ओंकारेश्वर एक रहस्यमयी नगरी हैं यहां माँ नर्मदा पैदल परिक्रमा में आने वाला मंदिर है शुल भेद माता मंदिर जिसे शूल भेद बावडी भी कहते हैं। जो की परिक्रमा में आने वाले तीन विशिष्ट जंगलो में से एक ओंकारेश्वर के जंगलों में आता है। माँ नर्मदा के दक्षिण तट पर स्थित यह मंदिर विशिष्ट आभा लिए हूए हैं। मंदिर ओर कुंड दोनो बहूत अद्भुत आभा लिये हूए हैं।
पहाडो के मध्य में स्थित हैं। चारो ओर वन क्षेत्र से घिरा हूआ हैं। चारो ओर हरियाली गर्मी मैं भी इस मंदिर के आस पास हराभरा वातावरण हैं। पक्षी यहा स्वच्छंद विचरण करते हैं। .
बहुत सुंदर ओर अद्भुत वातावरण हैं। यदि असाध्य चर्म रोग सहित अन्य रोगों से ग्रसित व्यक्ति मंगलवार के दिन स्नान करे तो उसका चर्म रोग धीरे धीरे खत्म हो जाता है। प्रत्येक मंगलवार एवं अमावस्या,पुर्णीमा को यहा दूर दराज से सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु स्नान दर्शन को आते है।
कुंड का जल हमेशा स्वच्छ रहता है और कभी कुंड का जल स्तर कम नहीं होता है। कुंड के जल को श्रद्धालु भरकर मंदिर प्रागंण के समीप स्नान कर मंदिर में देवी पुजन करते हैं।इस मंदिर कि पुजा ओर देखभाल मंदिर के पुजारी श्री दादूराम वर्मा करते हैं। जिनकी क्ई पीढीया मंदिर ओर कुंड कि देखभाल करते आये बहूत कुछ रहस्य एवं चमत्कार लिये विराजित है माँता का मंदिर है।
मंदिर के पुजारी दादुराम वर्मा ने बताया की मंदिर पहुंचने में श्रद्धालुओं की कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है जो चल नहीं पाते वह गोमुख घाट पर स्नान कर लेते हैं जो यहां का पानी सात कुंडों से होता हुआ यहां का पानी गोमुख घाट पर सतत जलधारा अनादि काल से आज भी बह रही वर्तमान नर्मदा नदी में पानी अधिक होने के कारण गोमुख घाट नहीं दिखाई पा रहा है
ओम्कारेश्वर-शूलभेद बावडी माता मंदिर,पंहुचने के लिये नही है व्यवस्थित मार्ग-आंचलिक ख़बरें-ललित दुबे

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