गैंगरेप के झूठे आरोप का दावा, न्याय की गुहार लेकर पत्रकार का अनशन शुरू
पत्रकार मुकेश वर्मा का बड़ा आरोप: पुलिस ने साजिश के तहत जेल भेजा
अनशन पर बैठे पत्रकार ने कहा – “अगर दोषी हूं तो फांसी दे दो, वरना न्याय दो”
पुलिस जांच पर सवाल: सीडीआर, सीसीटीवी और डीएनए रिपोर्ट की अनदेखी का आरोप
क्या यह राजनीतिक साजिश है? पत्रकार को फंसाने की गहरी चाल का दावा
अनशन आमरण अनशन में बदलने की चेतावनी, प्रशासन पर बढ़ा दबाव
पत्रकार की न्याय की गुहार: गैंगरेप के झूठे आरोप में फंसाने का दावा, अनशन पर बैठा पत्रकार
झांसी में पत्रकार मुकेश वर्मा के अनशन ने पूरे शहर का ध्यान खींच लिया है। उनका दावा है कि उन्हें गैंगरेप के एक झूठे मामले में फंसाया गया है। पत्रकार ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि बिना ठोस सबूतों के उन्हें जेल भेज दिया गया। इस अन्याय के खिलाफ अब उन्होंने अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी पार्क में अनशन शुरू कर दिया है।
मुकेश वर्मा का कहना है कि यह पूरा मामला एक साजिश का हिस्सा है। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाया कि उनके विपक्षियों से मिलीभगत कर पुलिस ने मनगढ़ंत तरीके से उनके खिलाफ मामला दर्ज किया। न केवल जांच में लापरवाही बरती गई, बल्कि सबूतों को नजरअंदाज कर उन्हें जेल भेज दिया गया।
“अगर मैं दोषी हूं, तो मुझे फांसी दे दी जाए, लेकिन अगर मैं निर्दोष हूं, तो मुझे न्याय मिलना चाहिए!” – मुकेश वर्मा
पत्रकार ने अपनी गिरफ्तारी और जांच प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए हैं:
– सीडीआर (कॉल डिटेल रिकॉर्ड) का विश्लेषण नहीं किया गया।
– घटनास्थल का नक्शा नहीं बनाया गया।
– सीसीटीवी फुटेज को नजरअंदाज किया गया।
– डीएनए रिपोर्ट आने से पहले ही चार्जशीट दाखिल कर दी गई।
यह सवाल केवल एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक सिस्टम की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाते हैं।
इस घटनाक्रम के बाद पत्रकार समुदाय में भारी आक्रोश है। कई स्थानीय पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता उनके समर्थन में आगे आए हैं। उनका कहना है कि यदि एक पत्रकार के साथ ऐसा हो सकता है, तो आम आदमी के साथ न्याय की उम्मीद कैसे की जाए?
कुछ लोग इसे एक बड़ी राजनीतिक साजिश से जोड़कर देख रहे हैं। कुछ स्थानीय नेताओं और प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ मुकेश वर्मा के मतभेद पहले भी सामने आए थे। क्या यह मामला केवल एक झूठा मुकदमा है, या इसके पीछे कोई गहरी चाल है?
मुकेश वर्मा ने साफ कर दिया है कि यह अनशन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं। यदि कोई निष्पक्ष जांच नहीं होती, तो वे इस अनशन को आमरण अनशन में बदल देंगे।
अब तक प्रशासन की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। यदि यह मामला झूठा है, तो जांच एजेंसियों को सामने आकर पारदर्शिता दिखानी चाहिए। लेकिन यदि इसमें सच्चाई है, तो दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और प्रशासन इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या मुकेश वर्मा को न्याय मिलेगा, या फिर यह भी एक और ऐसा मामला बनकर रह जाएगा, जिसमें सच्चाई कहीं खो जाती है?
यह मामला केवल एक पत्रकार की लड़ाई नहीं, बल्कि उस तंत्र के खिलाफ एक आवाज़ है, जो कभी-कभी निर्दोष को गुनहगार बना देता है। अब सवाल यह है कि क्या यह संघर्ष न्याय की जीत लेकर आएगा, या फिर यह भी एक अनसुनी पुकार बनकर रह जाएगा?
झाँसी उत्तर प्रदेश से कलाम कुरैशी की रिपोर्ट देखते रहिये आपका अपना चैनल आंचलिक खबरें अपनों की खबर आप तक