे अफरा – तफरी मच गयीं। हमलावरों ने जुलूस के अंतिम छोर पर प्राणघातक हमला किया जबकि जुलूस का एक हिस्सा मोतीपुर यूनियन कार्यालय पहुंच गयीं थी। हमला इतना संघातिक और सुनियोजित था कि साथी मेहतरू देवांगन अगले ही दिन रायपुर के डी. के. अस्पताल मे उनकी शहादत हो गयीं।
अमर शहीदों का पैग़ाम, जारी है संग्राम !
सन् 1984 में राजनांदगाँव की बीएनसी मिल्स के मज़दूरों ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के लाल – हरे झंडे के तले राजनांदगाँव कपड़ा मिल मज़दूर संघ नाम की यूनियन का गठन किया। इसके नेतृत्व में मज़दूरों ने मिल की कार्यदशा, अत्यधिक तापमान और श्रम कानूनों के तहत उपलब्ध सुविधाओं के लिए जुझारू संघर्ष किया। दल्लीराजहरा के खदान मज़दूरों ने इस संघर्ष को सक्रिय समर्थन दिया। खदान मज़दूरों की एक सभा मे अपनी गिरफ्तारी के पहले कॉमरेड नियोगी द्वारा 28 अगस्त 1984 को दिया गया भाषण नीचे प्रस्तुत है। खदान मज़दूरों के शिक्षण की दृष्टि से नियोगी जी ने जिस तरह राजनांदगाँव में मज़दूर संघर्ष का इतिहास तराशा है वह उनकी जन शिक्षण के बारे में गहरी समझ की मिसाल है।
बीएनसी मिल्स ( बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स ) राजनांदगांव के दो माह के आन्दोलन के अन्दर पूँजीपति वर्ग और प्रशासन ने इस बात को महसूस किया है कि लाल – हरे झंडे की राजनीति केवल खदान मज़दूरों की राजनीति नही, केवल किसान वर्ग और आदिवासियों की राजनीति नही है। लाल – हरे झंडे की राजनीति तमाम मेहनतकश वर्ग की राजनीति है। सारी दुनिया की दौलत मज़दूर और किसान के खून, आँसू और पसीने से पैदा हुई है। लेकिन इस पर सफेदपोश लुटेरे वर्ग ने कब्जा कर लिया है। मज़दूर वर्ग जन आन्दोलन और संघर्ष के जरिये ही इसको पा सकता है।
बीएनसी मिल्स का निर्माण कब हुआ ? इसके साथ छत्तीसगढ़ के इतिहास का क्या सम्बंध है ? इसको समझना जरूरी लगता है। लगभग 1886 के आसपास बीएनसी मिल्स का निर्माण हुआ। उस समय देश मे ब्रिटिश हुकूमत थी, मिल रियासत के अधीन थी। अंग्रेजी हुकूमत देश के दूरस्थ इलाकों तक अपना प्रशासन तंत्र का पहुंच बनाने के लिए रेल्वे का विकास किया उसी क्रम में बीएनआर ( बंगाल नागपुर रेल्वे ) का निर्माण किया। इससे एक ओर छत्तीसगढ़ी जनता के लिए दूर देश जाने का रास्ता बना। दूसरी ओर शोषण करने का रास्ता भी बना। मेहनती छत्तीसगढ़ी जनता को ठेकेदारों ने अन्य स्थानों पर जैसे कोयला खदानों, चाय बागानों, ईंट भट्ठों – मिट्टी कटाई के काम दूर – दराज प्रान्तों ले जाने लगे।
*भारत के मज़दूर आन्दोलन मे बीएनसी मिल्स के मज़दूरों की अहम् भूमिका रही है।
1908 मे जब ब्रिटिश हुकूमत ने बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार किया तब तिलक की गिरफ्तारी के विरोध में अपनी राजनीतिक चेतना की मिसाल प्रस्तुत करते हुए बीएनसी मिल्स के मज़दूरों ने हड़ताल कर दिया।
1920 मे उभरते जंगल सत्याग्रह को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकूमत सत्यग्राहियो पर गोली चलाई उस गोलीकाण्ड मे बादराटोला के नवजवान रामाधीन गोंड शहीद हुआ। इस गोलीबारी के विरोध मे बीएनसी मिल्स के मज़दूरों ने काम बंद किया था।
1948 में बीएनसी मिल्स के हड़ताली मज़दूरों पर मोतीतालाब के पास गोली चलाई गयीं जिसमें दो मज़दूर साथी रामदयाल, ज्वालाप्रसाद शहीद हूए।
9 जनवरी 1953 को छुईखदान के तहसील कचहरी से कोषालय का खैरागढ़ स्थानांतरित किये जाने के विरोध मे जो प्रदर्शन हुआ उस जंगी प्रदर्शन को तितर – बितर करने लिए भयंकर गोलियां बरसाई गयीं जिसमें 5 लोगों की जाने गयीं 34 प्रदर्शनकारी बुरी तरह जख्मी हूए इस गोलीबारी में पं. द्वारिकाप्रसाद तिवारी, पं.बैकुण्ठप्रसाद तिवारी, समसीरबाई, भूलिनबाई और कचराबी शहीद हुए। प्रख्यात मज़दूर नेता दत्ता सामंत ने बम्बई के टेक्सटाइल मज़दूरों के मांगो के समर्थन के लिए 20 दिसम्बर उन्नीस ब्यासी को अखित भारतीय हड़ताल का आह्वान किया तो बीएनसी मिल्स के मज़दूरों ने बाबू प्रेमनारायण वर्मा की अगुवाई मे उस हड़ताल का समर्थन किया था, जिसके लिए बीएनसी मिल मैनेजमेंट ने साथी प्रेमनारायण वर्मा निलम्बित कर दिया था।*
कब तक मज़दूर किसान के छाती से ल़हू बहता रहेगा … ?
जब तक पूंजीवाद का खात्मा नही हो जाता, जब तक मज़दूरो का राज़ कायम नही हो जाता।