झांसी के बंगरा ब्लॉक के सेकरा धवा गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर आज सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण भारत की हकीकत को बयां करती है। यह दृश्य न सिर्फ निराशाजनक है, बल्कि एक गहरी चिंता पैदा करता है। एक ऐसा स्थान, जिसे विद्या और ज्ञान का मंदिर कहा जाता है, वह आज गंदे पानी का तालाब बन चुका है। छोटे-छोटे बच्चों को ज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए, किताबों की दुनिया में प्रवेश करने के लिए, पहले गंदे, दुर्गंधयुक्त और दूषित पानी से होकर गुजरना पड़ रहा है। यह दृश्य हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह वही भारत है, जो 21वीं सदी में विकास और प्रगति के बड़े-बड़े दावे करता है? क्या यह वही भारत है, जहाँ ‘शिक्षा का अधिकार’ जैसे कानून बनाए गए हैं?
प्राथमिक शिक्षा: एक संवैधानिक अधिकार और वर्तमान स्थिति
भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-A के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा एक मौलिक अधिकार है। सरकार ने इस अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं, जैसे कि सर्व शिक्षा अभियान और हाल ही में समग्र शिक्षा अभियान। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, नामांकन दरों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। शिक्षा मंत्रालय के यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर (कक्षा 1-5) पर सकल नामांकन अनुपात (GER) 100% से अधिक हो गया है, जो यह दर्शाता है कि लगभग सभी बच्चों का स्कूलों में नामांकन हो रहा है।
हालांकि, यह आंकड़ा केवल तस्वीर का एक हिस्सा दिखाता है। जबकि बच्चे स्कूलों में नामांकित हो रहे हैं, उनकी उपस्थिति और सीखने के परिणामों में अभी भी भारी कमी है। यही कारण है कि झांसी के सेकरा धवा गांव की कहानी इतनी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह बताती है कि सिर्फ नामांकन करा लेना ही पर्याप्त नहीं है; बच्चों को सीखने के लिए एक सुरक्षित, स्वच्छ और अनुकूल वातावरण प्रदान करना भी आवश्यक है।
ग्रामीण भारत में प्राथमिक शिक्षा की प्रमुख चुनौतियाँ
झांसी की घटना की जड़ में सिर्फ एक दिन की भारी बारिश नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों की लचर बुनियादी सुविधाओं की एक लंबी श्रृंखला है। सेकरा धवा गांव के प्राथमिक विद्यालय में जलभराव की समस्या का मुख्य कारण गांव की खराब जल निकासी व्यवस्था है। लगातार बारिश के कारण गांव का सारा पानी स्कूल परिसर में जमा हो जाता है, जिससे स्कूल का मैदान किसी तालाब से कम नहीं लगता। यह एक व्यापक समस्या का एक छोटा सा उदाहरण है।
1. अपर्याप्त और खराब बुनियादी ढाँचा
कई ग्रामीण स्कूलों में अभी भी स्वच्छ पेयजल, शौचालय और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। UDISE+ के आंकड़ों के अनुसार, कई स्कूलों में अभी भी पर्याप्त कक्षाएँ नहीं हैं, और बच्चों को एक ही कमरे में अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ाया जाता है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि देश के कई स्कूलों में 53% स्कूलों में ही लड़कियों के लिए क्रियाशील शौचालय हैं, और 74% स्कूलों में ही पीने के पानी की सुविधा है।
2. शिक्षकों की कमी और खराब गुणवत्ता
शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए योग्य और प्रशिक्षित शिक्षकों की उपलब्धता महत्वपूर्ण है। हालांकि, भारत में शिक्षकों की भारी कमी है। 2021 की यूनेस्को रिपोर्ट के अनुसार, भारत में स्कूलों में 11 लाख से अधिक शिक्षकों के पद खाली हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह कमी और भी अधिक है। इसके अलावा, शिक्षकों का प्रशिक्षण और उनके वेतनमान अक्सर असंतोषजनक होते हैं, जिससे योग्य लोग इस पेशे में आने से कतराते हैं। शिक्षकों की अनुपस्थिति भी एक बड़ी समस्या है; कई अध्ययनों से पता चला है कि प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति सिर्फ 85% है।
3. सीखने के परिणामों में कमी
नामांकन के आंकड़े भले ही उत्साहजनक हों, लेकिन बच्चों की सीखने की क्षमता अभी भी चिंता का विषय है। ‘ASER’ (Annual Status of Education Report) की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत में कक्षा 5 के लगभग 50% छात्र कक्षा 2 स्तर की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सकते थे, और केवल 29% ही बुनियादी भाग के सवाल हल कर पाते थे। यह दर्शाता है कि बच्चे स्कूल तो जा रहे हैं, लेकिन उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल रही है।
4. ड्रॉपआउट दर और लैंगिक असमानता
झारखण्ड में जलभराव की समस्या जैसे कारक बच्चों को स्कूल जाने से हतोत्साहित करते हैं। UDISE+ 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर लड़कियों की ड्रॉपआउट दर (10.1%) लड़कों (7.1%) की तुलना में अधिक है। यह सामाजिक-आर्थिक कारक, बाल विवाह और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण होता है।
समस्या के समाधान और आगे का रास्ता
झांसी की घटना पर खंड शिक्षा अधिकारी दीपक श्रीवास्तव द्वारा बच्चों को अस्थायी रूप से पंचायत भवन में स्थानांतरित करने का निर्णय एक तात्कालिक समाधान है, लेकिन यह समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। स्थायी समाधान के लिए कई स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है:
1. बुनियादी ढाँचे में सुधार
सबसे पहले, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों के निर्माण के लिए उचित स्थान का चयन किया जाना चाहिए, जहाँ जलभराव की समस्या न हो। यदि ऐसी समस्या होती है, तो स्कूल परिसर में मिट्टी डलवाकर उसकी ऊंचाई बढ़ाना और जल निकासी के लिए नालियों का निर्माण करना एक प्रभावी समाधान हो सकता है, जैसा कि खंड विकास अधिकारी द्वारा वादा किया गया है। सरकार को स्वच्छ पेयजल, शौचालय, और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं को सभी स्कूलों में सुनिश्चित करने के लिए विशेष अभियान चलाने होंगे।
2. शिक्षकों की भर्ती और प्रशिक्षण
शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए नए शिक्षकों की नियुक्ति और उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाने के लिए बेहतर वेतन और प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया है, जिसे प्रभावी ढंग से लागू करना आवश्यक है।
3. सीखने के परिणामों पर ध्यान
सरकार को सिर्फ नामांकन के आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय सीखने के परिणामों पर ध्यान देना चाहिए। प्रारंभिक कक्षाओं में नियमित मूल्यांकन और कमजोर बच्चों के लिए विशेष सहायता कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए। गैर-सरकारी संगठन ‘प्रथम’ का ‘टीचिंग एट द राइट लेवल’ (TaRL) जैसा दृष्टिकोण एक अच्छा मॉडल हो सकता है, जिसमें बच्चों को उनकी वर्तमान सीखने की क्षमता के अनुसार पढ़ाया जाता है।
4. स्थानीय प्रशासन और समुदाय की भागीदारी
स्थानीय प्रशासन, जैसे खंड विकास अधिकारी और पंचायत, को ग्रामीण स्कूलों की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। स्कूल प्रबंधन समितियों (SMCs) को अधिक सक्रिय और सशक्त बनाया जाना चाहिए ताकि वे स्कूलों की निगरानी कर सकें और माता-पिता को उनके बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक कर सकें।
झांसी की यह घटना हमें एक सबक सिखाती है कि हमें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए सिर्फ कानून बनाने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उन कानूनों को जमीन पर उतारना होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे प्राथमिक विद्यालय ‘शिक्षा के मंदिर’ ही रहें, ‘जलभराव के तालाब’ न बनें। यह हमारा सामूहिक कर्तव्य है और हम सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान करना होगा ताकि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे के लिए एक वास्तविक और सार्थक अनुभव बन सके।
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