झुंझुनू-शहादत के 50 साल बाद मिली शहीद के परिजन को नौकरी-आंचलिक ख़बरें-संजय सोनी

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झुंझुनू। राजस्थान के झुंझुनू जिले में सेना में शहीद हुये सैनिक के परिजन को शहादत के 50 साल बाद राज्य सरकार में सरकारी नौकरी मिली है। राजस्थान के झुंझुनू जिले में इस तरह की पहली नौकरी प्रदान कर प्रदेश सरकार ने 50 साल बाद शहीद के परिजनों का कर्ज चुकाने का प्रयास किया है। राज्य सरकार ने नागालैंड संघर्ष के दौरान 24 जुलाई 1967 को शहीद नौरंग सिंह के दत्तक पुत्र योगेश कुमार को कनिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्ति दी है।

शहीद नौरंग सिंह कम आयु में ही शहीद हो गए थे और उनके कोई भी संतान नहीं थ। ऐसे में शहीद की वीरांगना जानकी देवी ने योगेश कुमार को गोद लिया था और सरकार के नए नियम के अनुसार वे नौकरी के पात्र थे। इसके लिए शहीद की वीरांगना की ओर से आवेदन किया गया था। सेना में शहीद हुये सैनिकों के किसी एक परिजन को सरकार नौकरी देती है। मगर 15 अगस्त 1947 से लेकर 1970 तक की अवधि में सेना के तीनो अंगो में शहीद हुये देश भर में हजारो सैनिको के परिवार नौकरी के लिये आज भी संघर्ष कर रहे हैं।

राजस्थान की पिछली भाजपा सरकार ने 3 अक्टूबर 2018 को एक अधिसूचना जारी कर 15 अगस्त 1947 से लेकर 1970 तक की अवधि में सेना के तीनो अंगो में शहीद हुये राजस्थान के 428 सैनिको के परिवारों के किसी एक सदस्य को राजस्थान में सरकारी नौकरी देने के आदेश जारी किये गये थे। इसके तहत उपरोक्त अवधि में सेना में शहीद हुये जवानो के खून के रिश्ते के किसी एक सदस्य को नौकरी मिलनी थी। मगर प्रदेश में हुये सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस सरकार ने समीक्षा के नाम पर उस आदेश पर रोक लगा दी थी। लेकिन शहीदों के परिजनो के विरोध के कारण नियुक्ति देनी शुरू कर दी है।

राजस्थान में 15 अगस्त 1947 से लेकर 1970 तक की अवधि में सेना के तीनो अंगो में शहीद हुये 428 सैनिको के परिवारों के किसी एक सदस्य को राजस्थान में सरकारी नौकरी देने के आदेश जारी किये गये थे। इसके तहत उपरोक्त अवधि में सेना में शहीद हुये जवानो के खून के रिश्ते के किसी एक सदस्य को नौकरी मिलनी थी। इसमें शेखावाटी के झुंझुनू जिले के 125 व सीकर जिले के 70 शहीदो के आश्रित नौकरी के लिये पात्र पाए गए थे। शहीद के खून के रिश्ते में पत्नी, पुत्र, पुत्री, दत्तक पुत्र, दत्तक पुत्री, पौत्र-पौत्री, दत्तक पौत्र-पौत्री के साथ परिवार में भाई- बहिन में से किसी एक को भी नौकरी मिलनी है।

1947 से 1970 तक के शहीद परिवारो के परिजनो को नौकरी देने के सरकारी फैसले के बाद भी कई शहीदों के परिवार नौकरी पाने से वचिंत रह जायेगें। 1971 से 1999 के बीच शहीद हुए सैंकड़ों शहीदों के परिवारों की मांग है कि उन्हे भी अन्य शहीद परिवारों की तरह सरकारी नौकरी दी जाये। देश की हिफाजत में शहीद हुए जवानों के परिजनों की नौकरी में दोहरे मापदंड सामने आ रहे हैं। प्रदेश भर से 1971 से 1999 के बीच शहीद हुए सैंकड़ों परिवारों के परिजनों को आज तक कहीं सरकारी नौकरी नहीं मिली। ऐसे में ब्लड रिलेशन वाला यही नियम 1970 के बाद शहीद हुए जवानों के लिए भी लागू होना चाहिये।

शहीद परिजनों का कहना है कि शहीद हुए सभी जवानों के लिए नियम एक समान होना चाहिए। सरकार ने 1970 के बाद शहीद हुए जवानों के परिजनों को नौकरी देने के आदेश जारी किए थे जो 2008 में लागू हो पाए थे। इस बीच 1971 की लड़ाई में शहीद हुए जवानों के परिजनों की उम्र सरकारी नौकरी पाने की उम्र से पार हो गयी। जिस कारण शहीदों के परिजनों को सरकारी नौकरी नहीं मिल पायी थी।

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