झाँसी की शाम में बेजोड़ संगीत, भावनाओं की उमंग, और किशोर कुमार की अमर विरासत को समर्पित एक यादगार कार्यक्रम – ऐसा “एक शाम किशोर दा के नाम” आयोजन संघर्ष सेवा समिति द्वारा बहुत ही भव्य अंदाज़ में मनाया गया। जैसे ही दीप प्रज्वलन हुआ, महापौर बिहारी लाल आर्य सहित मुख्य अतिथि और वरिष्ठ कलाकार मंच पर उपस्थित हुए और जनमानस ने उत्साहपूर्वक उन्हें स्वागत किया।
मुंबई से आए फिल्म निर्माता व लेखक राज शांडिल्य और प्रमुख पार्श्वगायक शैलेंद्र कुमार की उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ गई। अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने की, जबकि कार्यक्रम के मुख्य आयोजक डॉ. संदीप सरावगी व संयोजक जीतू देव आनंद ने सभी अतिथियों का स्वागत फूलों का गुलदस्ता देकर और पारंपरिक अभिवादन से किया।
मंच पर जैसे ही शैलेंद्र कुमार, संदीप राय, संध्या कश्यप और अन्य लोकप्रिय गायकों ने किशोर दा के अमर गीतों की प्रस्तुति दी, सभागार तालियों और भावनाओं से झूम उठा। क्षेत्रीय गायकों में महेंद्र सेन, सुनील निगम, सिराज खान, रामकुमार लोहिया ने भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। लखनऊ से पधारी एंकर दीपिका यादव ने अपने शानदार मंच संचालन से महफ़िल को जीवंत बना दिया।
यह सिर्फ संगीत संध्या नहीं थी, बल्कि यह किशोर कुमार जैसे बहुमुखी कलाकार को सच्ची श्रद्धांजलि थी। डॉ. संदीप सरावगी ने मंच से कहा कि किशोर कुमार सिर्फ गायक ही नहीं थे, बल्कि अभिनेता, लेखक, निर्माता और निर्देशक भी थे। उनकी आवाज़ और व्यक्तित्व आज भी नई पीढ़ी को प्रेरित करता है। साथ ही समाजसेवी सुधा चौधरी और युवा कार्यकर्ता शनी जैन को सम्मानित करते हुए कार्यक्रम का समापन उत्साहपूर्ण हुआ।
क्यों किशोर कुमार आज भी दिलों में बसे हैं?
बचपन से महानता तक
किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को खंडवा (मध्य प्रदेश) में हुआ था, असली नाम अभास कुमार गांगुली था। वे क्लासिकल प्रशिक्षण न होने के बावजूद, के एल सहगल की नकल करते हुए अपनी अनूठी शैली विकसित कर गए। संगीत गुरु S. D. Burman ने उनकी प्रतिभा पहचानी और उन्हें स्वयं की विशिष्ट वोकल शैली बनाने की प्रेरणा दी—जिसमें यॉडलिंग, उत्साहित स्विंग और भावनात्मक गहराई शामिल थी।
अद्भुत करियर
उन्होंने लगभग 2,500 से अधिक गीत रिकॉर्ड किए, हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में जैसे बंगाली, मराठी, असमिया, गुजराती, कन्नड़ आदि में भी उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी।
उन्होंने आठ बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते, जो आज भी किसी भी पुरुष प्लेबैक सिंगर के लिए सबसे अधिक है।
फ़िल्म, निर्देशन और संगीत
किशोर कुमार ने मुख्य अभिनेता के रूप में कई कॉमिक तथा रोमांटिक फिल्मों में अभिनय किया, जैसे कि “Chalti Ka Naam Gaadi” (1958), “Padosan” (1968) — जिसमें उनकी मंचीय ऊर्जा और हास्य प्रतिभा ने दर्शकों को दीवाना बना दिया। साथ ही उन्होंने “Door Gagan Ki Chhaon Mein” (1964) जैसी गंभीर, निर्देशित एवं निर्मित फिल्में भी बनाई, जहाँ उन्होंने अपने आप को कॉमेडी से अलग एक भावनात्मक कलाकार के रूप में स्थापित किया।
निजी जीवन की जद्दोजहद
किशोर कुमार की चार शादियाँ हुईं—पहली रुमा घोष से (1950–58), फिर मनीषा (Madhubala) से (1960–69), उसके बाद योगिता बाली और अंततः लीना चंद्रावरकर से। उन्होंने माधुबाला का नौ साल तक गंभीर बीमारी में ख्याल रखा, जब तक उनका निधन हुआ—यह एक गहरी संवेदनशीलता की कहानी है।
वे अपने विचित्र स्वभाव, मजाकिया हरकतों, कभी-कभी आत्म-निर्मित घर की ट्रैपडोर आदि के लिए भी प्रसिद्ध थे।
स्वास्थ्य और अंत
1981 में अपने बेटे की अनपेक्षित शादी रद्द होने की तनाव‑पूर्ण घटना के बाद किशोर कुमार को पहला दिल का दौरा पड़ा। इसने उनकी सेहत पर गहरा असर डाला और आगे चलकर 13 अक्टूबर 1987 को उनकी मृत्यु हो गई, एक दिन जो उन्होंने सात साल पहले एक टैरो रीडर से सुनी भविष्यवाणी में महसूस की थी।
सम्मान और विरासत
उनकी मृत्यु के बाद भी उनका संगीत और व्यक्तित्व देश की आत्मा में अमर बन गया। अभिनेता अमिताभ बच्चन ने उन्हें “एक सच्चा कलाकार” बताया—यह सहयोग और सम्मान उस दौर के कलाकारों में दुर्लभ था।
“वो जादू” –
कमेंट्री और बयानों से स्पष्ट है कि किशोर कुमार की आवाज़ में एक ऐसा जादू था जो सीधे दिल को छू जाता है—चाहे वह किसी हल्के रोमांटिक गीत में हो, या गहरा दर्द व्यक्त करने वाले स्वर में। झाँसी में जो माहौल बना, वही जादू का एहसास रहा होगा।
आप किस गाने को सबसे अधिक पसंद करते हैं? मेरा व्यक्तिगत फ़ेवरेट है “Chingari Koi Bhadke”, क्योंकि उसमें दर्द भी है, जज़्बा भी और किशोर दा की आत्मा की प्रस्तुति भी। लेकिन दोस्तों में बहुत लोग “Roop Tera Mastana”, “Pag Ghungroo Baandh”, “Khaike Paan Banaras Wala” को भी शाश्वत मानते हैं। आप बताइए, आपका सबसे पसंदीदा कौन सा है?
निष्कर्ष
राजधानी झाँसी में संघर्ष सेवा समिति द्वारा आयोजित यह संगीत संध्या सिर्फ गीतों की प्रस्तुति नहीं थी, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा थी, जिसने किशोर कुमार की बहुमुखी प्रतिभा, उनका जीवन‑संगीत, और उनकी अमर विरासत के प्रति श्रद्धा को जीवंत किया। जहाँ एक ओर उनका संगीत हमें आनंद देता है, वहीं दूसरी ओर उनका जीना‑मरना, प्यार, कला और जज़्बा हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा—ठीक उसी तरह जैसा उन्होंने चाहा।
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