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प्रमोद मिश्रा
उत्तर प्रदेश का चित्रकूट जिला बुंदेलखंड अति पिछड़ा जिला था पहले ही सरकारों ने ऐसा काम किया कि विकास का पैसा चित्रकूट तक आने में नाममात्र का बचता था । इसके पहले कई सरकारें आई और चित्रकूट सहित संपूर्ण बुंदेलखंड में अन्ना प्रथा की व्यवस्था में ध्यान नहीं दिया ।लेकिन जब से उत्तर प्रदेश में योगी जी और भाजपा की सरकार आई तो इस अन्ना प्रथा जानवरों की जिम्मेदारी चित्रकूट के 5 ब्लॉक के सभी ग्राम पंचायतों के प्रधानों को दी गई। जिसमें ग्राम पंचायतों में अस्थाई व स्थाई गौशालाओं का निर्माण हुआ । लाखों रुपए खर्च कर सभी गौशालाओं को तैयार किया गया और इस समय पूरे बुंदेलखंड में सभी ग्राम पंचायतों में अन्ना पशुओं को ग्राम पंचायतों में रखा गया है। लेकिन जब अन्ना पशुधन ग्राम प्रधान की गौशाला में आता है तो वह पशुधन निर्बल, वृद्ध ,रोगी ,बिगड़े हुए बैल, वह भी देसी नस्ल जो कि ठीक से डील डौल के नहीं होते हैं। अन्ना पशुओं को वास्तव में नगरों, कस्बों और ग्रामों के लोग अपना स्वार्थ पूर्ति के बाद छोड़ देते हैं ।और तब पशु भूखा प्यासा आक्रामक होकर किसान की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। बाद में प्रधान की गौशाला में उनको लाकर रक्खा जता है। सरकारी आदेश के आधार पर जिले के पशु विभाग ने पहले ही जो पशु लोगों के घर में बंधे हैं तथा अन्ना पशुओं को टैग पहनाने का काम किया था ।
जिसमें लापरवाही बरती जा रही है नहीं तो कान में टैग लगे पशु को तुरंत जानकारी कर उसका सही पता लगाया जाए कि पशु किसका है।गौशालाओं में जब बड़ी संख्या में पशु इकट्ठे रहते हैं तो खाने के लिए धक्का-मुक्की करते हैं ।इसलिए गौशाला में पशुओं को कैटेगरी के आधार पर दो या तीन भाग में विभाजित कर नस्ल सुधार की व्यवस्था से रखा जाए और अच्छी नस्ल का बछड़ा तैयार किया जाए तो गौवंश का विकास होगा।आज आधुनिक युग में अच्छी नस्ल के पशुओं को तैयार कर देशी नस्ल को अच्छे नस्लों में धीरे धीरे बदला जा सकता है। गौ संरक्षण व संवर्धन के बारे में बात की जाए तो सरकार पूरा ध्यान ऊपर से देती है लेकिन कुछ अधिकारी कर्मचारी संरक्षण और संवर्धन में सहयोग नहीं करते हैं।आज ग्राम प्रधानों का कहना है कि सही समय में सरकार हमें भूसा का पैसा उपलब्ध कराए और गौशाला को साफ सफाई और रखरखाव करने वालों को समय से पैसा ना मिलने से भी वहां मौजूद कार्यकर्ता निराशा प्रकट करते हैं ।और कहते हैं कि सभी लोग अपना बेकार आवारा पशु छोड़ देते हैं और उसका पूरा रखरखाव जब गौशाला में रखते हैं और उनको संभालने में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है ।भारी संख्या में पशुओं को सेवा करना और उनका इकट्ठा पेट भरना आसान नहीं है क्योंकि कहते हैं पशु पशु होता है एक तरफ खाता जाता है और एक तरफ गोबर देता जाता है । जब से चित्रकूट में गौशालाएं बनी हैं उनमें एक से एक निरीह पशुओं को नियम के आधार पर रखा जाता है ।और जब पशु की मरने की आती है तो लोग उसे छोड़ देते हैं और जब गौशाला में उस अस्वस्थ पशु की मृत्यु होती है तो उसमें राजनीति होती है और और ग्राम प्रधानों को प्रताड़ित भी किया जाता है। इसलिए सरकार पशुधन के विकास के लिए समय-समय पर धन उपलब्ध कराए और गौशालाओं की व्यवस्था सुधारने में समय लगेगा ।जब टैगिंग कर सभी पशुओं को पशु चिकित्सक उनमें अंतर कर चिन्हित कर कार्यवाही प्रशासन से कराएंगे तो गोवंश में सुधार आएगा । क्योंकि आधार कार्ड से सरकार ने संपूर्ण सामाजिक प्राणियों की पहचान बना दी है ऐसे ही पशुओं की पहचान बनाकर पशुधन यानी कि गौवंश को सुधारा जा सकता है।