मुन्ना विश्वकर्मा सुमेरपुर -थाना सुमेरपुर के ग्राम मुंडेरा में कर्ज में डूबे किसान शीतल यादव ने कर्ज के दबाव से परेशान होकर मंगलवार की रात को अपने घर में लगे पेड़ में फांसी लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ।किसान के ऊपर सरकारी व गैर सरकारी लगभग छह लाख का कार्य था जिसे वह अदा नहीं कर पा रहा था। पुलिस ने किसान के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा है। मुंडेरा निवासी दीनदयाल यादव का पुत्र शीतल यादव 40 वर्ष का शव बुधवार की प्रात घर में लगे पेड़ में लटकता हुआ मिला तो पूरे परिवार में कोहराम मच गया शीतल रात को खाना खा कर सो गया था रात में अचानक उठकर उसने कब फांसी लगा ली घर वालों को भी पता नहीं चला। जानकारी के मुताबिक किसान शीतल यादव के ऊपर स्टेट बैंक सुमेरपुर का करीब साढे तीन लाख का कर्ज था। सन 2012 में उसने 1लाख 35 हजार का किसान क्रेडिट कार्ड बनवाया था जो बढ़ते बढ़ते तीन लाख पार कर गया इसके अलावा उसके ऊपर गांव और रिश्तेदारों कासवा दो लाख का कर्ज था तो किसान पर लगभग 6 लाख का कर्ज था जिसको लेकर वह लगातार परेशान रहता था। परिजनों के अनुसार किसान के पास मात्र 15बीघे जमीन है । जिसमें कुछ जमीन गिरवी रखी है कुछ जमीन परती पड़ी है थोड़ी सी जमीन में नाम मात्र का उत्पादन हुआ था जिससे परिवार का खर्च किसी तरह से चल रहा है ।इसी बीच बैंकों व साहूकारो का दवाव बढ़ा तो किसान बेहद चिंतित हो उठा कि वह अपने ऊपर से कर्ज का बोझ कैसे उतार पाएगा जब फसल साथ नहीं दे रही है यही चिंता उसके मौत का कारण बन गई ।किसान अपने पीछे पत्नी राजकली तीन पुत्र क्रमश मोहित 18 वर्ष, छोटे 15 वर्ष,व ज्ञानेंद्र 9 वर्ष तथा दो पुत्री प्रांसी 13 वर्ष व नैंसी 6 वर्ष को रोते बिलखते छोड़ छोड़ गया है किसान की मृत्यु से परिवार के सदस्यों का रो-रोकर बुरा हाल है किसान की आत्महत्या की खबर पाकर थानाध्यक्ष गिरेन्द्र प्रताप सिंह मौके पर पहुंचे और घटनास्थल का मौका मुआयना किया तथा शव का पंचनामा भरकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा है ।इस तरह से बुंदेलखंड में किसानों का बुरा हाल है आर्थिक तंगी व कर्ज से परेशान किसान जब विवश हो जाते हैं और उन्हें कोई रास्ता नजर नहीं आता तो वह आत्महत्या करने पर विवश हो जाते हैं बुंदेलखंड मैं किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या का सिलसिला थामे नहीं थम रहा है एक के बाद एक किसान आत्मघाती कदम उठाते जा रहे हैं उसकी मुख्य वजह यही है की किसान कर्ज सेदबा है और जब बैंकों का या साहूकारों का दबाव बढ़ता है तो किसान को आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।