सैय्यद जाहिद अली रियासत
भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका सदैव से पूज्यनीय रही है। हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा के रूप में उनकी पूजा होती है, तो इस्लाम में हव्वा की संतान के रूप में उन्हें सम्मान दिया जाता है। परंतु आज का युग महिलाओं की इस पारंपरिक छवि से आगे निकलकर एक नए यथार्थ का साक्षी बन रहा है—विशेषकर भारतीय मुस्लिम महिलाओं का।
भारत एक कृषि-प्रधान देश है, और यहाँ की राजनीति की नींव गाँव-कस्बों के लोकतंत्र में रखी गई है। इसी जमीनी स्तर पर देश की वास्तविक लोकतांत्रिक शक्ति निवास करती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वही राजनीतिक दल या नेता राष्ट्रीय स्तर पर सफल होते हैं, जो स्थानीय संरचनाओं से गहराई से जुड़े होते हैं। इस परिदृश्य में महिलाएँ—चाहे वे मतदाता हों, प्रचारक हों या उम्मीदवार—चुनावी प्रक्रिया की रीढ़ बनकर उभरी हैं।
राजनीतिक भागीदारी का नया दौर
पिछले डेढ़ दशक में महिला सशक्तिकरण और राजनीतिक भागीदारी को नई दिशा मिली है। प्रशिक्षण कार्यक्रम, संचार माध्यम और सहभागी नेतृत्व का मॉडल अब राजनीतिक दलों की रणनीति का केंद्र बिंदु बन गया है। इसके फलस्वरूप महिलाओं को स्थानीय चुनावों में अधिक से अधिक अवसर प्राप्त हो रहे हैं। विशेष रूप से मुस्लिम महिलाएँ अब राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय होकर न केवल अपने समुदाय की छवि बदल रही हैं, बल्कि शासन व्यवस्था में ठोस परिवर्तन भी ला रही हैं।
सरकारी योजनाओं का सकारात्मक प्रभाव
केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाएँ; जैसे—उज्ज्वला योजना, गरीब कल्याण अनुदान, प्रधानमंत्री जन-धन योजना, अटल पेंशन योजना और नारी शक्ति पुरस्कार—ने मुस्लिम महिलाओं को निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने के अवसर प्रदान किए हैं। इन योजनाओं ने न केवल उनके जीवनस्तर में सुधार किया है, बल्कि उन्हें राजनीतिक रूप से सजग और सक्रिय भी बनाया है।
राज्य-स्तरीय सफलता के उदाहरण
उत्तर प्रदेश (2023) के स्थानीय निकाय चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। कई दलों ने उन्हें टिकट दिया, और 61 से अधिक महिला उम्मीदवार विजयी हुईं। सहारनपुर की फूल बानो जैसी महिलाओं ने नगर पंचायत अध्यक्ष का पद संभालकर इतिहास रचा।
बिहार में तो पंचायतों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पहले से ही अधिक है। यहाँ मुस्लिम महिलाएँ स्वयं-सहायता समूहों और स्थानीय नेटवर्क के माध्यम से चुनावी सफलता प्राप्त कर रही हैं।
असम के दक्षिणी जिलों में कई मुस्लिम महिलाओं ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत दर्ज की। इनमें से अधिकांश गृहिणियाँ थीं, जिन्होंने पारिवारिक समर्थन से राजनीति में कदम रखा।
केरल की ‘कुडुंबश्री’ परियोजना ने महिलाओं को राजनीतिक प्लेटफ़ॉर्म उपलब्ध कराया है। 2020 के स्थानीय चुनावों में इसकी हजारों सदस्यों ने चुनाव लड़ा और लगभग आधे से अधिक ने जीत हासिल की।
प्रशिक्षण और संस्थागत सहयोग
केंद्र सरकार का राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को नेतृत्व प्रशिक्षण दे रहा है। 8 मार्च 2025 को ‘महिला-हितैषी ग्राम पंचायत’ विषय पर विशेष ग्राम सभाएँ आयोजित की गईं। पंचायती राज मंत्रालय ने UNFPA के सहयोग से प्रशिक्षण सामग्री तैयार की है, और राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वे महिला सभाओं को संस्थागत रूप दें।
एक नए भारत की ओर
मुस्लिम महिलाओं की बढ़ती भागीदारी केवल प्रतीकात्मक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की गहरी जड़ों में हो रहा एक वास्तविक परिवर्तन है। आरक्षण, राजनीतिक पहुँच और सरकारी योजनाओं के माध्यम से ये महिलाएँ न केवल स्वयं सशक्त हो रही हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। यह परिवर्तन निश्चित रूप से भारत को एक समावेशी और प्रगतिशील लोकतंत्र के रूप में विश्व पटल पर स्थापित करेगा।
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