Mahakumbh 2025 : प्रयागराज महाकुंभ आस्था का महासंगम, पर प्रशासन की तैयारियां सवालों के घेरे में

News Desk
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रात का दूसरा पहर था। गंगा किनारे शिविरों की रोशनी झिलमिला रही थी। दूर से भजन और शंखनाद की आवाजें हवा में घुली हुई थीं।
सैकड़ों श्रद्धालु नदी किनारे बैठकर सूर्योदय की प्रतीक्षा कर रहे थे। कोई मंत्रोच्चारण में मग्न था, तो कोई शांति की तलाश में गंगा की लहरों को निहार रहा था। यह प्रयागराज का महाकुंभ था—धर्म, आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा संगम।

हर किसी की आंखों में एक खास चमक थी। उनकी यह यात्रा सिर्फ महाकुंभ तक सीमित नहीं थी। श्रद्धालुओं का मन रामलला के दर्शन के लिए अयोध्या की ओर खिंच रहा था। काशी विश्वनाथ का आशीर्वाद लेने की अभिलाषा भी थी। चित्रकूट में कामतानाथ पर्वत के दर्शन का सपना लिए कई लोग यहां आए थे। यह एक ऐसा दुर्लभ अवसर था, जब जीवन के सारे पुण्य एक साथ अर्जित किए जा सकते थे।

लेकिन… इस बार, श्रद्धालुओं की यह यात्रा आसान नहीं थी।
आस्था का यह महासंगम निराशा में बदलने वाला था।

प्रशासन की व्यवस्थाएं ध्वस्त, श्रद्धालुओं की उम्मीदें टूटीं

अगले दिन सूरज उगते ही सड़कों पर अफरा-तफरी का माहौल था। श्रद्धालुओं के जत्थे प्रयागराज से अयोध्या, काशी और चित्रकूट की ओर निकलना चाह रहे थे।
पर सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतारें देखकर उनके चेहरे उतर गए।

यह क्या हो रहा है चार घंटे से हम जाम में फंसे हैं – रामनिवास नाम के श्रद्धालु ने हताशा में कहा।
मिर्जापुर, भदोही, जौनपुर, रीवा और सतना जैसे जिलों से आने वाले वाहन शहर की सीमा पर घंटों रुके थे। रेलवे स्टेशन की स्थिति और भी खराब थी। प्लेटफॉर्म खचाखच भरा था। लोग जमीन पर बैठकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। न कोई सूचना, न कोई मदद।

भारी ट्रैफिक से जूझता प्रयागराज

महाकुंभ के दौरान हर दिन शहर में 6000 से 7000 गाड़ियां प्रवेश कर रही थीं। प्रशासन की तैयारियां इस भीड़ को संभालने में पूरी तरह नाकाम साबित हो रही थीं।

मिर्जापुर मार्ग से: हर घंटे 500 गाड़ियां।
वाराणसी मार्ग से: हर घंटे 1500 गाड़ियां।
चित्रकूट मार्ग से: हर घंटे 1800 गाड़ियां।
लखनऊ मार्ग से: हर घंटे 1500 गाड़ियां।

रास्तों पर 30 किलोमीटर लंबा जाम था। जो दूरी 20 मिनट में तय होनी चाहिए, उसमें तीन से चार घंटे लग रहे थे।

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रेलवे स्टेशन पर हालात बेकाबू
रेलवे स्टेशनों पर भी हालात बदतर थे। टिकट खिड़कियों पर लंबी कतारें थीं। कई श्रद्धालु टिकट के इंतजार में प्लेटफॉर्म पर सोने को मजबूर थे। ट्रेनों में बैठने की जगह नहीं थी।

यह स्थिति हर किसी की श्रद्धा और धैर्य की परीक्षा ले रही थी।

ट्रैफिक व्यवस्था के नाम पर कागजी कार्रवाई
प्रशासन और ट्रैफिक विभाग की योजनाएं केवल कागजों में सीमित नजर आ रही थीं।

– रूट डायवर्जन: फाइलों में बना, लेकिन धरातल पर नदारद।
– जाम से निपटने की तैयारी: नाकाफी।
– पार्किंग की व्यवस्था: भीड़ के लिहाज से न के बराबर।

रास्तों पर गाड़ियां रेंग रही थीं। श्रद्धालु थककर सड़कों के किनारे बैठ जाते थे।

प्रशासन की नाकामी पर उठते सवाल
महाकुंभ जैसे आयोजन में लाखों श्रद्धालुओं का पहुंचना स्वाभाविक था। क्या प्रशासन ने इसकी कल्पना नहीं की थी
– शहर के मुख्य मार्गों पर रूट मैपिंग क्यों नहीं की गई
– काशी, अयोध्या और चित्रकूट तक जाने के लिए विशेष बस सेवा क्यों नहीं चलाई गई
– रेलवे ने अतिरिक्त ट्रेनों की व्यवस्था क्यों नहीं की

प्रशासन की लापरवाही ने श्रद्धालुओं की यात्रा को थकावट और निराशा से भर दिया।

समाधान की संभावनाएं
हालांकि स्थिति बिगड़ चुकी थी, लेकिन इसे सुधारने के उपाय किए जा सकते थे।

1. विशेष बस सेवा शुरू करें प्रयागराज से अयोध्या, काशी और चित्रकूट तक सीधी बसें चलाई जाएं।
2. ट्रैफिक नियंत्रण के लिए अधिक पुलिस बल तैनात करें।
3. रूट डायवर्जन को प्रभावी तरीके से लागू करें।
4. रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर सूचना केंद्र स्थापित किए जाएं।
5. अतिरिक्त स्पेशल ट्रेनें चलाकर भीड़ को नियंत्रित करें।

महाकुंभ जैसे आयोजन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक हैं। लाखों श्रद्धालु यहां पुण्य लाभ की कामना से पहुंचते हैं। उनके लिए यह सिर्फ धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक आंतरिक शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग होता है। लेकिन अगर प्रशासनिक लापरवाही श्रद्धा के इस महासंगम को कष्टप्रद बना दे, तो यह आस्था और विश्वास पर गहरी चोट पहुंचाती है।
प्रशासनिक विफलता ने श्रद्धालुओं के लिए इस पवित्र अनुभव को मुश्किल बना दिया। घंटों जाम में फंसे, बिना सूचना के प्लेटफॉर्म पर भटकते श्रद्धालुओं की थकावट, अव्यवस्था और निराशा में बदल गई। सवाल उठता है—क्या प्रशासन को इतने बड़े आयोजन की भीड़ और यातायात व्यवस्था की पहले से तैयारी नहीं करनी चाहिए थी?

आस्था का यह संगम तभी सार्थक हो सकता है, जब श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं मिलें और प्रशासनिक तैयारियां केवल कागजों में नहीं, धरातल पर भी नजर आएं। वरना यह आयोजन पुण्य लाभ के बजाय कठिनाई भरी याद बनकर रह जाएगा। श्रद्धालुओं की श्रद्धा और विश्वास की रक्षा प्रशासन की जिम्मेदारी है, जिसे पूरी निष्ठा और पारदर्शिता के साथ निभाना होगा।

आस्था को बनाए रखना जरूरी

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और आस्था का महासंगम है। लाखों लोग इस आयोजन में शामिल होकर जीवनभर की स्मृतियां संजोते हैं। लेकिन, इस बार की अव्यवस्थाओं ने कई श्रद्धालुओं को निराश कर दिया। अगर प्रशासन इन खामियों से सबक ले तो भविष्य के आयोजनों को और बेहतर बनाया जा सकता है। श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं देकर ही महाकुंभ को यादगार और सफल बनाया जा सकता है।
यह एक यात्रा मात्र नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास का पर्व है। इसे संभालना प्रशासन की जिम्मेदारी है।

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