विश्व हिंदी दिवस”के अवसर पर हुआ आयोजन-आंचलिक ख़बरें-राजेंद्र राठौर

Aanchalik Khabre
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किसी भी देश को बर्बाद करने का सबसे बड़ा कारगर उपाय कि उस देश की संस्कृति और भाषा को बर्बाद कर दो। – भेरूसिंह चौहान”तरंग”

हमारे देश में हिंदी की जो दशा है शायद ही किसी भी देश की राष्ट्र भाषा की नहीं होगी ।- गणेश प्रसाद उपाध्याय

झाबुआ / अखिल भारतीय साहित्य परिषद के बैनरतले शासकीय प्राथमिक विद्यालय भोयरा में “विश्व हिंदी दिवस” के अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार गणेश प्रसाद उपाध्याय के मुख्य आतिथ्य , वरिष्ठ साहित्यकार कवि पी. डी.रायपुरिया के विशेष आतिथ्य एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के जिलाध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार कवि भेरूसिंह चौहान “तरंग” की अध्यक्षता में आयोजिक किया गया ।इस अवसर पर सर्व प्रथम अथितियों द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा एवं शहीद चन्द्रशेखर आजाद के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित किया गया ।सरस्वती वंदना विद्यालय की छात्राओं ने प्रस्तुत की। इस अवसर पर अथितियों का विद्यालय परिवार की ओर से पुष्प मालाओं एवं पुष्प गुच्छ से स्वागत – अभिनंदन किया गया।
पी. डी.रायपुरिया ने हिंदी के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अनेक देशों में सार्वजनिक स्थलों और विद्यालयों में अंग्रेजी बोलने पर जुर्माने तक का भी प्रावधान है।महर्षि दयानंद , सुभाषचन्द्र बोस और राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने भी हिंदी को मुक्त कंठ से “राष्ट्र भाषा ” बनाने का सुझाव दिया था । इसके साथ ही बच्चों की कविताओं के माध्यम से सभी गुगुदाया और तालियां बटोरी। भेरुसिंह चौहान “तरंग” ने विद्यालय के प्रधान पाठक पंडित कैलाश त्रिपाठी की ” आजाद वाटिका भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि इन्होंने बहुत ही मेहनत से इस वाटिका को संजोया है । हिंदी के संदर्भ में अपनी बात को पटल पर रखते हुए बताया कि देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए लेकिन हिंदी को आज भी “राष्ट्र भाषा” के रुप में स्वीकार नहीं किया गया। जब देश को स्वतंत्रत हुआ तब तक सारा ही कामकाज अंग्रेजी में ही होता था ।हिंदी के संबंध में यह दलील दी गई थी कि यदि पूरे देश में हिंदी थोपी गई तो दूसरी अनेक समस्याएं पैदा हो सकती है । इससे तो यही अच्छा है कि अंग्रेज़ी को आहिस्ता आहिस्ता हटाकर हिंदी को उसकी जगह पर बैठा दिया जाए ।लेकिन आज तक हिंदी को “राष्ट्र भाषा” जैसे सम्मानीय पद पर आसीन करने की बात तो दूर “राज भाषा”के रुप में भी इसकी हालत दयनीय है। आज इसकी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।अंग्रेज यह अच्छी तरह जानते थे कि अगर हिंदी को राष्ट्र भाषा के रुप में विकसित हो गई और भारतीयों ने इसे अंगीकार कर लिया तो उनकी सारी योजनाएं कामयाब नहीं हो सकती। कहा गया है कि “यदि किसी भी देश को बर्बाद करना है तो उस देश की संस्कृति और भाषा को बर्बाद कर दो । देश बर्बाद हो जाएगा ।इसके साथ ही चौहान ने “हिंदी का गौरव बढ़ाते चलो – हिंदी पढ़ो और पढ़ाते रहो”गीत और बच्चों की कविताएं सुनाकर सभी को मंत्र मुग्द कर दिया । गणेश प्रसाद उपाध्याय ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज अंग्रेजी रोजगार से जुड़ गई है । इसलिए अंग्रेजी पढ़ने – पढ़ाने के लिए गांव और शहर का हर आदमी आकर्षित है ।”हिंदी दिवस” भी औपचारिक रूप से सरकारी पर्वों को तरह बनकर रह गया है । दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जो अपनी भाषा का तिरस्कार करता हो और विदेशी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए अपनी शक्ति लगाता हो। प्रधान पाठक पंडित कैलाशचन्द्र त्रिपाठी ने भी हिंदी की दयनीय स्थिति को बताते हुए प्रेरणादाई कहानी सुनाई और तालियां बटोरी। शिक्षक राजेंद्रसिंह चौहान और शिक्षिका श्रीमती नूरनाज कटारा ने हिंदी को लेकर अपनी बात रखी । साथ ही कहा कि हमें अपने देश में हिंदी को महत्व देना चाहिए। कार्यक्रम का सफ़ल संचालन पंडित कैलाशचन्द्र त्रिपाठी ने किया और आभार व्यक्त किया शिक्षक राजेंद्रसिंह चौहान ने । इस अवसर पर विद्यालय का समस्त स्टाफ एवं विद्यार्थी मौजूद थे ।

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