भारत देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में हमेशा यह कहते नजर आते हैं कि भारत एक विश्वशक्ति बन कर उभर रहा है व भारत एक मजबूत राष्ट्र है. प्रधानमंत्री मोदी के अलावा बीजेपी के अन्य दिग्गज नेता भी मोदी सरकार के विकास नीति की बातें करते नहीं थकतें. लेकिन भारत में बढ़ता विदेशी कर्ज प्रधानमंत्री मोदी के दावे को खोखला साबित करता है. आंकड़ों को देखें तो यह मालूम होता है कि मोदी सरकार बनने के बाद भारत में विदेशी कर्ज लेने प्रवत्ति बढ़ी है. जो किसी भी राष्ट्र के लिए एक चिंता जनक विषय है.
आईटी सेल फैलाता है भ्रामक खबर
सियासी दलों द्वारा अपनी छवि को आम जनता के बीच साफ सुथरा व प्रभावशाली दिखाने के लिए आईटी सेल का उपयोग किया जाता है. आईटी सेल का मुख्य कार्य है ख़बरों को तोड़ मरोड़ कर, आंकड़ों को घटा बढ़ा कर जनता के बीच फैलाना और अपने नेता की छवि को चमकाना. सोशल मीडिया पर ख़बर फैलाई जाती रही है कि मोदी सरकार बिना विश्व बैंक से लोन लिए ऐतिहासिक विकास कर रही है. लेकिन अब समय है भ्रम से बाहर आकर यह जानने का कि नरेन्द्र मोदी अब तक के सबसे ज्यादा विदेशी कर्ज लेने वाले प्रधानमंत्री हैं.
2013 के बाद लगातार बढ़ा विदेशी कर्ज
बताते चलें कि साल 2013 में भारत पर कुल विदेशी कर्ज का भार 409.4 अरब डॉलर (जीडीपी का 11.1 %) था जो 2014 में बढ़ कर 446.2 अरब डॉलर (जीडीपी का 10.4 %) तथा 2015 में 474.7 अरब डॉलर (जीडीपी का 8.8 %) हो गई और आगे यही भार प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में मार्च 2018 में 529 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया, जिससे भारत के कुल विदेशी कर्ज में 12.4 % की वृद्दि दर्ज की गई. यह अब तक की सर्वाधिक सालाना वृद्धि है.
मौजूद आंकड़े के आधार पर यह बात सामने आती है कि स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया, गंगा की सफाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शिक्षा, ऊर्जा क्षेत्र आदि के विकास के नाम पर अकेले प्रधानमंत्री मोदी ने तक़रीबन 78 अरब डॉलर का कर्ज अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से 2014 से 2018 के बीच लिया है. वर्ल्ड बैक के ही रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ल्ड बैंक एवं आईबीआरडी जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था से विश्व में सर्वाधिक लोन लेने वाले देश के रूप में अपनी पहचान रखता है.
मोदी सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च, 2022 तक भारत का विदेशी कर्ज 620.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो मार्च 2021 के अंत में रहे 573.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कर्ज से 8.2 प्रतिशत अधिक है. इस कर्ज में 53.2 प्रतिशत अमेरिकी डॉलर के मूल्य वर्ग में था, वहीं भारतीय रुपये के मूल्य वर्ग का कर्ज 31.2 प्रतिशत अनुमानित था। वहीं लॉन्ग टर्म का कर्ज 499.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर अनुमानित था, जो कुल कर्ज का 80.4 प्रतिशत है. और , 121.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का शॉर्ट टर्म लोन ऐसे कुल ऋण का 19.6 प्रतिशत था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दिसंबर(2022) तिमाही में देश पर विदेशी कर्ज सितंबर तिमाही के मुकाबले 1.2 फीसदी बढ़कर 613 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है. इस आंकड़े की तुलना अगर रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार से करें तो रिजर्व बैंक के खजाने में रखे हर एक डॉलर के मुकाबले देश पर 1.05 डॉलर का विदेशी कर्ज है.
विदेशी क़र्ज़ के मायनें
विदेशी कर्ज एक ऐसी वित्तीय संबंधित प्रथा है जिसमें एक देश दूसरे देश से धन उधार लेता है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए, विदेशी कर्ज का उपयोग विभिन्न उद्योगों और परियोजनाओं को विकसित करने, अवसरों को बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए किया जाता है। हालांकि, विदेशी कर्ज लेने के अनुचित उपयोग या उसकी गड़बड़ी से नुकसान भी हो सकते हैं। यहां हम कुछ मुख्य नुकसानों पर विचार करेंगे जो भारत द्वारा विदेशी कर्ज लेने में सामने आ सकते हैं:
आर्थिक बोझ बढ़ना
विदेशी कर्ज लेने से भारतीय सरकार को देश के लिए एक बड़ी आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। देश को विदेशी मुद्रा में उधार लेने के लिए ब्याज भुगतान करना पड़ता है, जो देश के कर्ज संबंधित सेवा खाते को बढ़ा सकता है। यह सरकारी खर्चों को प्रभावित करके विकास कार्यों, स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए कम वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने में अवरोध बन सकता है।
मुद्रा में वृद्धि का खतरा
विदेशी कर्ज का एक अहम पहलू यह है कि यह एक देश की मुद्रा के प्रति नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अगर विदेशी मुद्रा के मान में कमी होती है, तो लोकल मुद्रा कमजोर हो सकती है और यह वित्तीय स्थिरता पर बुरा असर डाल सकता है। अगर इससे बचने के लिए मुद्रा संरक्षण के उपाय नहीं लिए जाते हैं, तो यह देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
स्वावलंबन क्षमता में कमी का होना
यदि विदेशी कर्ज का उपयोग सही ढंग से नहीं किया जाता है, तो देश की स्वावलंबन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अधिकतम कर्ज लेने से बढ़ती हुई मानसिकता के कारण, देश को आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भर बनाने की जरूरत रहती है, जो अंततः देश की आर्थिक सुरक्षा पर असर डाल सकती है।
ब्याज दर में वृद्धि का होना
विदेशी कर्ज लेने के लिए देश को ब्याज भुगतान करना पड़ता है। अगर ब्याज दरें वृद्धि करती हैं, तो कर्ज भुगतान अधिक मुश्किल हो जाता है और यह वित्तीय बोझ को और भी बढ़ा सकता है। यह देश की वित्तीय स्थिरता पर दबाव डाल सकता है और दूसरे समयों में विदेशी उधारकर्ताओं की निगरानी के लिए ब्याज दरों में वृद्धि की आवश्यकता हो सकती है।
विदेशी निजी निवेशकों की निगरानी
विदेशी कर्ज लेने से देश को विदेशी निजी निवेशकों की निगरानी के अधिकार में दिलचस्पी बढ़ सकती है। जब एक देश विदेशी कर्ज लेता है, तो वह विदेशी निवेशकों के लिए अत्यधिक आकर्षक हो सकता है, जो देश के संपत्ति और परियोजनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। यह देश की राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता पर प्रभाव डाल सकता है और उसकी सुरक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर सकता है।
विदेशी कर्ज लेने के नुकसान और सावधानियों को मध्यस्थता से देखते हुए, भारत को संबंधित कानून और नीतियों का पालन करना चाहिए। विदेशी कर्ज का सदुपयोग करके, देश को विकास के लिए आवश्यक वित्तीय संसाधन प्राप्त करने का लाभ हो सकता है, लेकिन साथ ही उचित प्रबंधन और सावधानी के साथ कर्ज को चुनना भी आवश्यक होता है। इसके साथ ही, स्वदेशी वित्तीय संसाधनों के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि देश को आत्मनिर्भर बनाने में सक्षमता प्राप्त हो सके।
मोदी का आत्मनिर्भर भारत -हर व्यक्ति पर 32 हजार रुपए का कर्ज
विदित हो कि प्रभानमंत्री मोदी ने बड़े जोर शोर से आत्मनिर्भर भारत योजना की शुरुआत की थी. सरकार ने दहाड़ कर दावा किया था है कि मोदी के नेतृत्व में भारत आत्म निर्भर बनेगा. लेकिन हालात इसके बिलकुल उलट है. भारत के ऊपर मौजूदा विदेशी कर्ज के आंकड़े बताते हैं कि देश के हर व्यक्ति पर लगभग 32 हजार रुपए का विदेशी कर्ज है. जो कि मोदी सरकार ने अपने अभी तक के कार्यकाल में लिया है.
बताते चलें कि आत्म निर्भर का मतलब होता है कि जो व्यक्ति किसी के आश्रित न होकर अपने बल बूते पर कार्य करें वह आत्म निर्भर है. और मोदी जी विदेशी कर्ज लेकर आत्म निर्भर भारत की बात करते हैं. विदित हो कि भारत कोई नक्शा नहीं हैं, या जमीन का कोई टुकड़ा नहीं है, अपितु भारत के लोग, देश की जनता ही भारत है, और आज भारत के हर व्यक्ति पर विदेशी कर्ज है. कर्ज लेकर स्वयं को आत्मनिर्भर बताना हास्यपद है. मोदी सरकार को चाहिए कि खोखले वादों और दावों से परे एक अच्छी नीति बनायें. क्योंकि राजनीति से चुनाव जीते जाते हैं और नीति से देश चलता है. अतएव मोदी सरकार को देश चलाने के लिए राजनीति नहीं बल्कि स्वालम्बी सोंच और विकास नीति पर ध्यान देना चाहिए